एक संत का जन्म जो इतिहास को मोड़ गया:
आचार्य अनुज के अनुसार, सन् 1017 ईस्वी में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर ग्राम में एक दिव्य बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया—रामानुज। उनकी माता कांतिमति और पिता केशव सोमयाजी दोनों ही विद्वान और वैदिक परंपरा से गहरे जुड़े थे। बचपन से ही रामानुज में कुछ विशेष दिखाई देता था—उनकी आंखों में करुणा, मन में ज्ञान की प्यास, और हृदय में ईश्वर के प्रति गहरा अनुराग। यह वही बालक था जो आगे चलकर विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रणेता और भक्ति आंदोलन के महान संत के रूप में विख्यात हुआ।
गुरु से भिन्न दृष्टिकोण और विशिष्टाद्वैत का उदय:
आचार्य अनुज बताते हैं कि रामानुजाचार्य आलवार संत यमुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छा के अनुसार, उन्होंने ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम, और दिव्य प्रबन्धम् की टीकाएं लिखने का संकल्प लिया। गृहस्थ आश्रम त्यागकर उन्होंने श्रीरंगम में यतिराज नामक संन्यासी से संन्यास दीक्षा ली। अपने गुरु यादवप्रकाश से वेदांत की शिक्षा लेते समय रामानुज ने अद्वैत दर्शन को चुनौती दी, जिसमें आत्मा और परमात्मा को एक माना जाता है। उनका अंतर्मन कहता था, “ईश्वर केवल निर्गुण नहीं, वह सगुण भी है—प्रेममय, साकार, और भक्तवत्सल।” यहीं से विशिष्टाद्वैत वेदांत का जन्म हुआ, जिसमें ब्रह्म को एक माना गया, लेकिन वह जीवों और जगत के साथ गुणों सहित विद्यमान है।
हर आत्मा पूज्य: समता और करुणा का संदेश:
आचार्य अनुज के शब्दों में, रामानुजाचार्य का दर्शन हर आत्मा को पूज्य मानता था। उन्होंने भगवान नारायण को साकार, सगुण, और सर्वगुणसंपन्न स्वीकार किया। उनका ब्रह्म निर्लिप्त नहीं, बल्कि भक्त के प्रेम में लीन होता है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी अद्वितीय करुणा। जब गुरु ने उन्हें “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र को गुप्त रखने की हिदायत दी, तो रामानुज ने मंदिर की छत से इस मंत्र को सबके साथ साझा कर दिया। उन्होंने कहा, “जिससे मोक्ष मिलता है, वह मंत्र सबका है। अगर मुझे नरक भी मिले, लेकिन कोई एक आत्मा भी मुक्त हो जाए, तो यह सौदा स्वीकार है।” यह उनकी परम करुणा और भक्ति का अनुपम उदाहरण था।
मंदिर के दरवाजे सबके लिए खुले:
आचार्य अनुज ने बताया कि रामानुजाचार्य ने सामाजिक समता पर विशेष जोर दिया। उस समय मंदिरों में जाति, वर्ण, और कुल के आधार पर भेदभाव देखकर उनका हृदय रो पड़ा। उन्होंने कहा, “ईश्वर सबका है—केवल जन्म से नहीं, बल्कि भक्ति और शरणागति से कोई भी उसका हो सकता है।” उनकी प्रेरणा से मंदिरों के दरवाजे सभी के लिए खोल दिए गए, जिससे समाज में समता, शुद्धि, और करुणा की एक नई धारा बहने लगी। यह सामाजिक सुधार आज भी प्रासंगिक है, जब हम आधुनिकता की दौड़ में अपनी सांस्कृतिक जड़ों को भूलते जा रहे हैं।
अमर रचनाएं: ज्ञान का प्रकाश:
आचार्य अनुज के अनुसार, रामानुजाचार्य ने गूढ़ दर्शन को आमजन तक पहुंचाने के लिए कई ग्रंथों की रचना की, जो आज भी भक्तों और विद्वानों के लिए प्रकाशस्तंभ हैं। इनमें प्रमुख हैं:
श्रीभाष्य: ब्रह्मसूत्र पर विस्तृत भाष्य
भगवद्गीता भाष्य: गीता के दर्शन को सरल भाषा में प्रस्तुत
वेदार्थसंग्रह: वेदों के मूल अर्थ को समझाने वाला ग्रंथ
गद्यत्रय: शरणागतिगद्य, श्रीरंगगद्य, और वैकुंठगद्य—जिनमें भक्ति और शरणागति की भावना व्यक्त है
इन रचनाओं में भक्ति, शरणागति, और ईश्वर की अनुकंपा को अत्यंत सहजता से प्रस्तुत किया गया है।
श्रीरंगम में आज भी दर्शन देती उनकी देह:
आचार्य अनुज ने विशेष रूप से बताया कि रामानुजाचार्य ने अपने जीवन के अंतिम क्षण श्रीरंगम में बिताए। श्रीरंगम के श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर में उनकी ममीकृत देह आज भी संरक्षित है, जो भक्तों के लिए एक साक्षात प्रेरणा है। वह केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि एक जीवंत दर्शनमूर्ति हैं, जो आज भी भक्तों को भक्ति और समर्पण का संदेश दे रहे हैं।
इस पावन दिन क्या करें?:
आचार्य अनुज ने सुझाव दिया कि आज के दिन भक्त श्रीरामानुजाचार्य के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में भक्ति और समता को अपनाने का संकल्प ले सकते हैं। कुछ विशेष कार्य जो किए जा सकते हैं:
भगवान विष्णु या श्रीराम का स्मरण करें और “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें।
रामानुजाचार्य की जीवनी पढ़ें या उनके जीवन पर आधारित प्रवचन सुनें।
भक्ति में समता, सेवा, और समर्पण का भाव अपनाएं।
दूसरों को भी ज्ञान और भक्ति की ओर प्रेरित करें।
प्रेरक वाक्य:
आचार्य अनुज ने श्रीरामानुजाचार्य के एक प्रेरक वाक्य को साझा करते हुए कहा, “ईश्वर केवल ज्ञान से नहीं मिलता—वह करुणा, भक्ति, और शरण से मिलता है।”
निष्कर्ष: भक्ति और समता का संदेश आज भी प्रासंगिक:
आचार्य अनुज द्वारा साझा की गई जानकारी के आधार पर, श्रीरामानुजाचार्य की जयंती हमें न केवल उनकी भक्ति और करुणा की याद दिलाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि समय कितना भी बदल जाए, प्रेम, समता, और शरणागति के मूल्य कभी पुराने नहीं पड़ते। आज जब हम आधुनिकता और शहरीकरण की दौड़ में अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं, रामानुजाचार्य का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा विकास वही है, जो सभी को साथ लेकर चले। ठीक वैसे ही जैसे "बीती बातें" कहानी में गांव की सादगी और अपनत्व को आधुनिकता ने बदल दिया, वैसे ही हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर इस बदलाव की भेंट न चढ़े।
इस पावन अवसर पर आइए, श्रीरामानुजाचार्य के जीवन से प्रेरणा लें और भक्ति, करुणा, और समता को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।
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