विशेषज्ञों की टीम ने भारत में पाई जाने वाली काले बिच्छू की एक कम ज्ञात प्रजाति — Heterometrus bengalensis — के विष की संरचना को गहराई से समझा और पहली बार सामने लाया कि इसके डंक में 8 प्रमुख प्रोटीन परिवारों से जुड़े कुल 25 अलग-अलग प्रकार के ज़हरीले तत्व होते हैं।
IASST के निदेशक प्रो. आशीष के. मुखर्जी और प्रमुख शोधकर्ता सुश्री सुस्मिता नाथ के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में यह साफ हुआ कि बिच्छू का ज़हर न सिर्फ तत्काल दर्द और सूजन का कारण बनता है, बल्कि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अत्यधिक सक्रिय कर, लीवर को नुकसान पहुंचाने वाली प्रणालीगत विषाक्तता और गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया तक उत्पन्न कर सकता है।
क्यों है यह खोज अहम?
उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में बिच्छू के डंक से हर साल हजारों लोग प्रभावित होते हैं। इसके बावजूद, आज तक इस विषय में सीमित वैज्ञानिक शोध हुए हैं। इस रिसर्च से यह स्पष्ट हुआ है कि यह सिर्फ एक दर्दनाक डंक नहीं, बल्कि शरीर के अंदर गंभीर जैविक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करने वाला ज़हर है।
प्रयोगशाला में स्विस एल्बिनो चूहों पर किए गए परीक्षणों से पता चला कि जैसे ही यह ज़हर शरीर में प्रवेश करता है, लीवर एंजाइम का स्तर बढ़ने लगता है, अंगों में सूजन और नुकसान होने लगता है और पूरी शरीर प्रणाली पर इसका नकारात्मक असर दिखाई देता है।
जैविक, रासायनिक और औषधीय दृष्टि से इस अध्ययन को 'एकीकृत कार्यप्रवाह' के रूप में पेश किया गया है, जो कि न केवल बिच्छू विष के गहरे विश्लेषण की दिशा में एक मील का पत्थर है, बल्कि भविष्य में इसके उपचार और एंटीवेनम तैयार करने के लिए भी एक अहम आधार बनेगा।
यह अध्ययन प्रतिष्ठित International Journal of Biological Macromolecules में प्रकाशित हुआ है और यह भारत में पाए जाने वाले बिच्छुओं के ज़हर पर हुआ सबसे व्यापक शोध माना जा रहा है।