एक साधारण गृहिणी, जो रोटी बनाते हुए भी गुरुमंत्र का जाप करती थी, ने अनजाने में अपने जीवन में आध्यात्मिक शक्ति का संचय कर लिया था। एक दिन अचानक उसके आठ वर्षीय बेटे के साथ एक भयानक हादसा हुआ। आंगन में खेलते हुए बच्चा ऊपर से गिर पड़ा और खून से लथपथ हो गया। मां का कलेजा कांप उठा। घर में कोई नहीं था, और हाल ही में हुए अपेंडिक्स ऑपरेशन के कारण वह खुद भी कमजोर थी। फिर भी, ममता और गुरुमंत्र की शक्ति ने उसे ऐसी ताकत दी कि उसने अपने 20-22 किलो के बेटे को गोद में उठाया और आधा किलोमीटर दौड़कर नर्सिंग होम पहुंच गई।
रास्ते में वह अपने गुरुदेव को कोसती रही, परंतु चमत्कार तब सामने आया जब समय पर इलाज हो गया। डॉक्टर, जो सामान्यत: दोपहर 2 बजे तक ही उपलब्ध रहते थे, उस दिन साढ़े तीन बजे तक रुके थे, मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें रोका हो। बच्चे की चोटें गहरी नहीं थीं, और वह जल्द ही ठीक हो गया।
रात को जब मां ने दिन की घटनाओं पर विचार किया, तो उसे गुरुकृपा का अहसास हुआ। जिस आंगन में बेटा गिरा, वहां पहले एक पुराना हैंडपंप का पाइप था, जिसे ठीक एक दिन पहले हटाया गया था। अगर वह पाइप वहां होता, तो हादसा और गंभीर हो सकता था। फिर, ऑपरेशन के बाद कमजोर होने के बावजूद, उसे बेटे को उठाने और दौड़ने की शक्ति कहां से मिली? यह सब गुरुमंत्र की साधना और गुरुदेव की कृपा का परिणाम था।
साध्वी शालिनीनंद महाराज कहती हैं, *"गुरुमंत्र केवल शब्द नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति है, जो संकट के समय ढाल बनकर खड़ी होती है। गुरुदेव संकट को रोक नहीं सकते, क्योंकि वह कर्म का हिस्सा है, लेकिन वह हमें उसे पार करने की शक्ति जरूर देते हैं।"*
इस घटना ने उस मां का विश्वास और गहरा कर दिया। उसने मंदिर में गुरुदेव की छवि को देखा, जो मुस्कुरा रही थी, मानो कह रही हो कि गुरुकृपा कोई खैरात नहीं, बल्कि साधना और श्रद्धा का फल है।
यह कथा हमें सिखाती है कि नियमित गुरुमंत्र जाप और गुरु के प्रति श्रद्धा हमें जीवन के हर संकट में विजयी बना सकती है। - साध्वी शालिनीनंद महाराज