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Tuesday, October 14, 2025

24JT News Desk / News Delhi /September 22, 2025

संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, के अनुसार अमेरिका के H-1B वीज़ा नियमों में हाल के बदलावों ने यह सवाल उठाया है कि क्या भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी के अवसर कम हो जाएंगे? साथ ही, क्या ये बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था और अमेरिकी कंपनियों पर भी असर डालेंगे? आइए, इस मुद्दे को संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, की मदद से आसान और समझने योग्य तरीके से समझते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय / क्या अमेरिका के एच-1B वीज़ा नियमों में बदलाव भारतीयों के लिए खतरे की घंटी हैं? और क्या इससे भारत की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ेगा? - संजय सक्सैना

भारत का योगदान: कितने भारतीय पेशेवर काम करते हैं अमेरिका में?


भारत, अमेरिका में एच-1B वीज़ा के तहत काम करने वाले पेशेवरों का सबसे बड़ा स्रोत है। आंकड़ों के अनुसार, 2023 में लगभग 74% एच-1B वीज़ा धारक भारतीय थे। इसका मतलब है कि अमेरिका में काम करने वाले अधिकांश विदेशी पेशेवर भारतीय हैं।
अमेरिका की बड़ी-बड़ी टेक कंपनियों में भारतीय पेशेवरों की उपस्थिति बहुत मजबूत है। Google, Microsoft, Intel, Apple, Amazon, Facebook (Meta), और Twitter जैसी कंपनियों में भारतीय पेशेवरों की संख्या बहुत अधिक है। Google और Microsoft जैसे दिग्गजों में तो भारतीय मूल के सीईओ तक हैं — सुंदर पिचाई (Google) और सत्या नडेला (Microsoft)।
इन कंपनियों में भारतीय पेशेवरों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। सिलिकॉन वैली जैसे प्रमुख तकनीकी हब में भारतीयों ने सॉफ्टवेयर, एआई, डेटा साइंस, और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों में अग्रणी भूमिका निभाई है।

अमेरिका में भारतीयों का योगदान: क्यों कंपनियां भारतीयों को हायर करती हैं?


अमेरिकन कंपनियों के लिए भारतीय पेशेवरों को हायर करने का एक मुख्य कारण है लागत (Cost)। भारतीय पेशेवर, विशेष रूप से आईटी और इंजीनियरिंग क्षेत्र में, अमेरिकी कर्मचारियों के मुकाबले काफी कम वेतन पर काम करते हैं। उदाहरण के तौर पर:
• Microsoft जैसी कंपनियों में, भारतीय सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों को वर्ष में औसतन $80,000-$120,000 (लगभग ₹66 लाख से ₹99 लाख) तक की सैलरी मिलती है, जो कि भारत में उनकी शिक्षा और अनुभव के हिसाब से बहुत ज्यादा है।
• वहीं, अमेरिकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की औसत सैलरी $150,000 (लगभग ₹1.24 करोड़) तक होती है, यानी भारतीय इंजीनियरों के मुकाबले लगभग 30-50% अधिक।

इसका मतलब यह हुआ कि अमेरिकी कंपनियां भारतीय पेशेवरों को कम वेतन में अत्यधिक कुशल श्रमिक प्राप्त करती हैं, जिससे उन्हें एक बड़ी लागत की बचत होती है। इसके साथ ही, भारतीयों के पास उच्चतम तकनीकी ज्ञान और विशेषज्ञता होती है, जिससे कंपनियां दुनिया भर में अपनी प्रतिस्पर्धा बनाए रख सकती हैं।

क्या भारतीय पेशेवर अमेरिका में अच्छे वेतन पर काम कर रहे हैं?


भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करना एक आकर्षक अवसर होता है, क्योंकि वे वहां के उच्च वेतनमान, प्रोफेशनल विकास के अवसर, और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्किंग से लाभान्वित होते हैं।
• उदाहरण के लिए, Google और Facebook जैसी कंपनियों में भारतीय सॉफ़्टवेयर इंजीनियर औसतन $120,000-$180,000 (लगभग ₹99 लाख से ₹1.5 करोड़) तक सालाना वेतन प्राप्त करते हैं।
• भारत में, यदि वे उतनी ही कुशलता के साथ काम कर रहे होते, तो उन्हें केवल ₹15 लाख-₹25 लाख सालाना मिलते।

अमेरिका में काम करने का एक अन्य बड़ा फायदा है कैरियर की वृद्धि के अवसर। पेशेवरों को वैश्विक स्तर पर काम करने का अनुभव मिलता है, और उनके करियर में तेजी से वृद्धि होती है।

अमेरिका में कंपनियों को भारतीयों को हायर करने से क्या लाभ मिलता है?


