Tranding
Friday, May 2, 2025

Charu Aghi / Dehradun /May 1, 2025

पानी, जो हमारे जीवन का आधार है, और जिसे हम कभी नज़रअंदाज कर देते हैं, उस पानी की बूंद की ताकत को डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर ने अपनी कविता "पानी की बूंद" में बड़े ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है। यह कविता न केवल पानी की बूंद के शारीरिक रूप की चर्चा करती है, बल्कि जीवन, संघर्ष और परिवर्तन के गहरे अर्थों को भी उजागर करती है।

कला-साहित्य / डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर की काव्य रचना:

काव्य रचना | पानी की बूंद

हाँ मैं मानता हूँ
देखने में मेरी हस्ती
क्या है ? कुछ भी नहीं
आग पर गिरूं………..
जलकर भाप बन उड़ूं
धरा पर गिरूं………..
हर प्यासा रोम
अपने अंदर मुझे सोख ले
जो गिरूं किसी ताल में
लहरों में बिखर-बिखर
छम-छम कर लहरा उठूं
इतना कुछ होने पर भी
मेरा एक अलग नाम है
मेरी एक अलग पहचान है।
वर्षों पुरानी मेरी दास्तान है
जो आज यहाँ पर बयान है।

जब तपती है धरा तो
टकटकी बांधकर लोग मुझे
नीले साफ आसमान में
बस मुझे ही हैं ढूंढते I
तब मैं काले सफेद मेघ बन
उड़ेलता हूँ छाज भरकर
दानों रूपी बूंदों को I
जो पेड़-पौधे और उनकी जड़ों को
सींचता हुआ चला जाता है।

जब मानव परेशान होकर
बैठ जाता है,
तब उसकी आँखों में
मैं उमड़ पड़ता हूँ।
कल-कल करता जब बहता हूँ,
तब मेरा रूप सुंदर हो जाता है।
और जब इकट्ठा होकर बहता हूँ कहीं,
अपने अंदर समेट कर सब कुछ
बह निकलता हूँ।


कविता की शुरुआत में कवि अपनी अस्तित्वहीनता को स्वीकार करते हैं और कहते हैं, "हाँ मैं मानता हूँ, देखने में मेरी हस्ती क्या है? कुछ भी नहीं," लेकिन इसके बाद वह बताते हैं कि चाहे उसकी स्थिति कुछ भी हो, उसकी एक अलग पहचान है। पानी की बूंद, चाहे वह आग पर गिरकर भाप बन उड़ जाए, या धरा पर गिरकर अपने अस्तित्व को फिर से प्रकट करे, वह हमेशा अपनी यात्रा पर रहती है।

कवि लिखते हैं, "जो गिरूं किसी ताल में, लहरों में बिखर-बिखर छम-छम कर लहरा उठूं," यह रूपांतरण जीवन के निरंतर बदलते हुए रूपों का प्रतीक है। पानी की बूंद हर रूप में न सिर्फ अपनी जगह बनाती है, बल्कि जीवन की जरूरतों को पूरा करती है।

वह आगे बताते हैं कि जब तपती धरा पर लोग पानी की बूंद की तलाश करते हैं, तो वह काले-सफेद मेघों के रूप में आसमान में उड़कर पृथ्वी पर बरसते हैं और वृक्षों, पौधों और उनकी जड़ों को सींचते हैं। यह प्रकृति के संतुलन और जीवन के निरंतर प्रवाह का संकेत है। कवि का यह कहना कि "जब मानव परेशान होकर बैठ जाता है, तब उसकी आँखों में मैं उमड़ पड़ता हूँ," यह पानी की बूंद के मानवता के साथ गहरे संबंध को दर्शाता है।

कविता के अंत में कवि कहते हैं, "जब इकट्ठा होकर बहता हूँ कहीं, अपने अंदर समेट कर सब कुछ बह निकलता हूँ।" यह पानी की बूंद की ताकत और उसकी अभिव्यक्ति है, जो हर रूप में जीवन को समर्पित होती है और उसकी पूरी यात्रा को बयां करती है।

यह कविता जीवन के संघर्ष, परिवर्तन और निरंतरता का प्रतीक है। पानी की बूंद हमें यह सिखाती है कि चाहे हमारी स्थिति कैसी भी हो, हम हमेशा अपनी पहचान बना सकते हैं और अपनी यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जैसे पानी की बूंद हर रूप में अपना अस्तित्व दिखाती है।

Subscribe

Tranding

24 JobraaTimes

भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को बनाये रखने व लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए सवंत्रता, समानता, बन्धुत्व व न्याय की निष्पक्ष पत्रकारिता l

Subscribe to Stay Connected

2023 © 24 JOBRAA - TIMES MEDIA & COMMUNICATION PVT. LTD. All Rights Reserved.