क्या है यह खोज?
अभी तक तारों का अध्ययन करने के लिए जो मॉडल इस्तेमाल किए जाते थे, वे कुछ सरलीकरणों पर आधारित थे। खासकर यह मान लिया जाता था कि परमाणु के वेग का वितरण स्थिर (मैक्सवेलियन) होता है। लेकिन असल में तारकीय वायुमंडल अत्यंत जटिल, गतिशील और असंतुलित होते हैं, जहां फोटॉन बिखरते हैं, ऊर्जा स्तर बदलते रहते हैं, और परमाणु की गति में असमानताएं होती हैं।
एफएनएलटीई मॉडल इन तमाम जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए एक बहु-स्तरीय परमाणु मॉडल प्रस्तुत करता है, जिसमें रमन स्कैटरिंग जैसी प्रक्रियाएं स्वाभाविक रूप से शामिल की जा सकती हैं – जिसे पहले केवल अनुमान से समझा जाता था।
मॉडल में क्या बदला?
नए मॉडल ने यह दिखाया कि:
उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणुओं का वेग वितरण तारकीय सतह के पास मैक्सवेलियन वक्र से काफी विचलित होता है।
इस विचलन का असर सीधे तौर पर तारों के स्पेक्ट्रम में दिखाई देता है – वहीं से खगोलविद तारे की रचना, तापमान और अन्य गुणों का अनुमान लगाते हैं।
भारतीय योगदान
IIA की वैज्ञानिक डॉ. एम. सम्पूर्णा, फ्रांसीसी खगोलविदों टी. लागाचे और एफ. पालेतोउ के साथ मिलकर, इस मॉडल को 2 और 3-स्तरीय परमाणु संरचनाओं पर लागू करने में सफल रही हैं। अब टीम इस तकनीक को और भी जटिल परमाणुओं और स्थितियों पर लागू करने के लिए नई संख्यात्मक योजनाएं विकसित कर रही है।
डॉ. सम्पूर्णा कहती हैं,
"यह मात्र एक तकनीकी विकास नहीं, बल्कि तारकीय संरचनाओं की समझ में एक वैचारिक छलांग है – जो ब्रह्मांड को देखने का हमारा नजरिया बदल सकती है।"
आगे क्या?
यह मॉडल तारों, ग्रहों, परितारकीय डिस्क, और अंतरतारकीय बादलों की भौतिकी को अधिक स्पष्टता से समझने में मदद करेगा।
यह बाह्यग्रहों (Exoplanets) की खोज में भी सहायक साबित होगा, क्योंकि सूक्ष्म ग्रहों का पता लगाने के लिए तारों के प्रकाश में परिवर्तन की अत्यधिक सटीक व्याख्या जरूरी है।
निष्कर्ष
खगोल विज्ञान की दुनिया में यह एक बड़ा कदम है – जहां अब कंप्यूटर मॉडल न केवल सरल अनुमान नहीं बल्कि तारों की वास्तविक, अराजक और गतिशील स्थिति को भी पकड़ने में सक्षम होते जा रहे हैं।
एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित इस शोध ने तारों के अध्ययन को एक नई दिशा दी है – और हमारे ब्रह्मांड को समझने की यात्रा को एक नई रफ्तार।