मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में सुनवाई की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की बेंच में न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन भी शामिल थे। अदालत ने कहा कि वह इस मामले में अंतरिम आदेश पर विचार कर रही है और सुनवाई गुरुवार 17 अप्रैल को दोपहर 2 बजे फिर से होगी।
क्या है वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025?
इस अधिनियम को अप्रैल 2025 की शुरुआत में संसद में पारित किया गया था। 3 अप्रैल को लोकसभा में विधेयक के पक्ष में 288 और विपक्ष में 232 वोट पड़े, वहीं 4 अप्रैल को राज्यसभा में यह 128 के मुकाबले 95 मतों से पारित हुआ।
संशोधन अधिनियम में 'वक़्फ़ बाय यूज़र' की अवधारणा को समाप्त किया गया है, जिसके तहत लंबे समय से मुस्लिम धार्मिक कार्यों में प्रयुक्त संपत्तियों को वक़्फ़ माना जाता था, भले ही वे आधिकारिक रूप से पंजीकृत न हों। साथ ही वक़्फ़ परिषद और बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान भी जोड़ा गया है।
कौन-कौन हैं याचिकाकर्ता?
सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने वाली कुल 100 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें प्रमुख रूप से एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, आप नेता अमानतुल्ला खान, रजद नेता मनोज झा, समाजवादी पार्टी नेता जिया-उर-रहमान बर्क, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा और अन्य नागरिक अधिकार संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं — कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन और सीयू सिंह ने पक्ष रखा। सिब्बल ने अदालत से कहा कि वक़्फ़ परिषद में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो धार्मिक संस्थाओं को अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
सिब्बल ने कहा, "यह कानून एक विशेष धर्म के मूल और आवश्यक अंग में हस्तक्षेप करता है। इस तरह के संशोधन भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर सीधा आघात करते हैं।"
सीजेआई का तीखा सवाल
सुनवाई के दौरान जब सरकार के वकील, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक़्फ़ परिषदों में विविधता की बात की, तो सीजेआई खन्ना ने प्रतिप्रश्न किया —
"क्या आप मुसलमानों को भी हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती बोर्डों में शामिल करने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं? इसे स्पष्ट रूप से कहें।"
विवादास्पद प्रावधानों पर अदालत की चिंता
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 'यूज़र बाय वक़्फ़' को खत्म करने से गंभीर प्रभाव होंगे। उन्होंने कहा कि जब कोई संपत्ति 100-200 साल से सार्वजनिक धार्मिक कार्यों के लिए प्रयुक्त हो रही हो, तो उसे अचानक से गैर-वक़्फ़ घोषित नहीं किया जा सकता।
"आप इतिहास को फिर से नहीं लिख सकते," उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा।
वकील सिंघवी ने अदालत को बताया, "हमने सुना है कि संसद की इमारत भी वक़्फ़ संपत्ति पर बनी है। अगर ऐसा है, तो क्या संसद को भी खाली कराएंगे?"
सरकार का पक्ष
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने तर्क दिया कि कानून को संसद की स्थायी समिति ने अनुमोदित किया है और इसे विधिवत प्रक्रिया से पारित किया गया। उन्होंने कहा कि यह सुधार पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए लाए गए हैं।
संभावित अंतरिम आदेश
मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने संकेत दिया कि अदालत तीन प्रमुख बिंदुओं पर अंतरिम राहत दे सकती है:
1. यूज़र बाय वक़्फ़ को समाप्त करने वाले प्रावधान को तत्काल प्रभाव से लागू नहीं किया जाएगा।
2. कलेक्टर वक़्फ़ संपत्ति से संबंधित कार्यवाही तो कर सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय नहीं देंगे।
3. वक़्फ़ परिषद में पदेन (ex-officio) सदस्य हो सकते हैं, लेकिन अन्य नियुक्त सदस्य मुस्लिम ही होंगे।
हिंसा और प्रतिक्रिया
अदालत ने कानून पारित होने के बाद देश के कुछ हिस्सों में भड़की हिंसा की निंदा की और कहा कि "न्यायिक प्रक्रिया से बाहर जाकर विरोध प्रदर्शन करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।"
अगली सुनवाई:
तारीख: 17 अप्रैल 2025
समय: दोपहर 2 बजे
स्थान: सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली