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Tuesday, October 14, 2025

24JT News Desk / Udaipur /September 12, 2025

वैज्ञानिकों ने सोने के नैनोकणों के व्यवहार में एक ऐसा अनोखा बदलाव देखा है, जो भविष्य में बायोसेंसर, डायग्नोस्टिक उपकरणों और दवा वितरण प्रणालियों को और भी ज़्यादा प्रभावी और भरोसेमंद बना सकता है। यह शोध विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के स्वायत्त संस्थान एसएन बोस राष्ट्रीय आधारभूत विज्ञान केंद्र में किया गया है।

"सोने के नैनोकणों की ‘नई केमिस्ट्री’ से बनेंगे और भी स्मार्ट बायोसेंसर" | Photo Source : PIB
विज्ञान / सोने के नैनोकणों की ‘नई केमिस्ट्री’ से बनेंगे और भी स्मार्ट बायोसेंसर

इस शोध में पता चला है कि कैसे सोने के नैनोकण – जो अपनी अनोखी प्रकाशिक विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं – कुछ आम जैविक अणुओं, जैसे कि ग्वानिडीन हाइड्रोक्लोराइड (GdnHCl) और एल-ट्रिप्टोफैन (L-Trp) के संपर्क में आने पर अपना समूह बनाने का तरीका बदल देते हैं।

सोने के नैनोकणों की चालाकी: जब लवण और अमीनो एसिड टकराए


शोध टीम के अनुसार, जब सोने के नैनोकणों को GdnHCl से मिलाया गया, तो वे तेजी से एक-दूसरे के पास आकर घने समूह बना लेते हैं। लेकिन जैसे ही इस मिश्रण में एल-ट्रिप्टोफैन को जोड़ा गया, तस्वीर बदल गई। अब नैनोकणों ने एक ढीली, शाखित संरचना में एकत्र होना शुरू कर दिया।

वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को नाम दिया है "असंतुष्ट एकत्रीकरण" (Frustrated Aggregation) – यानी नैनोकण एकत्र होना तो चाहते हैं, लेकिन एल-ट्रिप्टोफैन उन्हें रोकता है।

ईडब्ल्यू-सीआरडीएस तकनीक से मिली नई झलक


प्रोफेसर माणिक प्रधान के नेतृत्व में की गई इस स्टडी में एक अत्याधुनिक प्रकाशिक तकनीक – एवनेसेंट वेव कैविटी रिंगडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (EW-CRDS) – का इस्तेमाल किया गया, जो नैनोकणों के व्यवहार में होने वाले बदलाव को बेहद संवेदनशीलता से पकड़ सकती है।

टीम में शामिल शोधकर्ताओं – सौम्यदीप्ता चक्रवर्ती, डॉ. जयेता बनर्जी, इंद्रायणी पात्रा, डॉ. पुष्पेंदु बारिक और प्रो. माणिक प्रधान – ने बताया कि एल-ट्रिप्टोफैन दरअसल GdnHCl से उत्पन्न ग्वानिडिनियम आयनों को स्थिर कर देता है। इससे न केवल नैनोकणों का अत्यधिक एकत्रीकरण रुकता है, बल्कि एक नई तरह की खुली और नियंत्रित संरचना भी बनती है।

भविष्य की तकनीकों के लिए उम्मीद की किरण


यह खोज केवल नैनोविज्ञान के लिए ही नहीं, बल्कि संवेदी उपकरणों (sensors), जैव चिकित्सा और प्रकाशिक तकनीकों के क्षेत्र में भी नई संभावनाओं का द्वार खोलती है। ‘एनालिटिकल केमिस्ट्री’ जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन मौलिक विज्ञान से लेकर एप्लिकेशन-आधारित नवाचारों तक एक सेतु का काम करता है।

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