32 देशों से 160 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने इस ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। इसमें विभिन्न मठवासी परंपराओं के प्रमुख, भिक्षु, भिक्षुणियां, राजनयिक समुदाय के सदस्य, बौद्ध अध्ययन के शिक्षक, विशेषज्ञ और विद्वान शामिल थे। लगभग 700 लोग इस विषय पर चर्चा में शामिल हुए।
वियतनाम के राष्ट्रीय बौद्ध संघ के उपाध्यक्ष थिच थीएन टैम ने इस सम्मेलन को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इसने बौद्ध विरासत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को पुनः पुष्टि की है, जो न केवल भारत, बल्कि पूरे एशिया में सांस्कृतिक कूटनीति और आध्यात्मिक समझ को आकार देती रही है। उन्होंने कहा, "यह शिखर सम्मेलन बौद्ध धम्म की स्थायी प्रासंगिकता को प्रदर्शित करता है, जो दुनिया में शांति, करुणा और समझ को बढ़ावा देने में सक्षम है।"
श्रीलंका के वासकादुवे महिंदावांसा महानायके थेरो ने कहा कि "दुनिया में जहां युद्ध और हिंसा फैल रही है, वहीं बौद्ध गुरुओं का अहिंसा और शांति पर चर्चा करना हमारी बड़ी जिम्मेदारी को दर्शाता है।" उन्होंने कहा कि हमें अपने दिल में शांति की ऊर्जा पैदा करनी होगी, जो एक दिन निश्चित रूप से दुनिया को शांति की ओर ले जाएगी।
नेपाल के लुम्बिनी विकास ट्रस्ट के उपाध्यक्ष खेंपो चिमेड ने इस सभा के दौरान यह सुझाव दिया कि बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक ज्ञान और परंपराओं को युवा पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए मठवासी शिक्षा के लिए हिमालय में एक शैक्षिक संस्थान स्थापित किया जाना चाहिए।
धर्मशाला से ड्रेपुंग लोसेलिंग मठ के क्यबजे योंगज़िन लिंग रिनपोछे ने तिब्बतियों के पूरे विश्व में फैलने का जिक्र करते हुए कहा कि यह हमें तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म के मूल्यों को संरक्षित करने की आवश्यकता को महसूस कराता है। उन्होंने दलाई लामा के विचारों का समर्थन करते हुए भारतीय नालंदा परंपरा को पुनर्जीवित करने की बात की।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव शत्से खेंसुर जंगचुप चोएडेन ने इस शिखर सम्मेलन को आशीर्वाद देते हुए कहा कि बौद्ध धम्म के सिद्धांत और मूल्य एशिया में क्षेत्रीय और वैश्विक सद्भाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने बुद्ध धम्म को एक मजबूत, दयालु और समावेशी समाज के निर्माण के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में देखा।
आईबीसी के महानिदेशक श्री अभिजीत हलदर ने शिखर सम्मेलन के समापन पर दिल्ली घोषणापत्र पढ़ते हुए कहा कि इस सम्मेलन में गहन विचार-विमर्श के बाद एक दयालु और सामंजस्यपूर्ण एशिया को बढ़ावा देने की साझा आकांक्षा सामने आई है।
भविष्य में ध्यान केंद्रित किए जाने वाले प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं :
1. बौद्ध धम्म के सिद्धांत के आधार पर एशियाई देशों के बीच संबंधों को मजबूत करना।
2. बौद्ध साहित्य, खासकर पाली भाषा पर काम करना।
3. बौद्ध अवशेषों की प्रदर्शनी को बढ़ावा देना।
4. समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर युवाओं, को शामिल कर एक नए मूल्य-आधारित समाज का निर्माण करना।
5. बौद्ध कला और विरासत को बढ़ावा देना।
6. बौद्ध तीर्थयात्रा और जीवंत विरासत के माध्यम से एशियाई बौद्ध सर्किट को जोड़ना।
7. बौद्ध धम्म के वैज्ञानिक और चिकित्सीय पहलुओं की प्रासंगिकता को पहचानना।
इस शिखर सम्मेलन ने बौद्ध धम्म की सामूहिक प्रतिबद्धता को मजबूत किया है, जो एशिया के भविष्य को एक शांति और समृद्धि की दिशा में प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।