ईरान का कड़ा रुख:
ईरान ने ट्रंप की इस धमकी का तीखा जवाब दिया है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई ने कहा कि अमेरिका की धमकियों से ईरान डरने वाला नहीं है। अपने हालिया संबोधन में उन्होंने कहा, "अमेरिका को यह समझ लेना चाहिए कि धमकियों से ईरान पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर वे कोई गलत कदम उठाते हैं, तो उन्हें इसका जवाब मिलेगा।" ईरान के विदेश मंत्रालय ने भी कहा कि जब तक अमेरिका अपनी दबाव की नीति और धमकियां बंद नहीं करता, तब तक कोई सीधी बातचीत नहीं होगी। हालांकि, अप्रत्यक्ष बातचीत का रास्ता अभी खुला रखा गया है।
ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। लेकिन हाल के महीनों में उसने यूरेनियम संवर्धन की गति बढ़ा दी है, जिसे अमेरिका और उसके सहयोगी देश परमाणु हथियार बनाने की तैयारी मानते हैं। इस कदम से क्षेत्र में तनाव और गहरा गया है।
ट्रंप की पुरानी नीति और नया दबाव:
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में 2015 के परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से अमेरिका को बाहर कर लिया था। इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले आर्थिक प्रतिबंधों में राहत हासिल की थी। ट्रंप ने इसे "सबसे खराब समझौता" करार देते हुए ईरान पर "अधिकतम दबाव" की नीति अपनाई थी। अब अपने नए कार्यकाल में वह फिर से इसी रास्ते पर चलते दिख रहे हैं, लेकिन साथ ही बातचीत का प्रस्ताव भी दे रहे हैं।
हाल ही में ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता को एक पत्र लिखकर बातचीत की पेशकश की थी, लेकिन ईरान ने इसे ठुकरा दिया। ईरान का कहना है कि पहले अमेरिका प्रतिबंध हटाए, तभी कोई बातचीत संभव है। इस इनकार के बाद ट्रंप ने अपनी धमकी को और सख्त कर दिया और कहा कि वह जल्द से जल्द परमाणु समझौता चाहते हैं।
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ता यह तनाव मध्य पूर्व में अशांति का कारण बन सकता है। इजरायल और सऊदी अरब जैसे देश, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने लिए खतरा मानते हैं, ट्रंप के इस कदम का समर्थन कर सकते हैं। वहीं, रूस और चीन ने अमेरिका की इस नीति की आलोचना की है और बातचीत के जरिए समाधान की वकालत की है। रूस ने तो इस मामले में मध्यस्थता की पेशकश भी की है।
अमेरिका और इजरायल के अधिकारी जल्द ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा के लिए बैठक करने वाले हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि सैन्य कार्रवाई के विकल्प पर भी विचार चल रहा है। ट्रंप ने साफ कहा कि अगर दो महीने में समझौता नहीं हुआ, तो वह कड़े कदम उठाने से नहीं हिचकिचाएंगे।
ईरान की परमाणु प्रगति:
ईरान का परमाणु कार्यक्रम पिछले कुछ सालों में तेजी से आगे बढ़ा है। उसने 60% तक यूरेनियम संवर्धन कर लिया है, जो हथियार-ग्रेड स्तर (90%) के करीब है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार बनाने का फैसला किया, तो उसे कुछ ही हफ्तों में जरूरी सामग्री जुटाने की क्षमता है। फिर भी, ईरान बार-बार कहता है कि उसका मकसद शांतिपूर्ण ऊर्जा उत्पादन है।
आगे क्या?:
यह तनाव वैश्विक कूटनीति के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। ट्रंप की "समझौता या बमबारी" की नीति ईरान पर दबाव तो बढ़ाएगी, लेकिन यह क्षेत्र में शांति की संभावनाओं को कम भी कर सकती है। अगर बातचीत विफल हुई, तो सैन्य टकराव की आशंका बढ़ सकती है, जिसके व्यापक परिणाम होंगे। वहीं, अगर ईरान अप्रत्यक्ष बातचीत के लिए तैयार होता है, तो एक नया समझौता संभव है, बशर्ते अमेरिका अपनी शर्तों में कुछ ढील दे।
दुनिया की नजर इस बढ़ते तनाव पर टिकी है। क्या ट्रंप की धमकी से ईरान झुकेगा, या यह टकराव और गहरा होगा? यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।