शनि देव: कर्मफलदाता और न्यायाधीश:
आचार्य अनुज बताते हैं कि शनि देव भगवान सूर्य और छाया देवी के पुत्र हैं। इनके वाहन काला कौआ या काला भैंसा हैं, और इनका स्वरूप श्याम वर्ण का है। ये नवग्रहों में प्रमुख स्थान रखते हैं और कर्मों के अनुसार फल देने वाले देवता हैं।
इनकी दृष्टि को अति शक्तिशाली माना जाता है — जो सकारात्मक हो तो उन्नति दिलाती है, और नकारात्मक हो तो विनाशकारी भी हो सकती है।
शनि जयंती पूजन विधि: आचार्य अनुज के अनुसार
करें:
प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
नीले या काले वस्त्र धारण करें।
पीपल वृक्ष की पूजा कर तिल के तेल का दीपक जलाएँ।
शनि मंदिर जाकर "शनि चालीसा", "दशरथ कृत शनि स्तोत्र" या "हनुमान चालीसा" का पाठ करें।
"ॐ शं शनैश्चराय नमः" का 108 बार जाप करें।
शनि यंत्र की स्थापना कर पूजा करें।
शनिदेव को तिल का तेल और काले तिल से लोहे की थाली में अभिषेक करें।
निम्न मंत्र का जप करें:
"नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥"
गरीब, वृद्ध और विकलांगों को भोजन, वस्त्र एवं दान दें।
काले तिल, उड़द, लोहा, सरसों का तेल आदि का दान करें।
न करें:
किसी से अपमानजनक व्यवहार न करें, विशेषकर वृद्ध, निर्धन या सेवकों से।
झूठ, क्रोध, धोखा और आलस्य से दूर रहें।
शनि जयंती के लाभ: आचार्य अनुज की दृष्टि में
शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या दशा से राहत।
जीवन में स्थिरता, अनुशासन और न्यायप्रियता का विकास।
नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा।
कर्म सुधार का अवसर एवं आयु में वृद्धि।
शनिदेव की कृपा से जीवन में बड़ी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त होती है।
उपसंहार: आचार्य अनुज का संदेश
"कर्म ही पूजा है। शनिदेव की कृपा उन्हीं पर होती है जो अनुशासन, संयम और सत्य के मार्ग पर चलते हैं। शनि जयंती पर केवल विधि-विधान से नहीं, बल्कि अपने कर्म और व्यवहार से भी उन्हें प्रसन्न करें।" — आचार्य अनुज