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Friday, June 20, 2025

24JT News Desk / New Delhi /May 1, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले केंद्र सरकार ने एक अहम निर्णय लेते हुए घोषणा की है कि आगामी दशकीय जनगणना में जाति आधारित गणना भी शामिल की जाएगी। यह फैसला राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने इसी मांग को समाज को विभाजित करने वाला कदम बताकर ठुकरा दिया था।

राजनीति / बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार का बड़ा कदम: दशकीय जनगणना में शामिल होगी जाति आधारित गणना, लेकिन समयसीमा तय नहीं

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक के बाद जानकारी दी कि कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) ने यह निर्णय लिया है कि आगामी जनगणना में जातीय आंकड़े शामिल किए जाएंगे। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जनगणना या जाति गणना की कोई समयसीमा तय नहीं की गई है।

भारत में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, जबकि 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण अब तक स्थगित है।

### राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू

वैष्णव ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ पर आरोप लगाया कि वह जातिगत जनगणना को राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकारें ऐतिहासिक रूप से जाति जनगणना का विरोध करती रही हैं।

उन्होंने 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लोकसभा में दिए गए उस बयान का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कैबिनेट में जाति जनगणना पर विचार होगा। लेकिन अंततः केवल एक सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण (SECC) किया गया।

गृहमंत्री अमित शाह ने इस कदम को “ऐतिहासिक” बताया और कहा कि यह फैसला सामाजिक समरसता और समावेश की दिशा में सरकार की मजबूत प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने दशकों तक सत्ता में रहते हुए जाति जनगणना का विरोध किया और अब विपक्ष में इस पर राजनीति कर रहे हैं।”

### संवैधानिक संदर्भ और राज्य स्तरीय उदाहरण

वैष्णव ने संविधान के अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची का हवाला देते हुए कहा कि जनगणना संघीय विषय है। हालांकि कुछ राज्यों — जैसे बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक — ने जाति आधारित सर्वेक्षण पहले ही करा लिए हैं।

बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर 2023 को जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए थे, जिनके अनुसार OBC और EBC वर्ग की जनसंख्या 63% से अधिक है। इसके बाद राज्य सरकार ने आरक्षण सीमा 50% से ऊपर बढ़ाने का कानून पारित किया, जो फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

### चुनावी रणनीति में बदलाव का संकेत?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय बिहार जैसे जाति-आधारित राजनीतिक राज्य में भाजपा के बदले हुए रुख को दर्शाता है। 2024 में भाजपा ने इस मांग को नकारा था, जबकि अब केंद्र सरकार ने खुद इसे लागू करने की घोषणा की है।

क्या यह निर्णय सामाजिक समावेश की ओर एक कदम है, या फिर चुनावी राजनीति का हिस्सा? — इसका उत्तर आगामी महीनों में बिहार के राजनीतिक परिदृश्य से साफ होगा।

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