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Wednesday, August 6, 2025

24JT News Desk / New Delhi /August 5, 2025

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार को नई दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। 79 वर्षीय मलिक लंबे समय से बीमार थे और दोपहर करीब 1 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। संयोगवश, उनके निधन का दिन अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण की छठी वर्षगांठ के साथ मेल खाता है, जिसके दौरान मलिक जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यपाल थे। 2019 के पुलवामा हमले और 2020-21 के किसान आंदोलन पर उनके बेबाक बयानों ने उन्हें सुर्खियों में रखा।

देश / पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन: अनुच्छेद 370, पुलवामा हमले और किसान आंदोलन पर बेबाकी से बोलने वाले नेता नहीं रहे !

सत्यपाल मलिक ने अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। उनके कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किया गया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित किया गया। द वायर को 2023 में दिए एक साक्षात्कार में मलिक ने दावा किया कि उन्हें इस फैसले की जानकारी अंतिम समय में मिली थी और वह जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के खिलाफ थे।

मलिक ने 2019 के पुलवामा हमले, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे, को लेकर भी सनसनीखेज खुलासे किए। उन्होंने आरोप लगाया कि हमला एक “गंभीर खुफिया विफलता” का परिणाम था और गृह मंत्रालय ने सीआरपीएफ के हवाई परिवहन के अनुरोध को ठुकरा दिया, जिसके कारण जवानों को सड़क मार्ग से यात्रा करनी पड़ी। मलिक ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने उन्हें इस चूक पर चुप रहने को कहा। भाजपा ने उनके आरोपों को खारिज करते हुए उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।

किसान आंदोलन (2020-21) के दौरान मलिक ने सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना की और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागू करने की वकालत की। 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ बातचीत में उन्होंने MSP पर सरकार के वादों को पूरा न करने और कॉरपोरेट हितों, विशेष रूप से अडानी से जुड़े, को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उनकी यह बेबाकी, विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब के किसान संगठनों में, उनकी लोकप्रियता का कारण बनी।

24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में जन्मे मलिक ने मेरठ विश्वविद्यालय से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। पांच दशकों के करियर में उन्होंने भारतीय क्रांति दल, कांग्रेस, जनता दल और भाजपा सहित कई दलों के साथ काम किया। वे 1980-89 तक राज्यसभा सांसद, 1989-91 में अलीगढ़ से लोकसभा सांसद और 1990 में संक्षिप्त समय के लिए केंद्रीय संसदीय कार्य व पर्यटन राज्य मंत्री रहे। मलिक ने बिहार, ओडिशा, गोवा और मेघालय के राज्यपाल के रूप में भी सेवा दी।

भाजपा के साथ रहते हुए भी मलिक का सरकार से टकराव रहा। उन्होंने 2,200 करोड़ रुपये के किरु जलविद्युत परियोजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया, जिसके बाद 2025 में सीबीआई ने उन्हें चार्जशीट में नामित किया। मलिक ने इन आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि यह उनकी आवाज दबाने की साजिश थी।

मलिक के पार्थिव शरीर को उनके आर.के. पुरम स्थित आवास पर ले जाया जाएगा, और अंतिम संस्कार बुधवार को लोधी श्मशान घाट पर होगा। उनके निधन पर राजनीतिक नेताओं और किसान संगठनों ने शोक व्यक्त किया, उन्हें एक साहसी और सिद्धांतवादी नेता के रूप में याद किया।

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