राज्यपाल ने इस साझेदारी को ‘विकसित भारत @2047’ के दृष्टिकोण से जोड़ते हुए इसे उत्तराखंड के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम बताया। उन्होंने कहा, "एनआरडीसी और दून विश्वविद्यालय के बीच यह पहला औपचारिक करार है, जो राज्य में शिक्षा और उद्योग के बीच सहयोग की मिसाल बनेगा।"
राज्यपाल ने आगे कहा कि अब विश्वविद्यालयों को पारंपरिक शैक्षणिक भूमिका से आगे बढ़ते हुए नवाचार और अनुसंधान के केंद्र के रूप में उभरना होगा। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि विश्वविद्यालयों की बौद्धिक संपदा का संरक्षण और उसका व्यावसायीकरण छात्रों, उद्यमियों और राज्य की अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ देगा।
एनआरडीसी के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक कमोडोर अमित रस्तोगी (सेवानिवृत्त) ने अपने संबोधन में कहा कि एनआरडीसी दून विश्वविद्यालय को पेटेंटिंग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नवाचारों के व्यावसायीकरण में पूर्ण सहयोग देगा। उन्होंने कहा, "यह साझेदारी शैक्षणिक और औद्योगिक क्षेत्रों के बीच संवाद और सहयोग को नई दिशा देगी। इससे शोधकर्ताओं को अपनी खोजों को बाज़ार के लिए उपयोगी उत्पादों में बदलने में सहायता मिलेगी, साथ ही छात्रों में स्टार्टअप और उद्यमिता की मानसिकता को भी बढ़ावा मिलेगा।"
दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि विश्वविद्यालय का झुकाव बौद्धिक संपदा-संचालित अनुसंधान की ओर है, विशेषकर पर्यावरण, डिज़ाइन और विज्ञान के क्षेत्रों में। उन्होंने कहा, "एनआरडीसी के साथ यह सहयोग हमारी शोध क्षमता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा और उत्तराखंड को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करेगा।"
इस महत्वपूर्ण अवसर पर राज्यपाल के सचिव श्री रविनाथ रमन (आईएएस), अपर सचिव श्रीमती रीना जोशी (आईएएस), एनआरडीसी के डीजीएम श्री एन. जी. लक्ष्मीनारायण, दून विश्वविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ निदेशक डॉ. अरुण कुमार, वित्त नियंत्रक श्रीमती स्मृति खंडूरी, रजिस्ट्रार श्री दुर्गेश डिमरी, विभिन्न संकायों के डीन, शोधार्थी एवं मीडिया प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।
इस साझेदारी से उम्मीद है कि उत्तराखंड में स्टार्टअप संस्कृति, उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान, तथा उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। यह मॉडल राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी एक प्रेरणा बनेगा।