धर्म का लोप और स्वार्थ की संस्कृति
साध्वी शालिनी नंद जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा, "आज का समाज केवल स्वार्थ का गुलाम बनकर रह गया है। परमार्थ की भावना लुप्त हो रही है। धार्मिक स्थल, जो कभी आध्यात्मिक शांति और आत्मचिंतन के केंद्र हुआ करते थे, अब केवल मार्ट बनकर रह गए हैं। लोग वहां केवल अपनी इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करने के लिए जाते हैं। दान-दक्षिणा हो या सेवा भाव, सब कुछ केवल दिखावे का हिस्सा बन गया है।"
उन्होंने आगे कहा कि भक्ति अब केवल आडंबर और प्रदर्शन तक सीमित हो गई है। "लोग बड़ी-बड़ी धुनियां लगाकर, वीडियो शूटिंग करके अपनी तपस्या को जनता के सामने प्रदर्शित करते हैं। ऐसा लगता है कि तप भगवान के लिए नहीं, बल्कि जनता को दिखाने के लिए किया जा रहा है। लोग यह मानने लगे हैं कि तप का फल जनता देगी, न कि ईश्वर।"
पाखंड और दिखावे का बढ़ता प्रचलन
साध्वी जी ने समाज में बढ़ते पाखंड पर भी तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा, "आज लोग सत्य को स्वीकार करने के बजाय पाखंडियों के पीछे भाग रहे हैं। चारों वर्णों ने अपने धर्म और नैतिकता का त्याग कर दिया है। मनमानी, स्वार्थपूर्ण आचरण और अधर्म अब समाज का हिस्सा बन गया है। न तो लोगों को मृत्यु का भय है, न ही ईश्वर का डर। सभी केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे हैं।"
उन्होंने नेताओं और सरकारों पर भी निशाना साधते हुए कहा, "नेता और सरकारें केवल उन धार्मिक स्थलों पर माथा टेकती हैं, जहां संख्या बल अधिक है, ताकि समय आने पर उसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। यह धर्म नहीं, बल्कि अवसरवादिता है।"
सत्य का मार्ग और उसकी चुनौतियां
साध्वी शालिनी नंद जी ने सत्य के मार्ग पर चलने वालों की कठिनाइयों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, "जो लोग सत्य की बात करते हैं, सत्य का साथ देते हैं, या सत्य को स्थापित करने की कोशिश करते हैं, वे समाज के लिए दुश्मन बन जाते हैं। लोग उनसे नफरत करते हैं, उनके खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं, और उनकी झूठी बदनामी करते हैं। यहां तक कि स्वयं को बुद्धिमान कहने वाला समाज भी इन षड्यंत्रों का समर्थन करता है।"
उन्होंने शास्त्रों का हवाला देते हुए कहा, "शास्त्र कहते हैं कि सुख-दुख, लाभ-हानि, जन्म-मरण को सहन करते हुए जीवन यात्रा पूरी करनी चाहिए। लेकिन सत्य के मार्ग पर चलने वालों के लिए हर दिन भारी पड़ता है। सत्य जानने के बाद मन बार-बार अपने लोक लौटने को करता है, क्योंकि इस जगत में सत्य का कोई स्थान नहीं बचा।"
कर्म और विधि का बंधन
साध्वी जी ने कर्म और विधि के बंधन पर भी गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, "कभी-कभी लगता है कि ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, लेकिन जब विधि के कठोर बंधन का अहसास होता है, तो लगता है कि न तो विधि का विधान कम है, न ही कर्म भोग। यह बंधन मनुष्य के किसी भी प्रयास से नहीं मिटता। यह जीव को हर समय असहनीय पीड़ा देता है और उसे तोड़ने पर तुला रहता है।"
धर्म पर चलने वालों की दुर्दशा
साध्वी शालिनी नंद जी ने समाज के उस रवैये की भी आलोचना की, जो धर्म पर चलने वालों को हाशिए पर धकेल देता है। उन्होंने कहा, "पूर्ण रूप से धर्म पर चलने वाले लोग बहुत कम मिलते हैं। समाज ऐसे लोगों को अनदेखा करता है, उन्हें एकाकी बनाता है, और उनकी कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करता है। लोग वैदिक सनातन धर्म की दुहाई तो देते हैं, लेकिन उसके बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं। मनमानी ही उनका धर्म बन गया है।"
भगवान दत्तात्रेय से प्रार्थना
अपने संबोधन के अंत में साध्वी जी ने भगवान दत्तात्रेय से प्रार्थना की। उन्होंने कहा, "हे सर्व युगाचार्य दत्तात्रेय भगवान, आपके धर्म और परमज्ञान का इस संसार में कोई स्थान नहीं बचा। लोग आपके नाम, मूर्ति, और फोटो का उपयोग करके समाज को गुमराह कर रहे हैं। मैं अब इस झूठे जगत से थक चुकी हूँ। कृपया मुझे अमृत लोक ले जाएं, जहां मैं आपकी भक्ति, सेवा, और दर्शन का पूर्ण लाभ उठा सकूं। इस संसार में लोग केवल उपहास, तकलीफ, और एकाकीपन दे सकते हैं। सहयोग और स्वीकृति की कोई उम्मीद नहीं।"
साध्वी शालिनी नंद जी ने यह भी कहा कि सत्य का मार्ग कठिन है, लेकिन यही एकमात्र मार्ग है जो मोक्ष की ओर ले जाता है। उन्होंने साधकों को संयम, तप, और भक्ति के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।