1. "जयंती" शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?
"जयंती" शब्द संस्कृत से लिया गया है:
"जय + अंती"
अर्थात् – "जिसकी जय काल के अंत तक हो।"
यह शब्द विजय और अमरत्व की भावना को दर्शाता है, न कि मृत्यु से इसका कोई संबंध है।
2. क्या "जयंती" शब्द केवल मृत व्यक्तियों के लिए होता है?
बिल्कुल नहीं। यह सबसे बड़ा भ्रम है।
"जयंती" शब्द का प्रयोग किसी महत्वपूर्ण घटना के घटित होने के दिन की वर्षगाँठ या पुनरावृत्ति को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह घटना हो सकती है:
सुखद (जैसे किसी विद्यालय की स्थापना या किसी महापुरुष का जन्मदिन)
दुखद (जैसे पुण्यतिथि, लेकिन इसके लिए "जयंती" का प्रयोग नहीं होता)
"जयंती" केवल सुखद और प्रेरणादायक घटनाओं के लिए प्रयोग होता है।
इसलिए:
विद्यालय की स्थापना को "स्थापना जयंती" कहते हैं।
देवताओं या महापुरुषों के जन्मदिन को "जयंती" कहते हैं।
इसी तरह, हनुमान जी का अवतरण दिवस भी "हनुमान जयंती" के रूप में जाना जाता है।
3. क्या हनुमान जी का जन्म हुआ था?
हाँ, निश्चित रूप से।
हनुमान जी माता अंजनी की कोख से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अवतरित हुए थे। यह दिन पूरे भारत में "हनुमान जयंती" के रूप में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।
हनुमान जी चिरंजीवी (अमर) हैं, लेकिन उनका जन्म तो हुआ था। और जन्म की स्मृति को ही "जयंती" कहते हैं।
4. क्या "जयंती" शब्द अमर व्यक्तियों के लिए भी प्रयुक्त होता है?
हाँ, और विशेष रूप से।
"जयंती" केवल मृत्यु की स्मृति नहीं, बल्कि उस जीवन की जयघोष है जो कालातीत है।
हनुमान जी चिरंजीवी हैं।
उनकी जयंती काल से परे है।
उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
इसलिए, "जयंती" शब्द अमरत्व के अधिक निकट है, न कि मृत्यु के।
5. "जन्मोत्सव" बनाम "जयंती" – अंतर क्या है?
जन्मोत्सव: यह एक सामान्य शब्द है, जो किसी के जन्मदिन के उत्सव को दर्शाता है।
जयंती: यह एक संस्कृतनिष्ठ और दिव्यता से युक्त शब्द है, जिसका प्रयोग तब होता है जब कोई जन्म:
समाज के लिए प्रेरणा बन जाए।
लोकमंगल का कारण हो।
निष्कर्ष: भ्रम से बाहर आएं — "हनुमान जयंती" पूर्णतः उचित है।
"जयंती" का अर्थ मृत्यु नहीं, बल्कि जय के साथ जन्म की स्मृति है। यह शब्द संस्कृति की गहराई से उपजा है, न कि अज्ञानता से।
"हनुमान_जयंती" कहना न केवल सही है, बल्कि "जन्मोत्सव" कहकर इसकी गरिमा को कम करना अनुचित है।
कई वर्षों से इस शब्द को लेकर समाज में फैले भ्रम और बिना सोचे-समझे किए गए पोस्ट्स मन को पीड़ा देते थे। कुछ लोग इस पवित्र शब्द की गरिमा को कम करने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए, इस लेख के माध्यम से इस भ्रांति को दूर करने का प्रयास किया गया है।