मंदिर का 50 मीटर ऊंचा गोपुरम और इसकी दीवारों पर उकेरे गए शिलालेख सातवीं शताब्दी की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करते हैं। यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास से भी जुड़ा है। मंदिर परिसर में भगवान शिव के साथ-साथ देवी भुवनेश्वरी और पंपा की खूबसूरत मूर्तियां भी स्थापित हैं, जो पौराणिक कथाओं को अपनी कलाकृतियों के माध्यम से बयां करती हैं। आसपास बने छोटे-छोटे मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं, जो इस स्थान की आध्यात्मिक विविधता को और बढ़ाते हैं।
विरूपाक्ष मंदिर का एक अनूठा आकर्षण यहां का शिवलिंग है, जो दक्षिण की ओर झुका हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह शिवलिंग रावण और भगवान शिव से जुड़ी एक रोचक कहानी से संबंधित है। कथा है कि रावण जब शिवलिंग को लंका ले जा रहा था, तब उसने इसे एक बूढ़े व्यक्ति को सौंप दिया। उस बूढ़े व्यक्ति ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया, जिसके बाद यह यहीं स्थापित हो गया और लाख कोशिशों के बावजूद इसे हिलाया नहीं जा सका। मंदिर की दीवारों पर इस प्रसंग के चित्र उकेरे गए हैं, जो रावण के शिव से शिवलिंग को पुनः उठाने की प्रार्थना और शिव के इंकार को दर्शाते हैं।
मंदिर परिसर में 6.7 मीटर ऊंची नृसिंह की मूर्ति भी है, जो अर्ध-सिंह और अर्ध-मनुष्य रूप में भगवान विष्णु को दर्शाती है। किंवदंती है कि भगवान विष्णु ने इस स्थान को अपने निवास के लिए बड़ा पाया और क्षीरसागर लौट गए। माना जाता है कि हम्पी रामायण काल की किष्किन्धा है, जिससे इस मंदिर का आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
विरूपाक्ष मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण है। हेमकूट पहाड़ी की तलहटी पर बने इस मंदिर का शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह मंदिर आज भी अपनी प्राचीनता और भव्यता को संजोए हुए है, जो भारतीय संस्कृति और इतिहास का गवाह है।