30 से अधिक देशों में सात प्रतिनिधिमंडल भेजे जाएंगे
विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत 22 और 23 मई को जापान, दक्षिण एशिया, खाड़ी देशों, यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित 30 से अधिक देशों में सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है। इन दलों में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ-साथ विपक्षी दलों के सांसद शामिल हैं। इनमें शशि थरूर (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (एनसीपी), कनिमोझी (डीएमके), जॉन ब्रिटास (सीपीआईएम) और असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम) जैसे प्रमुख नेता भी शामिल हैं।
विपक्ष का रुख: आलोचना के बावजूद राष्ट्रहित में साथ
जॉन ब्रिटास ने कहा, "हमने पीएम से संसद का विशेष सत्र और सर्वदलीय बैठक की मांग की थी, परंतु सरकार ने सीधा कूटनीतिक अभियान शुरू कर दिया। भले ही हमें खुफिया विफलता, अमेरिकी मध्यस्थता के दावों, और मीडिया की नफरत फैलाने वाली भूमिका पर आपत्ति है, लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को प्रतिनिधित्व देने की बात आती है, तो हम एकजुट होते हैं।"
असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस पहल को
“देश की संप्रभुता की रक्षा का मौका” बताते हुए कहा, "हम सरकार की नीतियों से असहमत हैं, लेकिन इस दौरे का मकसद पूरी दुनिया को बताना है कि भारत आतंकवाद का शिकार है, और हम इसकी जड़ – पाकिस्तान – को उजागर कर रहे हैं।"
अंतरराष्ट्रीय एजेंडा: भारत को अलग और लोकतांत्रिक साबित करना
इन नेताओं का मानना है कि यह मौका केवल पाकिस्तान की निंदा का नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक विविधता और बहुलता को दुनिया के सामने लाने का भी है। ब्रिटास ने कहा कि उन्हें विदेश सचिव की ब्रीफिंग में यह बात साफ की गई है कि प्रतिनिधिमंडल केवल सरकारी अधिकारियों से नहीं, बल्कि
सिविल सोसाइटी, थिंक टैंक और मीडिया प्रतिनिधियों से भी बातचीत करेगा।
विरोधाभासी सवालों के लिए तैयार हैं विपक्षी सांसद
दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि यदि उन्हें विदेश में अल्पसंख्यकों पर हमले, नागरिक स्वतंत्रता, या राजद्रोह कानूनों के दुरुपयोग जैसे मुद्दों पर सवाल किया गया, तो वे उनका जवाब देने को तैयार हैं। ओवैसी ने कहा, “हम भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा भारत के संविधान के तहत करते हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस आत्मविश्वास से बात करेंगे।”
वैश्विक कूटनीति में सरकार की सीमाएं भी उजागर
ब्रिटास और ओवैसी दोनों ने प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक कूटनीति की सीमाओं पर सवाल उठाया। ब्रिटास ने कहा, "11 वर्षों की 129 विदेश यात्राओं के बावजूद पाकिस्तान के विरुद्ध कोई ठोस वैश्विक समर्थन नहीं मिला। अमेरिका, जिसे हमने प्राथमिकता दी, ने भी अपने व्यापारिक हितों को प्राथमिकता दी है।"
ओवैसी ने इजराइल और तालिबान जैसे दो विवादित शासन से मिले समर्थन को “चिंताजनक संकेत” बताया और कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे सहयोगी देशों की उदासीनता पर सरकार को गंभीर आत्ममंथन करना चाहिए।
सरकार की यह पहल निस्संदेह एक बड़ी कूटनीतिक कवायद है, परंतु इसके समानांतर विपक्ष की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में लोकतंत्र की आवाजें केवल सत्ता पक्ष तक सीमित नहीं हैं। संसद से लेकर विश्व मंच तक, विपक्ष राष्ट्रहित में साथ खड़ा है, लेकिन सवाल पूछना बंद नहीं करेगा।