समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत प्राचीन काल में अध्यात्म और व्यापार दोनों क्षेत्रों में अग्रणी रहा है, और अब समय आ गया है कि देश एक बार फिर ज्ञान और व्यापार का वैश्विक केंद्र बने। उन्होंने ईईपीसी जैसे संगठनों से ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना के साथ कार्य करने की अपील की।
राष्ट्रपति ने देश के इंजीनियरिंग निर्यात में हुई प्रगति पर प्रसन्नता जताई। उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक में भारत का इंजीनियरिंग निर्यात 70 अरब डॉलर से बढ़कर 115 अरब डॉलर के पार पहुंच चुका है। वैश्विक व्यापार जगत में लगातार आई चुनौतियों के बीच यह वृद्धि बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उन्होंने इस उपलब्धि में EEPC की भूमिका की सराहना की।
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि ईईपीसी न केवल भारतीय उत्पादकों और वैश्विक बाजार के बीच सेतु का कार्य करता है, बल्कि यह भारत की वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भागीदारी बढ़ाने का भी माध्यम है। उन्होंने कहा कि बदलते वैश्विक व्यापार और आर्थिक परिदृश्य में ईईपीसी की जिम्मेदारी और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत में उपलब्ध असाधारण क्षमताओं का उपयोग कर वैश्विक व्यापार की चुनौतियों को अवसरों में बदला जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की इंजीनियरिंग सेवाएं और उत्पाद न केवल उच्च गुणवत्ता वाले हैं बल्कि कम लागत पर उपलब्ध होने के कारण देश की एक बड़ी ताकत हैं।
राष्ट्रपति ने EEPC और अन्य हितधारकों से भारत को एक वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए उपयुक्त इको-सिस्टम और प्रोत्साहन प्रदान करने की दिशा में काम करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि दुनिया की शीर्ष कंपनियों के ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स भारत में मौजूद हैं, जो देश की प्रतिभा और तकनीकी दक्षता का प्रमाण हैं।
समापन करते हुए राष्ट्रपति ने सभी हितधारकों से आह्वान किया कि वे देश की युवा प्रतिभा और नवाचार क्षमता को एक सशक्त मंच प्रदान करें, और भारत को दुनिया की अग्रणी नवाचार अर्थव्यवस्थाओं की पंक्ति में खड़ा करने का संकल्प लें।