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Friday, June 20, 2025

24JT News Desk / New Delhi /March 28, 2025


नई दिल्ली, 28 मार्च 2025: दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के बाद कथित तौर पर अधजले नोटों के बंडल मिलने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस मामले में आज, 28 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR (प्राथमिकी) दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर विचार किया गया। इसके साथ ही, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अनुमति अनिवार्य करने वाले पुराने फैसले को भी चुनौती दी गई है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील मैथ्यूज जे. नेदुम्परा और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दायर की है।

सुप्रीम कोर्ट | Photo Source : ANI
राष्ट्रीय / "जज कैश कांड: सुप्रीम कोर्ट में FIR की मांग खारिज, न्यायपालिका की पारदर्शिता पर फिर उठे सवाल!"

14 मार्च 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास के स्टोर रूम में आग लगने की घटना हुई थी। आग बुझाने के लिए पहुंचे अग्निशमन कर्मियों और पुलिस को वहां से चार से पांच अधजली बोरियां मिलीं, जिनमें भारतीय मुद्रा के अवशेष होने की बात सामने आई। इस घटना के बाद से ही यह मामला सुर्खियों में है और न्यायपालिका की पारदर्शिता व जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में "गहन जांच" की आवश्यकता बताई गई थी, जिसके बाद CJI संजीव खन्ना ने 22 मार्च को तीन सदस्यीय समिति गठित की। इस समिति की अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू कर रहे हैं, जिसमें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में मांग की गई है कि दिल्ली पुलिस को जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत संज्ञेय अपराधों के दायरे में आता है, और इसे सामान्य आपराधिक प्रक्रिया से अलग नहीं रखा जा सकता। याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि CJI द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति को इस मामले की जांच का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह एक आपराधिक मामला है जिसकी जांच पुलिस को करनी चाहिए।

इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने 1991 के के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि किसी मौजूदा हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ आपराधिक मामला CJI की सहमति के बिना दर्ज नहीं किया जा सकता। याचिका में कहा गया है कि यह नियम न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को रोकने में बाधा बन रहा है और इसे बदला जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुईयां की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आंतरिक जांच (इन-हाउस इन्क्वायरी) पहले से चल रही है और इसके नतीजे आने से पहले FIR दर्ज करने की मांग पर विचार करना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, "अभी जांच प्रगति पर है। इस स्तर पर इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है। जांच रिपोर्ट के बाद कई विकल्प हो सकते हैं।" कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आंतरिक जांच में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया जाता है, तो CJI के पास FIR दर्ज करने का निर्देश देने या सरकार को उन्हें हटाने की सिफारिश करने का अधिकार होगा।
बार एसोसिएशन का गुस्सा
इस मामले ने देश भर के वकीलों में आक्रोश पैदा किया है। इलाहाबाद, अवध, गुजरात, केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन के अध्यक्षों ने CJI संजीव खन्ना से मुलाकात कर जस्टिस वर्मा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। वकीलों का कहना है कि यह घटना न्यायपालिका पर "गहरा दाग" है और इससे आम लोगों का भरोसा कम हुआ है। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के तबादले का विरोध करते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की और ED व CBI से जांच की मांग की है।

14 मार्च: जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगी, स्टोर रूम से अधजले नोट मिले।
22 मार्च: CJI ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की और दिल्ली हाई कोर्ट को जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपने का निर्देश दिया।
24 मार्च: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश की।
26 मार्च: दिल्ली पुलिस ने जस्टिस वर्मा के आवास के स्टोर रूम को सील किया।
28 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने FIR की मांग वाली याचिका खारिज की।

यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। तीन सदस्यीय समिति की जांच रिपोर्ट के बाद ही यह तय होगा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई होगी या नहीं। अगर समिति उन्हें दोषी पाती है, तो CJI के पास महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने या इस्तीफा मांगने जैसे विकल्प होंगे। इस बीच, यह मामला न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर बहस को तेज कर रहा है।

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