जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान ईडी को आड़े हाथों लिया। जस्टिस भुइयां ने कहा, “आप बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते। आपको कानून के दायरे में रहना होगा।” उन्होंने पिछले पांच वर्षों में ईडी द्वारा दर्ज लगभग 5,000 प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) के बावजूद दोषसिद्धि दर 10 प्रतिशत से भी कम होने पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “5-6 साल की हिरासत के बाद अगर लोग बरी हो जाते हैं, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? हमें ईडी की छवि की भी चिंता है।”
केंद्र सरकार और ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने तर्क दिया कि पुनर्विचार याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं और इन्हें पहले के फैसले के खिलाफ ‘छिपी हुई अपील’ करार दिया। उन्होंने दावा किया कि ‘प्रभावशाली बदमाश’ कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर जांच में देरी करते हैं, जिससे ईडी को जांच के बजाय अदालत में समय बिताना पड़ता है। हालांकि, कोर्ट ने ईडी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि कम दोषसिद्धि दर एजेंसी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
एएसजी राजू ने यह भी कहा कि जब आरोपी केमैन द्वीप जैसे स्थानों पर भाग जाते हैं, तो ईडी अक्सर ‘अक्षम’ हो जाती है। इसके जवाब में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून के दायरे में रहकर ही कार्रवाई होनी चाहिए।
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। इस वर्ष मई में, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने तमिलनाडु के ‘शराब घोटाला’ मामले में ईडी को फटकार लगाते हुए कहा था, “ईडी सारी हदें पार कर रहा है। आप देश के संघीय ढांचे का पूरी तरह उल्लंघन कर रहे हैं।” कोर्ट ने तब विपक्ष शासित राज्यों में ईडी की कार्रवाइयों पर सवाल उठाए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक संविधान पीठ द्वारा पीएमएलए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं पर अगले सप्ताह भी सुनवाई जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल ईडी की कार्यशैली पर सवाल उठाती है, बल्कि देश की जांच एजेंसियों के लिए एक सख्त संदेश भी देती है कि कानून के दायरे में रहकर ही कार्रवाई होनी चाहिए। पुनर्विचार याचिकाओं पर अगली सुनवाई से इस मामले में और स्पष्टता आने की उम्मीद है।