आज हम इस समस्या की गहराई में उतरेंगे। भारत में सौर ऊर्जा का क्षेत्र तेजी से बढ़ा है, लेकिन अब कई चुनौतियां सामने आ रही हैं। उत्पादन क्षमता बहुत ज्यादा हो गई है, जबकि मांग कम है। ग्रिड में बिजली डालने में समस्या हो रही है, और निर्यात भी घट रहा है। हम सरकारी प्रयासों, कंपनियों की स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर भी नजर डालेंगे। यह विश्लेषण नवीनतम आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है।
सौर क्षेत्र: निवेशकों में उत्साह जगाने वाला रिटर्न
पिछले कुछ वर्षों में सौर ऊर्जा क्षेत्र ने निवेशकों को बहुत आकर्षित किया। कई कंपनियों ने तेज विस्तार, बड़े प्रोजेक्ट्स और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के कारण बाजार में मजबूत जगह बनाई। इनमें मुख्य हैं:
- अदानी ग्रीन एनर्जी
- टाटा पावर
- वरी एनर्जी और वरी रिन्यूएबल टेक्नोलॉजीज
- विक्रम सोलर
- बोरोसिल रिन्यूएबल्स
- वेबसोल एनर्जी
- केपीआई ग्रीन एनर्जी
इन कंपनियों के शेयरों ने लंबे समय में अच्छी तेजी दिखाई। सरकार के स्वच्छ ऊर्जा को समर्थन, उत्पादन बढ़ाने की नीतियां और भविष्य की बढ़ती मांग ने निवेशकों का विश्वास मजबूत किया। लेकिन अब कहानी बदल रही है। बाजार में अधिक आपूर्ति (ओवरसप्लाई) और ग्रिड की समस्याओं के कारण शेयरों में गिरावट आ रही है।
उत्पादन तेज, लेकिन मांग सीमित – यही मुख्य समस्या
भारत में सौर मॉड्यूल और सौर सेल बनाने वाली फैक्टरियां इतनी तेजी से बढ़ीं कि उनकी कुल उत्पादन क्षमता सालाना मांग और नई परियोजनाओं से कहीं ज्यादा हो गई। 2025 में भारत की सौर मॉड्यूल उत्पादन क्षमता 125 गीगावाट से ज्यादा होने की उम्मीद है, जबकि घरेलू मांग सिर्फ 40 गीगावाट के आसपास है। मार्च 2025 तक क्षमता 74 गीगावाट थी, जो 110 गीगावाट से ज्यादा होने वाली है।
यह "सौर अधिकता" की स्थिति है, जहां उत्पाद इतने ज्यादा बन जाते हैं कि बाजार उन्हें खरीद नहीं पाता। परिणामस्वरूप, इन्वेंटरी (स्टॉक) बढ़ रही है – 2025-26 की तीसरी तिमाही तक 29 गीगावाट का स्टॉक जमा होने की आशंका है। कीमतें गिर रही हैं, और कारखाने अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे।
बिजली बनकर भी बेकार – कटौती दर बढ़ रही है
कई राज्यों में सौर बिजली की कटौती (कर्टेलमेंट) बढ़ रही है, यानी बनाई गई बिजली का बड़ा हिस्सा ग्रिड में नहीं डाला जा पा रहा। अक्टूबर 2025 में सौर उत्पादन की कटौती दर 12% तक पहुंच गई, जो मई के बाद सबसे ज्यादा है। कुछ दिनों में 40% तक उत्पादन रोकना पड़ा।
कारण: ग्रिड ओवरलोड हो रहा है, ट्रांसमिशन लाइनों की कमी है, और कोयला प्लांट्स को तेजी से बंद नहीं किया जा सकता। राजस्थान और तमिलनाडु जैसे सौर-समृद्ध राज्यों में यह समस्या ज्यादा है। औद्योगिक क्षेत्रों में गोदाम सौर पैनलों से भरे हैं, लेकिन लगाने वाले ग्राहक कम हैं। इससे निर्माताओं पर वित्तीय दबाव बढ़ रहा है।
दस वर्षों की तेज प्रगति और अब अचानक रुकावट
पिछले दशक में भारत ने सौर क्षमता को बहुत तेजी से बढ़ाया:
- शुरुआती वर्षों में क्षमता सीमित थी।
- 2023 में 68 गीगावाट से बढ़कर 2025 में 125 गीगावाट से ज्यादा।
- मई 2025 तक 110.8 गीगावाट सौर क्षमता जुड़ी।
- भारत दुनिया के प्रमुख सौर ऊर्जा देशों में शामिल है, IRENA के अनुसार चौथे स्थान पर।
- मॉड्यूल और सेल उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई।
लेकिन प्रोजेक्ट्स की स्थापना उत्पादन की रफ्तार से नहीं चल सकी। 50 गीगावाट सौर और पवन प्रोजेक्ट्स खरीदार के बिना फंसे हैं। इससे उपकरणों की अधिकता, कीमतों में गिरावट, कारखानों का कम उपयोग (कई सिर्फ 20% क्षमता पर चल रहे), और स्टॉक जमा हो रहा है।
विदेशी बाजार भी कमजोर – निर्यात पर झटका
भारत के सौर उत्पादों के लिए अमेरिका जैसे वैश्विक बाजार महत्वपूर्ण थे। लेकिन ऊंचे शुल्क, सख्त नियम और बदलावों ने मांग कम की। 2025 की पहली छमाही में अमेरिका को निर्यात 52% गिरा। ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने समस्या बढ़ाई। चीन की ओवरसप्लाई ने वैश्विक कीमतें गिराईं। निर्यात घटने से घरेलू बाजार पर दबाव बढ़ा।
कौन सबसे ज्यादा प्रभावित?
