बदलाव की शुरुआत: लक्ष्य "जीरो डंपसाइट"
2014 में जब स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत हुई और 2016 में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम लागू हुए, तभी से देश ने ‘लैंडफिल में शून्य कचरा’ की दिशा में कदम बढ़ाया। इसके तहत आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने "जीरो डंपसाइट" पहल शुरू की, जिसके तहत कई शहरों ने अपनी डंपिंग साइट्स को सुधारने का संकल्प लिया।
राजकोट नगर निगम भी इस अभियान में अग्रणी बनकर उभरा। प्रतिदिन करीब 700 टन कचरे का उत्पादन करने वाले इस शहर ने नकरावाड़ी डंपसाइट को पर्यावरणीय संकट से पर्यावरणीय वरदान में तब्दील कर दिया।
डंपसाइट से ग्रीन जोन: कैसे हुआ करिश्मा?
नकरावाड़ी की 16 लाख टन कचरे से भरी साइट को सुधारने के लिए निगम ने व्यापक सर्वेक्षण और योजना बनाई। उन्नत मशीनों से कचरे को प्रोसेस कर RDF (कचरा-जनित ईंधन), अर्ध-खाद और निष्क्रिय सामग्री अलग की गई।
RDF को जामनगर स्थित ऊर्जा संयंत्र में भेजा गया
अर्ध-खाद (50,000 टन से अधिक) से जमीन को समतल और उपजाऊ बनाया गया
निष्क्रिय सामग्री को सुरक्षित लैंडफिल में निस्तारित किया गया
इसके बाद आया असली परिवर्तन का दौर—मियावाकी तकनीक से लगाए गए 2.35 लाख से अधिक देशी वृक्ष, जो अब इस क्षेत्र को शहरी जंगल में बदल रहे हैं।
जल-संरक्षण और हरियाली: टेक्नोलॉजी के सहारे
12 किमी लंबी पाइपलाइन के ज़रिए गौरीदाद एसटीपी से उपचारित जल लाकर सिंचाई की गई
जल संरक्षण के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग पोंड और ड्रिप-स्प्रिंकलर सिस्टम स्थापित किया गया
इस तरह, इस पहल ने पर्यावरणीय सततता की मिसाल कायम की।
चुनौतियों की फेहरिस्त: लेकिन इरादे थे मजबूत
इस अभियान के दौरान कई चुनौतियाँ भी सामने आईं:
वर्षों पुराना मिला-जुला कचरा: प्रोसेसिंग जटिल बनी
भारी प्रदूषण: मिट्टी को ठीक करने के लिए बड़े पैमाने पर उपचार जरूरी
मानसून में काम प्रभावित
बदबू और प्रदूषण से मज़दूरों की सेहत पर असर
और सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती—12 किमी लंबी पाइपलाइन का निर्माण
लेकिन राजकोट ने इन बाधाओं को भी अवसर में बदला।
लाभ अनेक, प्रभाव गहरा
पर्यावरणीय लाभ: कार्बन पृथक्करण, ऑक्सीजन स्तर में वृद्धि, वायु गुणवत्ता में सुधार
सामाजिक लाभ: स्थानीय SHG समूहों और नागरिकों की भागीदारी, जागरूकता और रोजगार
आर्थिक लाभ: RDF और खाद से आय के नए स्रोत, ईको-टूरिज्म को बढ़ावा
जल-संरक्षण: उपचारित जल का उपयोग, ताज़े जल संसाधनों पर दबाव कम
राजकोट बना राष्ट्रीय मॉडल
यह पहल न केवल कचरे से निपटने का समाधान है, बल्कि यह एक सर्कुलर इकोनॉमी और सस्टेनेबल सिटी प्लानिंग का जीता-जागता उदाहरण है। इससे प्रेरणा लेकर अन्य शहर भी अपने पुराने डंपसाइट को हरित क्षेत्रों में बदल सकते हैं।