कलयुग की चुनौतियाँ: दिखावा और भ्रम का जाल
महंत साध्वी शालिनीनंद जी कहती हैं कि आज का युग दिखावे और बवंडर का है। बड़े-बड़े योगी, विद्वान, और ग्रंथों के कंठस्थ करने वाले प्रवचनकर्ता तो असंख्य हैं, पर वास्तविकता से उनका कोई नाता नहीं। “सभी का अंतःकरण पिशाच जैसा मलिन हो चुका है, और मलिनता त्यागना बड़े-बड़े योगियों के लिए भी असंभव-सा हो गया है। विद्वता तभी सार्थक है, जब वह सत्य की ओर ले जाए, अन्यथा वह खोखली ही रहती है,” वे कहती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, मुक्ति वह अवस्था है, जिसमें जीव मायामयी संसार के खेल से स्वयं को बाहर निकाल लेता है। साध्वी जी बताती हैं कि शास्त्रों में केवल परमेश्वर, भगवान नारायण, शिव, और कुछ संदर्भों में आदिशक्ति को ही मोक्ष प्रदान करने का अधिकार बताया गया है। अन्य देवी-देवता केवल अर्थ, धर्म, काम, धन, लक्ष्मी, ऋद्धि-सिद्धि, और साम्राज्य प्रदान कर सकते हैं, पर मोक्ष उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं। यहाँ तक कि स्वयं देवताओं का भी मोक्ष नहीं होता।
मुक्ति के चार स्वरूप: क्या ये पूर्ण हैं?
शास्त्रों में मुक्ति के चार प्रकार बताए गए हैं:
सालोक्य: जीव भगवान के लोक में उनके साथ निवास करता है।
सामीप्य: जीव भगवान के निकट रहकर उनकी सेवा करता है और उनकी उपस्थिति का आनंद लेता है।
सारूप्य: जीव भगवान के समान रूप धारण करता है और उनकी इच्छाओं का अनुभव करता है।
सायुज्य: जीव भगवान में पूरी तरह लीन होकर उनके साथ एकरूप हो जाता है।
हालांकि, महंत साध्वी शालिनीनंद जी का कहना है कि ये चारों प्रकार की मुक्ति भी पूर्ण नहीं हैं। “इन अवस्थाओं में जीव अपने जन्मों की धारणाओं, अनुभवों, और प्रारब्ध से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाता। उसे अपनी स्मृतियाँ और इन मुक्ति अवस्थाओं का भान बना रहता है। यह कैसी मुक्ति, जो प्रारब्ध के बंधनों से चिपकी रहे?” वे प्रश्न उठाती हैं।
उनके अनुसार, जब युग परिवर्तन होता है और भगवान विभिन्न अवतारों में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तो उनके आश्रित जीवों को भी लौटना पड़ता है। शास्त्र कहते हैं कि 28 चतुर्युगों के बाद ही प्रलय आती है, और तब तक जीवों को अनंत यात्राओं और भोगों से गुजरना पड़ता है। यह पूर्ण मुक्ति नहीं है।
पूर्ण मुक्ति का एकमात्र मार्ग: श्री दत्तात्रेय की शरण
साध्वी जी श्री दत्तात्रेय भगवान के ज्ञान मार्ग को पूर्ण मुक्ति का एकमात्र साधन बताती हैं। वे कहती हैं, “परब्रह्म दत्तात्रेय की शरण में जाकर, सद्गुरु के ज्ञान से माया, उसके देवताओं, और बंधनों को काटकर जीव अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है। वह परम तत्व को प्राप्त कर त्रिगुणात्मक संसार से ऊपर उठता है और दत्तात्रेय के चतुर्थ अमृत लोक में परमात्मा स्वरूप आत्म तेज बनकर निवास करता है।”
वे आगे कहती हैं, “मैं (दत्तात्रेय) जीव के संचित प्रारब्ध, वर्तमान के सभी पाप, ताप, संताप, भोग, और ऋणों का नाश कर देता हूँ। उसे पूर्णता प्रदान करता हूँ, जिससे वह पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। ऐसा जीव कभी किसी युग में पुनर्जनन के चक्र में नहीं पड़ता।”
भ्रम से निकलें, सत्य को अपनाएँ
महंत साध्वी शालिनीनंद जी का संदेश स्पष्ट है: “केवल कहने, सुनने, या किसी के बताने से मुक्ति नहीं मिलती। यह भ्रम का जाल है, जिससे निकलना हर साधक के लिए अत्यंत आवश्यक और लाभकारी है।” वे साधकों को प्रेरित करती हैं कि वे दिखावे और भ्रम को त्यागकर श्री दत्तात्रेय के ज्ञान मार्ग पर चलें, जो पूर्ण मुक्ति का एकमात्र द्वार है।
एक प्रेरणादायक आह्वान
महंत साध्वी शालिनीनंद जी का यह संदेश न केवल आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक जागृति का आह्वान है, जो जीवन के सत्य को जानना चाहता है। श्री दत्तात्रेय का ज्ञान मार्ग और उनकी शरण ही वह पथ है, जो जीव को माया के बंधनों से मुक्त कर परम शांति और पूर्ण मोक्ष की ओर ले जाता है।