बड़ी और बहु-स्तरीय कंपनियां बेहतर स्थिति में:
अदानी, टाटा पावर, वरी और विक्रम सोलर जैसी कंपनियां उत्पादन से प्रोजेक्ट्स तक कई स्तरों पर काम करती हैं। विविधता से वे घाटे को संतुलित कर लेती हैं। एकीकृत आईपीपी (इंडिपेंडेंट पावर प्रोड्यूसर्स) लंबी अवधि के PPA (पावर पर्चेज एग्रीमेंट) से स्थिर रहती हैं।
छोटी और एकल-उत्पाद कंपनियां ज्यादा प्रभावित:
- सिर्फ मॉड्यूल या सेल बनाने वाली।
- सीमित पूंजी और वैश्विक पहुंच।
- स्टोरेज लागत बढ़ रही।
- उत्पादन क्षमता का कम उपयोग (20% के आसपास)।
आईसीआरए के अनुसार, ओवरकैपेसिटी से शेक-अप होगा, और केवल बड़े, कम लागत वाले खिलाड़ी बचेंगे।
छतों पर सौर प्रणाली की चुनौतियां
रूफटॉप सौर में बड़ी संभावनाएं हैं, लेकिन बाधाएं रफ्तार कम कर रही हैं:
- शुरुआती लागत ज्यादा।
- तकनीकी जानकारी और जागरूकता की कमी।
- बिजली कंपनियों के जटिल नियम।
- नेट-मीटरिंग में राज्य-वार अलग प्रावधान।
- ग्रिड कनेक्शन में कठिनाई।
शहरी क्षेत्रों में मुख्य चुनौतियां: छाया, जगह की कमी, संरचनात्मक मुद्दे। जब रूफटॉप धीमा हो, बड़े प्रोजेक्ट्स सीमित हों और निर्यात घटे, तो उत्पादन का दबाव बढ़ जाता है।
सरकारी प्रयास संकट कम कर पाएंगे?
सरकार ने कई कदम उठाए:
- उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI स्कीम), जो इतनी प्रभावी हुई कि ओवरकैपेसिटी हो गई।
- राष्ट्रीय सौर मिशन।
- बड़े पैमाने पर सरकारी खरीद।
- ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट्स से मांग बढ़ाना।
- बेहतर ट्रांसमिशन नेटवर्क।
- बैटरी स्टोरेज को जरूरी बनाना, जो कटौती कम करेगा।
लेकिन वर्तमान चुनौतियां जल्दी खत्म नहीं होंगी। सरकार रिन्यूएबल टेंडर्स को अस्थायी रूप से धीमा कर रही है, क्योंकि उत्पादन अवशोषण क्षमता से ज्यादा है। ISTS चार्जेस वेवर जून 2025 के बाद खत्म होने से ग्रीन पावर महंगी हो सकती है।
महत्वपूर्ण विचार और प्रश्न
भारत सौर ऊर्जा पर आधारित भविष्य की ओर बढ़ रहा है, लेकिन यह अतिरिक्त क्षमता क्या सिर्फ अस्थायी बाधा है? या उद्योग को रणनीति, उत्पादन, निर्यात और बाजार व्यवस्था नए सिरे से सोचनी पड़ेगी? ग्रिड कंजेशन मुख्य बाधा है। लंबे समय में, स्टोरेज, स्मार्ट डिस्पैच और ट्रांसमिशन सुधार जरूरी हैं।
क्या भारत सूर्य की इस अपार शक्ति को स्थायी अवसर में बदल पाएगा, या चमक और मंद पड़ेगी? यह समय बताएगा, लेकिन कार्रवाई अब जरूरी है।