ट्रंप ने कहा, "अगर ईरान परमाणु समझौता नहीं करता, तो बमबारी होगी। ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी।" उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अगर ईरान बातचीत से इनकार करता है, तो वह पहले की तरह द्वितीयक प्रतिबंध भी लागू कर सकते हैं, जो ईरान की अर्थव्यवस्था पर और दबाव डालेंगे। ट्रंप ने यह भी जोड़ा कि वह चाहते हैं कि ईरान के साथ शांति स्थापित हो, लेकिन परमाणु हथियारों के मामले में कोई ढील नहीं बरती जाएगी।
ईरान का जवाब और तनाव:
ईरान ने ट्रंप की इस धमकी का कड़ा जवाब दिया है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई ने कहा कि अमेरिका की धमकियां उन्हें कहीं नहीं ले जाएंगी। उन्होंने अपने नववर्ष संबोधन में कहा, "अमेरिकियों को यह समझना चाहिए कि धमकियों से ईरान पर कोई असर नहीं होगा। अगर वे कोई गलत हरकत करते हैं, तो उन्हें करारा जवाब मिलेगा।" ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने भी कहा कि जब तक अमेरिका अपनी अधिकतम दबाव की नीति और धमकियां जारी रखेगा, तब तक सीधी बातचीत संभव नहीं है। हालांकि, अप्रत्यक्ष वार्ता का रास्ता खुला रखा गया है।
ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन हाल के दिनों में उसने यूरेनियम संवर्धन को तेज कर दिया है, जिसे पश्चिमी देश परमाणु हथियार बनाने की दिशा में कदम मानते हैं। इससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है।
ट्रंप की रणनीति और इतिहास:
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) में 2015 के परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से अमेरिका को बाहर कर लिया था। इस समझौते में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले आर्थिक प्रतिबंधों से राहत पाई थी। ट्रंप ने इसे "बेकार समझौता" करार देते हुए ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे, जिसे उन्होंने "अधिकतम दबाव" नीति कहा था। अब अपने दूसरे कार्यकाल में वह फिर से इसी रणनीति को अपनाते दिख रहे हैं, लेकिन साथ ही बातचीत का प्रस्ताव भी रख रहे हैं।
ट्रंप ने हाल ही में ईरान के सर्वोच्च नेता को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत की पेशकश की थी। लेकिन ईरान ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि अमेरिका पहले प्रतिबंध हटाए, तभी कोई बात आगे बढ़ सकती है। ट्रंप ने इस अस्वीकृति के बाद अपनी धमकी को और सख्त कर दिया है।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव:
ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ता यह तनाव मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ा सकता है। इजरायल और सऊदी अरब जैसे देश, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खतरा मानते हैं, ट्रंप के इस रुख का समर्थन कर सकते हैं। दूसरी ओर, रूस और चीन जैसे देश, जो पहले के परमाणु समझौते का हिस्सा थे, अमेरिका के इस एकतरफा कदम की आलोचना कर रहे हैं। रूस ने तो मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश भी की है।
अमेरिका और इजरायल के अधिकारी अगले हफ्ते ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा के लिए मिलने वाले हैं। इससे संकेत मिलता है कि सैन्य कार्रवाई के विकल्प पर भी विचार किया जा रहा है। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह दो महीने के भीतर परमाणु समझौता चाहते हैं, वरना कड़े कदम उठाए जाएंगे।
ईरान की स्थिति:
ईरान का परमाणु कार्यक्रम पिछले कुछ सालों में तेजी से आगे बढ़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान अब परमाणु हथियार बनाने की कगार पर है। उसने 60% तक यूरेनियम संवर्धन कर लिया है, जो हथियार-ग्रेड स्तर (90%) के करीब है। अगर ईरान ने परमाणु हथियार बनाने का फैसला किया, तो उसे कुछ ही हफ्तों में पर्याप्त सामग्री जुटा लेने की क्षमता है। हालांकि, ईरान अभी भी कहता है कि उसका उद्देश्य शांतिपूर्ण है।
क्या होगा आगे?:
यह तनाव वैश्विक कूटनीति के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। ट्रंप की "बातचीत या बमबारी" की नीति से ईरान पर दबाव बढ़ेगा, लेकिन यह क्षेत्र में शांति की संभावनाओं को भी कम कर सकता है। अगर बातचीत नाकाम रही, तो सैन्य टकराव की आशंका बढ़ सकती है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। दूसरी ओर, अगर ईरान अप्रत्यक्ष बातचीत के लिए तैयार होता है, तो एक नया समझौता संभव है, लेकिन इसके लिए अमेरिका को भी अपनी शर्तों में लचीलापन दिखाना होगा।
फिलहाल, दुनिया की नजर इस बढ़ते तनाव पर टिकी है। क्या ट्रंप की धमकी से ईरान झुकेगा, या यह टकराव और गहराएगा? आने वाले दिन इस सवाल का जवाब देंगे।