यह नई खोज RNA और छोटे अणुओं (Small Molecules) पर आधारित एक बिल्कुल नवीन उपचार पद्धति को सामने लाती है, जो न सिर्फ बीमारी को समझने बल्कि इसके इलाज के लिए नए रास्ते खोल सकती है।
क्या है अल्ज़ाइमर रोग?
अल्ज़ाइमर एक गंभीर न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है, जो मस्तिष्क में प्रोटीन के असामान्य जमाव, स्मृति हानि और संज्ञानात्मक (Cognitive) क्षमताओं में गिरावट का कारण बनती है। यह डिमेंशिया के लगभग 70-80% मामलों के लिए जिम्मेदार मानी जाती है और मृत्यु का पाँचवाँ सबसे बड़ा कारण बन चुकी है।
नया उपचार मार्ग: माइक्रोआरएनए की भूमिका
अब तक अल्ज़ाइमर में शामिल प्रोटीनों पर ही ध्यान केंद्रित किया गया था, लेकिन हालिया शोध माइक्रोआरएनए (miRNA) — विशेष रूप से miR-7a — की भूमिका को उजागर करता है। उल्लेखनीय है कि माइक्रोआरएनए की खोज के लिए ही पिछले वर्ष फिजियोलॉजी/मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
JNCASR के वैज्ञानिकों, मधु रमेश और प्रो. थिमैया गोविंदराजू के नेतृत्व में इस शोध ने डबल ट्रांसजेनिक AD माउस मॉडल का उपयोग कर यह पता लगाया कि miR-7a, KLF4 नामक एक प्रोटीन को लक्षित करता है, जो तंत्रिका-सूजन (Neuroinflammation) और Ferroptosis — एक विशेष प्रकार की न्यूरोनल सेल डेथ — को नियंत्रित करता है।
उपचार की दिशा में बड़ा कदम: होनोकिओल का उपयोग
शोधकर्ताओं ने miR-7a को संशोधित कर एक उपचारात्मक प्रतिरूप (Therapeutic Mimic) तैयार किया है, जो KLF4 प्रोटीन को दबाता है और रोग की प्रगति को रोकता है। इसके साथ ही, होनोकिओल नामक एक प्राकृतिक यौगिक का उपयोग किया गया है, जो मैगनोलिया वृक्ष से प्राप्त होता है और रक्त-मस्तिष्क बाधा (Blood-Brain Barrier) को पार करने में सक्षम है।
यह यौगिक AD में मौजूद न्यूरोइन्फ्लेमेशन और फेरोप्टोसिस को रोकने की क्षमता रखता है।
विशेषज्ञों की राय
मणिपाल स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रो. गिरीश गंगाधरन के अनुसार, यह शोध दर्शाता है कि miR-7a और KLF4 के बीच की यह जैविक कड़ी (Axis) सूजन और सेल-डेथ मार्गों को नियंत्रित करती है, जिससे न्यूरोनल क्षति को रोका जा सकता है।
भविष्य की दिशा: नैदानिक परीक्षण और बायोमार्कर की खोज
शोध में ऐसे कई miRNA की पहचान भी की गई है जो AD के मस्तिष्क में या तो अधिक सक्रिय (upregulated) या कम सक्रिय (downregulated) हो जाते हैं। ये भविष्य में अल्ज़ाइमर के प्रारंभिक निदान के लिए बायोमार्कर के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष
यदि यह miRNA आधारित उपचार और होनोकिओल जैसे छोटे अणु सुरक्षित और प्रभावी सिद्ध होते हैं, तो अल्ज़ाइमर के इलाज में यह एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं। इससे न सिर्फ रोगियों को राहत मिलेगी, बल्कि उनके देखभाल करने वालों पर भी मानसिक, आर्थिक और सामाजिक बोझ में कमी आएगी।
यह शोध NAR Molecular Medicine जर्नल में प्रकाशित हुआ है और भारत के लिए वैश्विक चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।