अमेरिकी कंपनियां भारतीय पेशेवरों की सस्ती लागत और उच्चतम कौशल के संयोजन का पूरा फायदा उठाती हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. लागत की बचत (Cost Efficiency): भारतीयों को अमेरिकी कर्मचारियों के मुकाबले सस्ती कीमत पर काम पर रखा जाता है, जिससे कंपनियां बड़ी संख्या में उच्चतम कौशल वाले पेशेवरों को नौकरी पर रख सकती हैं।
2. समय की बचत (Time Efficiency): भारतीय पेशेवर जल्द और प्रभावी ढंग से काम करते हैं, और इस प्रकार प्रोजेक्ट्स को जल्दी पूरा कर लेते हैं, जिससे कंपनियां अपने व्यवसाय को तेजी से बढ़ा सकती हैं।
3. वैश्विक दृष्टिकोण (Global Perspective): भारतीय पेशेवर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए काम करने के दौरान नवीन विचार और दृष्टिकोण लेकर आते हैं, जो अमेरिका की कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

क्यों एच-1B वीज़ा नियमों में बदलाव हो रहे हैं?


अब तक, अमेरिकी कंपनियां इस सस्ते और कुशल कार्यबल से भरपूर लाभ उठाती रही हैं। लेकिन, हाल ही में 2025 में हुए एच-1B वीज़ा नियमों में बदलाव ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है। नए नियमों के अनुसार:
• कंपनियों को यह साबित करना होगा कि अमेरिकी श्रमिकों के पास वही कौशल नहीं है जो विदेशी श्रमिकों के पास है।
• अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता दी जाएगी और कंपनियों को विदेशी श्रमिकों को भर्ती करने से पहले अमेरिकी श्रमिकों को नौकरी देने की कोशिश करनी होगी।
• कंपनियों को अधिक शुल्क चुकाने होंगे, जैसे $4,000 (₹3,30,000) अतिरिक्त शुल्क उन कंपनियों को देना होगा जिनके पास 50 से अधिक कर्मचारी हैं और उनमें से अधिकतर विदेशी श्रमिक हैं।

यह बदलाव अमेरिकी कंपनियों के लिए एक वित्तीय दबाव बना सकता है, और उन्हें भारतीय पेशेवरों को हायर करने में कठिनाई हो सकती है।

भारत के लिए क्या असर हो सकता है?


भारत के लिए इसका असर दो तरह से हो सकता है:
1. रोजगार के अवसर: अधिक भारतीय पेशेवर अब भारत में काम करने के लिए लौट सकते हैं, जिससे भारतीय कंपनियों को कुशल श्रमिक मिल सकते हैं और स्थानीय तकनीकी उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है।
2. प्रवासी आय में कमी: यदि अमेरिकी कंपनियां भारतीय पेशेवरों को कम हायर करती हैं, तो प्रवासी आय (जो भारत में भेजी जाती है) में कमी हो सकती है। यह भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।

क्या भारत और अमेरिका दोनों इस बदलाव से नुकसान उठाएंगे?


यह बदलाव अमेरिका और भारत दोनों के लिए नफे-नुकसान का खेल बन सकता है:
• अमेरिका: अगर कंपनियां विदेशी श्रमिकों को कम हायर करती हैं, तो इससे तकनीकी विकास और नवाचार पर असर पड़ सकता है।
• भारत: अगर भारतीय पेशेवरों को अमेरिका में नौकरी के अवसर कम मिलते हैं, तो भारत में स्थानीय रोजगार बढ़ सकता है, लेकिन प्रवासी आय में कमी हो सकती है।

संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक के अनुसार अमेरिका के लिए, भारतीय पेशेवरों की सस्ती लागत और उच्चतम कौशल का लाभ उठाना बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन अगर यह बदलाव लागू होते हैं, तो अमेरिकन कंपनियों के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं। दूसरी तरफ, भारत को भी इस बदलाव के साथ-साथ स्थानीय विकास के अवसर मिल सकते हैं।
"क्या भारत अपनी आंतरिक शक्ति का सही उपयोग कर पाएगा, और अमेरिका अपने विकास के लिए भारतीय पेशेवरों पर निर्भरता कम कर पाएगा?"
यह सवाल अब दोनों देशों के सामने है, और इसके जवाब से ही आने वाले वर्षों में दोनों देशों की आर्थिक रणनीतियां तय होंगी।


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