सिकंदर का विशाल साम्राज्य
सिकंदर महान, जिनका जन्म 356 ईसा पूर्व में मैसेडोनिया के पेला में हुआ, ने अपने 13 वर्ष के शासनकाल में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। ऐतिहासिक स्रोतों, जैसे कि प्लूटार्क की "लाइव्स ऑफ द नोबल ग्रीक्स एंड रोमन्स" और एरियन की "एनाबेसिस ऑफ अलेक्जेंडर" के अनुसार, सिकंदर ने ग्रीस, मिस्र, फारस, और भारत के कुछ हिस्सों तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी प्रमुख विजयों में गौगामेला (331 ईसा पूर्व) और हाइडेस्पेस (326 ईसा पूर्व) की लड़ाइयाँ शामिल हैं, जहाँ उन्होंने क्रमशः फारसी सम्राट दारा तृतीय और भारतीय राजा पोरस को परास्त किया।
सिकंदर का सपना था कि वह पूरी दुनिया को जीतकर उस पर शासन करे। उनका साम्राज्य इतना विशाल था कि उन्हें "विश्व विजेता" की उपाधि दी गई। हालांकि, भारत में उनकी सेना की थकावट और विद्रोह के कारण वह अपने इस सपने को पूर्ण नहीं कर सके। बेबीलोन लौटने के बाद, 323 ईसा पूर्व में मात्र 32 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
सिकंदर का वैराग्य और साध्वी शालिनीनंद जी महाराज का संदेश
महंत साध्वी शालिनीनंद जी महाराज ने अपने प्रवचनों में सिकंदर की कहानी को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, सिकंदर ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में गहरे आत्मचिंतन के साथ यह महसूस किया कि उनका विशाल साम्राज्य, अथाह धन, और शक्ति व्यर्थ थे। साध्वी जी के कथन के आधार पर, सिकंदर ने अपने करीबी सहयोगियों से कहा, "मैंने यह सब इकट्ठा करके कोई लाभ नहीं किया। न यह मुझे मृत्यु से बचा सकता है, न ही यह मुझे सुख दे सका। मैंने परमेश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश नहीं की।"
साध्वी जी के प्रवचनों में यह उल्लेख किया गया है कि सिकंदर ने अपनी मृत्यु से पहले एक विशेष इच्छा व्यक्त की थी: "जब मेरा जनाजा निकले, तो मेरे दोनों हाथ बाहर निकाल देना, ताकि दुनिया देखे कि सिकंदर, जिसने सारी दुनिया को जीतने का सपना देखा, खाली हाथ जा रहा है।" यह संदेश, जैसा कि साध्वी जी ने बताया, मानव जीवन की नश्वरता और भौतिक सुखों की क्षणभंगुरता को दर्शाता है। उनके अनुसार, सिकंदर का यह वैराग्य हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख और जीवन का उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति और कर्मयोग में निहित है।
कर्मयोग और जीवन का ध्येय
साध्वी शालिनीनंद जी महाराज ने सिकंदर की कहानी के माध्यम से कर्मयोग के सिद्धांत को रेखांकित किया है। उनके अनुसार, सिकंदर का जीवन हमें यह चेतावनी देता है कि भौतिक उपलब्धियाँ और सांसारिक सुख स्थायी नहीं हैं। साध्वी जी ने अपने प्रवचनों में कहा, "जो व्यक्ति अपने जीवन को परमात्मा की प्राप्ति में लगाता है, वही सच्चे अर्थों में अपने ध्येय को प्राप्त करता है। सिकंदर की गति उन लोगों के लिए एक सबक है जो सांसारिक माया के पीछे भागते हैं।"
उन्होंने यह भी जोर दिया कि अभी भी समय है। मनुष्य को चिंतन करना चाहिए कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है। साध्वी जी के शब्दों में, "मृत्यु के बाद कोई साधन, धन, या बाबा काम नहीं आएगा। जीव केवल दुर्गति ही पाएगा यदि उसने सही समय पर सही मार्ग नहीं चुना।" यह संदेश भगवद्गीता के कर्मयोग और वैराग्य के सिद्धांतों से भी मेल खाता है, जो कहते हैं कि कर्म को निष्काम भाव से करना चाहिए और परमात्मा की शरण में रहना चाहिए।
महंत साध्वी शालिनीनंद जी महाराज द्वारा सिकंदर महान की कहानी के माध्यम से दिया गया संदेश आज भी प्रासंगिक है। सिकंदर का जीवन हमें यह सिखाता है कि सांसारिक उपलब्धियाँ, चाहे कितनी भी विशाल हों, अंततः क्षणभंगुर हैं। साध्वी जी का यह कथन कि
"सिकंदर खाली हाथ गया" हमें यह चेतावनी देता है कि जीवन का सच्चा ध्येय परमात्मा की प्राप्ति और कर्मयोग में है। यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है जो अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहता है।
आह्वान | साध्वी शालिनीनंद जी महाराज का संदेश
अभी समय है कि हम चिंतन करें और अपने कर्मों को परमात्मा की प्राप्ति के लिए समर्पित करें।