प्रवचन का सार: मानव जीवन का गहरा दर्शन
साध्वी शालिनीनंद जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि प्राणीमात्र को केवल वर्तमान की स्थूल देह और उससे जुड़े अहंकार का ही भान रह गया है। वे बोले:
"मैं कौन हूँ, मैं कौन था और मैं कौन रहूँगा, यह भान नहीं है। प्राणीमात्र को केवल वर्तमान की स्थूल देह और उसकी अहं सत्ता का भान है। कर्म योग से प्राप्त वस्तुओं के कारण कोई अहंकार में डूबा है, तो कोई अभावों में रोता है। लेकिन कोई इस चक्र से बाहर या पार नहीं पाता।"
उन्होंने मानव जीवन को एक मायावी संसार का हिस्सा बताया, जहाँ लोग धन, सुख, और भौतिक उपलब्धियों के पीछे भागते हैं, लेकिन अपनी आत्मा और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूल जाते हैं। साध्वी जी ने जोर देकर कहा कि गरीब हमेशा गरीब और अमीर हमेशा अमीर नहीं रहता; यह सब भाग्य और कर्मों का खेल है, जिसे कोई बदल नहीं सकता।
"भाग्य ने जो दे दिया, उसे कोई मिटा, घटा या बढ़ा नहीं सकता। चाहे कितना पूजा-पाठ या कर्मकांड कर ले, परमात्मा ने जो लिख दिया, वही होता है।"
कर्म और अहंकार का बंधन
साध्वी जी ने मानव जीवन में अहंकार और भौतिक लालसाओं को सबसे बड़ा बंधन बताया। उन्होंने कहा कि लोग खाने, पीने, सोने, सैक्स, धन संचय, और अहंकार को बढ़ाने में ही आनंद लेते हैं। वे उच्चतर चेतना या आत्मिक उद्देश्य के बारे में न तो सोचते हैं और न ही सोचना चाहते हैं।
"हर कोई पागल सा हुआ नया किरदार निभाने को ललायित है। जो है, वो समझ में नहीं आता। जो था, वो यहाँ क्यों है, और इसके बाद कहाँ जायेगा, इसका भी भान नहीं।"
उन्होंने इस प्रवृत्ति को "मूर्खता" करार देते हुए कहा कि लोग स्वयं को समझदार समझते हैं, लेकिन उनकी हरकतें पागलों जैसी हैं। साध्वी जी ने उदाहरण दिया कि लोग घर में आटा खत्म होने पर तुरंत इंतजाम करते हैं, लेकिन जीवन की साँसों की पूंजी खत्म होने और मृत्यु के बाद के परिणामों की चिंता नहीं करते।
"कहता है, जो होगा देख लेंगे। लेकिन जब कैंसर जैसी बीमारी होती है, तो जीने की इच्छा करता है। जब दुख बढ़ता है, तो मृत्यु की दुआ माँगता है। फिर ‘जो होगा देख लेंगे’ क्यों नहीं कहता?"
आत्मा को पहचानने की पुकार
साध्वी शालिनीनंद जी ने जोर देकर कहा कि मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है स्वयं को जानना। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हम यह देह हैं या आत्मा? क्या ईश्वर ने हमें हमारे कर्मों का दंड देने के लिए बनाया है, या हमें भक्ति और सत्कर्म के लिए साधनों से युक्त किया है?
