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Saturday, April 26, 2025

24JT News Desk / New Delhi /April 22, 2025

नई दिल्ली — भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को लेकर दिए गए विवादास्पद बयान पर अब कानूनी कार्रवाई की मांग तेज़ हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगी है।

फोटो कोलाज : निशिकांत दुबे विकिपीडिया और सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट
राष्ट्रीय / भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयान पर बढ़ा विवाद, सुप्रीम कोर्ट की अवमानना को लेकर एजी को पत्र

तनवीर के अनुसार, दुबे की टिप्पणी "सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाली" है और "सर्वोच्च न्यायालय की निष्पक्षता पर सीधा हमला" करती है, जो अदालत की गरिमा को क्षति पहुंचाने की मंशा से की गई है।

क्या कहा था निशिकांत दुबे ने?
भाजपा सांसद ने 19 अप्रैल को एक बयान में कहा था कि देश में “सभी गृहयुद्धों के लिए मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार हैं” और “धार्मिक युद्धों के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है।” इस बयान को लेकर कानूनी हलकों में गंभीर आपत्ति जताई गई है।

क्या है अवमानना का आरोप?
वकील अनस तनवीर ने अपने पत्र में लिखा:

“यह टिप्पणी न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि यह जनता में न्यायपालिका के प्रति अविश्वास पैदा करने और न्यायिक स्वतंत्रता को सांप्रदायिक नजरिए से देखने के लिए प्रेरित करती है।”

पत्र में कहा गया है कि ये बयान अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी)(आई) के तहत आपराधिक अवमानना के अंतर्गत आते हैं, क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का प्रयास करते हैं।

भाजपा की प्रतिक्रिया
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सफाई देते हुए कहा कि पार्टी न तो दुबे के बयान से सहमत है, न ही उनका समर्थन करती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पार्टी उनके खिलाफ कोई आंतरिक अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी या नहीं।

समर्थन और राजनीतिक स्वर
भाजपा की बंगाल विधायक अग्निमित्रा पॉल ने दुबे का खुलकर समर्थन किया और कहा कि:

“अगर देश को सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट चला रहे हैं तो संसद की कोई जरूरत नहीं है।”

व्यापक संदर्भ: न्यायपालिका बनाम विधायिका
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुनवाई कर रहा है। साथ ही, कुछ दिन पहले ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी अनुच्छेद 142 पर टिप्पणी करते हुए इसे "लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल" कहा था।

गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति के पास अनिश्चितकाल तक फाइलें लंबित रखने का अधिकार नहीं है, जिसे संघीय ढांचे की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ी पहल माना जा रहा है।

विश्लेषण:
न्यायपालिका की स्वायत्तता और विधायिका के अधिकारों के बीच संतुलन भारतीय लोकतंत्र की संवेदनशील रेखा है। ऐसे में निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा की गई किसी भी बयानबाज़ी की कानूनी और नैतिक समीक्षा आवश्यक हो जाती है। यदि इस मामले में अवमानना की कार्यवाही आगे बढ़ती है, तो यह न केवल एक कानूनी दिशा तय करेगी, बल्कि सार्वजनिक संवाद की मर्यादा पर भी एक मिसाल बन सकती है।

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