'शरबत जिहाद' से शुरू हुआ विवाद:
बाबा रामदेव ने हाल ही में एक वीडियो में दावा किया था कि एक मशहूर शरबत कंपनी अपनी कमाई का उपयोग मस्जिदों और मदरसों के निर्माण में करती है। उन्होंने इसे 'शरबत जिहाद' करार देते हुए लोगों से पतंजलि का गुलाब शरबत खरीदने की अपील की। रामदेव ने कहा कि पतंजलि के शरबत से होने वाली आय गुरुकुल, आचार्यकुलम, पतंजलि विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड को समर्पित होती है। इस बयान ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी, जहां कई लोगों ने इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश बताया, जबकि कुछ ने इसे पतंजलि के उत्पादों की मार्केटिंग रणनीति करार दिया।
नया विज्ञापन, नया विवाद:
'शरबत जिहाद' विवाद के ठंडा होने से पहले ही पतंजलि ने अपने ताजा विज्ञापन अभियान में एक और विवादास्पद कदम उठाया है। इस अभियान में दावा किया गया है कि अन्य कंपनियों के शरबत खरीदने से "धन और धर्म की बर्बादी" होती है, जबकि पतंजलि के उत्पाद "स्वदेशी, सनातन और सात्विक" हैं। विज्ञापन में सॉफ्ट ड्रिंक्स को "टॉयलेट क्लीनर" जैसा जहर बताते हुए लोगों से केवल पतंजलि के शरबत और जूस का उपयोग करने का आग्रह किया गया है। इस अभियान को लेकर कई लोग इसे धार्मिक आधार पर समाज को बांटने की कोशिश मान रहे हैं।
बयान का क्या है मकसद?:
रामदेव ने अपने वीडियो में बिना किसी कंपनी का नाम लिए संकेत दिया था कि कुछ शरबत ब्रांड की कमाई का इस्तेमाल धार्मिक उद्देश्यों के लिए होता है। हालांकि, यह माना जा रहा है कि उनका इशारा एक पुराने और लोकप्रिय शरबत ब्रांड की ओर था। दूसरी ओर, पतंजलि ने दावा किया कि उनके उत्पादों का पैसा भारतीय संस्कृति और शिक्षा को बढ़ावा देने में लगता है। इस तरह के बयानों को लेकर कई लोगों का कहना है कि यह सिर्फ उत्पाद बेचने की रणनीति है, जो धार्मिक भावनाओं को उकसाकर बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया:
इन बयानों के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं दो धड़ों में बंटी हुई हैं। कुछ लोग रामदेव के दावों का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना गलत नहीं है। वहीं, बड़ी संख्या में लोग इसे धार्मिक आधार पर समाज को बांटने और नफरत फैलाने की कोशिश बता रहे हैं। कई यूजर्स ने सवाल उठाया है कि क्या शरबत जैसी रोजमर्रा की चीज को भी धर्म से जोड़ना जरूरी है? कुछ ने यह भी तंज कसा कि पहले पतंजलि ने खाड़ी देशों में निर्यात के लिए अपने उत्पादों के लिए हलाल प्रमाणन लिया था, और अब धार्मिक आधार पर विपणन किया जा रहा है।
पहले भी रहे हैं विवादों में:
बाबा रामदेव और पतंजलि का विवादों से पुराना नाता रहा है। भ्रामक विज्ञापनों, स्वास्थ्य संबंधी दावों और सुप्रीम कोर्ट की फटकार से लेकर कई मुद्दों पर उनकी कंपनी चर्चा में रही है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के कुछ उत्पादों के विज्ञापनों पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद कंपनी को माफी मांगनी पड़ी थी। अब 'शरबत जिहाद' और "धर्म की बर्बादी" जैसे बयानों ने एक बार फिर रामदेव को विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?:
विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के बयान न केवल सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि लंबे समय में पतंजलि की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर सकते हैं। मार्केटिंग विशेषज्ञों का कहना है कि धार्मिक या सांप्रदायिक मुद्दों को विज्ञापन का हिस्सा बनाना अल्पकालिक लाभ दे सकता है, लेकिन यह ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। साथ ही, उपभोक्ता अब पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हैं और इस तरह की रणनीतियों को आसानी से समझ सकते हैं।
प्रशासन की चुप्पी:
ऐसे बयानों के बाद कई लोग प्रशासन से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि धार्मिक आधार पर इस तरह की टिप्पणियां सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती हैं। हालांकि, अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक कार्रवाई की खबर नहीं है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इस तरह के बयानों को अनदेखा करना और सामान्य बनाना खतरनाक हो सकता है।
निष्कर्ष:
बाबा रामदेव और पतंजलि के 'शरबत जिहाद' और "धर्म की बर्बादी" जैसे बयानों ने एक बार फिर सवाल खड़े किए हैं कि क्या व्यावसायिक हितों के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल उचित है? यह विवाद न केवल पतंजलि की मार्केटिंग रणनीति पर सवाल उठाता है, बल्कि समाज में सौहार्द और एकता के महत्व को भी रेखांकित करता है। आने वाले दिनों में इस मामले पर और क्या प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं, यह देखना बाकी है।