"यदि यह हमारा आखिरी जन्म है, तो सत्कर्म करें तो मोक्ष मिले, और बुरे कर्म करें तो फिर लख चौरासी का चक्र भोगना पड़ेगा। लेकिन मनुष्य की सोच गोबर के कीड़े की तरह गोबर में ही आनंद लेती है।"
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मनुष्य जीते-जी अपनी आत्मा को नहीं पहचानता, तो मृत्यु के बाद उसका शरीर धराशायी हो जाएगा, और आत्मा यातनाएँ भोगेगी।
"यदि बचना चाहते हो, तो जीते-जी समय है। स्वयं को जानो, देखो कि तुम आत्मा हो या शरीर। यदि आत्मा तत्व को देखने में कामयाब रहे, तो उद्धार की ओर बढ़ पाओगे।"
तंत्र-मंत्र और पूजा-पाठ की सीमाएँ
साध्वी जी ने स्पष्ट किया कि तंत्र, मंत्र, यंत्र, पूजा-पाठ, और तीर्थयात्राएँ केवल सच्चे मन से की जाएँ, तो वे दरवाजे तक पहुँचा सकती हैं। लेकिन यदि ये दिखावे के लिए हैं, तो भगवत् प्राप्ति असंभव है।
"तुम जो तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ, तीर्थ में लगे हो, यह केवल दरवाजे तक पहुँचा सकता है, वो भी सच्चे मन से। यदि दिखावा हुआ, तो यहीं तक नहीं जा पाओगे। भगवत् प्राप्ति तो भूल ही जाओ।"
उन्होंने यह भी कहा कि जीवन ईश्वर का दिया हुआ है, और उसने हमें उसके पास पहुँचने के लिए केवल इस जन्म की मोहलत दी है। समय पर ईश्वर यह जीवन छीन लेगा, और हमने जो समय काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, और धन संचय में गँवाया, उसका हिसाब देना होगा।
"ईश्वर इसका हिसाब लेंगे और उसके अनुसार फल देंगे। समय रहते संभल जाओ, तुम कौन हो जानो, यहाँ क्यों हो जानो, और यदि सही दिशा में काम नहीं किया, तो तुम्हारे साथ क्या होगा, यह भी जानो।"
माया का संसार और समय की कीमत
साध्वी जी ने मानव जीवन को माया का संसार बताया, जहाँ हर क्षण का हिसाब देना पड़ता है। उन्होंने कहा कि लोग भौतिक सुखों और अहंकार में डूबे रहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि यह संसार क्षणभंगुर है।
"यह माया का संसार है, यहाँ एक-एक क्षण का हिसाब और कीमत चुकानी पड़ती है।"
उन्होंने लोगों से अपील की कि वे समय रहते आत्म-चिंतन करें, सत्कर्म अपनाएँ, और सद्गुरु की कृपा से अपने उद्धार का मार्ग खोजें।
"सद्गुरु की कृपादृष्टि से आगे के रास्ते खुल जाएँगे, नहीं तो अधोगति के सिवा कुछ न मिलेगा।"
प्रवचन का प्रभाव और सामाजिक संदेश
साध्वी शालिनीनंद जी महाराज का यह प्रवचन आज के भौतिकवादी और तनावपूर्ण युग में एक जागृति का आह्वान है। उनके संदेश ने न केवल आध्यात्मिक साधकों, बल्कि आम लोगों में भी आत्म-चिंतन को प्रेरित किया है। उनके प्रवचन के कुछ प्रमुख बिंदु जो सामाजिक स्तर पर चर्चा का विषय बने हैं:
आत्म-जागृति की आवश्यकता: साध्वी जी ने लोगों से अपील की कि वे अपनी आत्मा को पहचानें और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझें।
अहंकार का त्याग: भौतिक उपलब्धियों और अहंकार को छोड़कर सत्कर्म और भक्ति को अपनाने की सलाह दी।
कर्मफल का सिद्धांत: यह समझाया कि भाग्य और कर्मों का फल अटल है, और सत्कर्म ही मोक्ष का मार्ग है।
समय की कीमत: जीवन की नश्वरता को रेखांकित करते हुए समय रहते सही दिशा में कदम उठाने का आह्वान किया।
महंत साध्वी शालिनीनंद जी महाराज का यह प्रवचन मानव जीवन की गहराइयों को छूता है और हर व्यक्ति को आत्म-चिंतन के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जीवन ईश्वर का दिया हुआ एक अवसर है, जिसे काम, क्रोध, लोभ, और अहंकार में गँवाने के बजाय सत्कर्म और भक्ति में लगाना चाहिए।
उनका संदेश है:
"तुम कौन हो, जानो। यहाँ क्यों हो, जानो। और यदि सही दिशा में काम नहीं किया, तो तुम्हारे साथ क्या होगा, यह भी जानो।"
साध्वी जी ने चेतावनी दी कि माया का यह संसार क्षणभंगुर है, और समय रहते आत्म-उद्धार का मार्ग अपनाना ही सच्ची बुद्धिमानी है। उनका यह प्रवचन न केवल आध्यात्मिक साधकों, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक मार्गदर्शन है, जो अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहता है।