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Saturday, May 10, 2025

Pawan Kumar / New Delhi /May 4, 2025

2025 में सीता जयंती का पर्व 5 मई, सोमवार को मनाया जाएगा। यह पर्व वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है, जो कि चंद्र मास के अनुसार होता है। खास बात यह है कि यह तिथि राम नवमी के ठीक एक महीने बाद आती है। आचार्य अनुज ने अपने आध्यात्मिक वक्तव्य में बताया कि यह पर्व नारी शक्ति, त्याग और मर्यादा की प्रतिमूर्ति माता सीता के प्राकट्य का उत्सव है, जिनका जन्म भूमि की कोख से हुआ था — इसलिए उन्हें धरती की पुत्री, धरणीतनया और भूमिजा कहा जाता है।

Photo Source : Acharya Anuj
धर्म / सीता जयंती 2025 : धरती की पुत्री माता सीता का पर्व, 5 मई को श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाएगा: आचार्य अनुज

पौराणिक कथा : अकाल में उभरी जीवन की रेखा

पुराणों के अनुसार, मिथिला में एक बार जबषण अकाल पड़ा, तब राजा जनक ने यज्ञ हेतु भूमि को स्वयं हल से जोता। उसी क्षण भूमि से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई — यही थीं माता सीता। यह कथा वाल्मीकि रामायण सहित अनेक ग्रंथों में वर्णित है।

माता सीता के प्रमुख नाम और अर्थ:

जानकी – जनक की पुत्री

वैदेही – विदेह राज्य की राजकुमारी

मिथिलेश्वरी – मिथिला की देवी

भूमिजा – भूमि से उत्पन्न

सीता – हल की नोंक से प्राप्त कन्या (सीता = हल का फाल)

आध्यात्मिक महत्त्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता, माता लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं। वे आदर्श पत्नी, त्यागमयी माता और धैर्य व सहनशीलता की प्रतीक मानी जाती हैं। उनका जीवन भारतीय नारी की गरिमा और मर्यादा का उत्कृष्ट उदाहरण है।

???? व्रत और पूजन विधि:

प्रातः स्नान कर निर्जल व्रत या फलाहार व्रत का संकल्प लें।

माता सीता, श्रीराम, लक्ष्मण एवं हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

पीले वस्त्रोंसुहाग सामग्री से माता का श्रृंगार करें।

सीता जन्म कथा का पाठ करें।

नैवेद्य में फल, मिठाई, पंचामृत और तुलसी अर्पित करें।

दिनभर “सीता-राम” मंत्र का जाप करें।

मंत्र और स्तुति:

“ॐ सीते त्वं करुणा-निधे भक्तानामभयं दहि। भक्तिं मे हरिपादेषु देहि मे जनकात्मजे।”

“सीताराम सीताराम सीताराम कहिए, जाए दुख पावै सुख, मनवांछित फल लहिए।”

समाज को संदेश:

सीता जयंती केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह नारी गरिमा, शक्ति, धैर्य और सम्मान का भी प्रतीक है।

अविवाहित कन्याएं – सुयोग्य वर की प्राप्ति हेतु यह व्रत करती हैं।

विवाहित स्त्रियाँ – अपने पति के आयुष्य और सौभाग्य की कामना करती हैं।

यह पर्व सिखाता है — त्याग, प्रेम और स्त्री-सम्मान का महत्व।

निष्कर्ष:

आचार्य अनुज के अनुसार, "सीता जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि नारी शक्ति और आदर्श का उत्सव है। माता सीता की भक्ति से हमारे जीवन में धैर्य, समर्पण और शांति का संचार होता है।" यह पर्व भारतीय संस्कृति की उस जड़ को सींचता है, जहाँ नारी को शक्ति और करुणा का प्रतीक माना गया है।

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