कहानी | "मौत खरीदता युवक"
कहानी एक रेल यात्रा से शुरू होती है, जहां नायक एक ट्रेन में कहीं बाहर से लौट रहा होता है। अचानक एक 15-16 साल का हांफता हुआ लड़का उसके पास आता है और खाली सीट देखकर पूछता है, "भाई आप कौन हैं? क्या इस सीट पर मैं बैठ सकता हूँ?" नायक उसे बैठने की अनुमति देता है, लेकिन लड़के से उसका नाम पूछता है। लड़का चुप रहता है और थोड़ी देर बाद कहता है, "भाई साहब, आप जरा मेरा ये बैग पकड़ें, मैं पेशाब कर आऊँ।" वह अपना फटा-पुराना बैग नायक को देकर चला जाता है।
नायक के मन में संदेह उठता है कि कहीं यह कोई ठग तो नहीं। वह बैग की चैन खोलकर देखता है और उसमें ढेर सारे रुपये देखकर चौंक जाता है। उसका दिल जोरों से धड़कने लगता है, लेकिन वह अपने बैग की जांच करता है, जिसमें ढाई हजार रुपये सुरक्षित होते हैं। तभी उसका स्टेशन आ जाता है, और वह लड़के के इशारे पर दोनों बैग लेकर ट्रेन से उतरता है।
वे एक सुनसान रेलवे स्टेशन पर उतरते हैं, जहां कोई टिकटघर नहीं है। नायक पूछता है, "यार, यह कैसा गांव है, जहां कोई नहीं उतरा?" लड़का बताता है कि यह गांव 10 साल पहले बाढ़ में उजड़ चुका है, जब वह पांच साल का था। वह फूट-फूटकर रोने लगता है, और नायक का हृदय भी द्रवित हो जाता है। नायक अपनी कहानी सुनाता है कि 30 साल पहले वह भी इसी गांव से था, जहां के नीच मुखिया के शोषण से तंग आकर उसके माता-पिता ने प्राण त्याग दिए थे। वह अपनी गिरवी रखी जमीन छोड़कर विदेश चला गया, जहां उसने नया जीवन शुरू किया। अब वह अपनी पैतृक जमीन छुड़ाने लौटा है, लेकिन गांव के उजड़ने की खबर सुनकर वह भी रो पड़ता है।
नायक लड़के से सवाल करता है कि क्या वह चोरी करता है और बैग में इतना पैसा कहां से आया। तब लड़का अपनी कहानी सुनाता है। वह बताता है कि उसका नाम रोहित है और वह उसी क्रूर जमींदार मुखिया का बेटा है। 10 साल पहले बाढ़ में उसका पूरा गांव, माता-पिता सहित, बह गया। वह एक पेड़ की जटाओं में फंसकर बच गया। उसके पिता ने गरीबों का शोषण कर जो पैसा कमाया, वह तिजोरी में मिला। रोहित ने करीब एक लाख रुपये उस फटे बैग में रखे और गांव छोड़ दिया।
वह कई लोगों से मिला, लेकिन कोई भी उसका पैसा स्वीकार नहीं करता। एक व्यक्ति ने उसे रोटी दी, लेकिन बैग लेने से इनकार कर दिया और रोटी भी छीन ली। एक बूढ़े बाबा ने उसे एक रोटी दी, लेकिन पैसा लेने से मना कर दिया, कहते हुए कि यह सुख-चैन छीन लेता है। एक मुखिया ने उसे गांव से भगा दिया, और एक युवक ने फांसी की रस्सी तक देने से इनकार कर दिया। भूख और निराशा से त्रस्त रोहित रेलवे स्टेशन लौटा और रेल की पटरी पर लेट गया। रेल ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया, और उसकी मृत्यु हो गई।
लेकिन रोहित की आत्मा उस बैग को लेकर भटक रही है, जो गरीबों का पैसा है। वह कहता है कि यह पैसा उसे न भोजन दिला सका, न शांति, और न ही मौत। वह नायक से अनुरोध करता है कि वह इस पैसे के चार हिस्से करे, एक हिस्सा अपने पास रखे और बाकी गरीबों में बांट दे, ताकि उसके परिवार की आत्मा को शांति मिले। नायक पहले मना करता है, लेकिन रोहित के गिड़गिड़ाने पर हामी भर देता है। तभी रोहित गायब हो जाता है, कहते हुए कि वह अब भगवान के पास जा रहा है।
नायक अकेला रह जाता है, दोनों बैग हाथ में लिए। वह रेल पकड़कर अपने गांव लौटता है, लेकिन तभी उसे बोझ महसूस होता है। शाम के चार बज चुके हैं, और उसकी मां उसे चाय के लिए जगाती है। स्वप्न टूटता है, और नायक देखता है कि उसका गांव सुरक्षित है, उसके माता-पिता जीवित हैं, और न तो रोहित का बैग है, न ही वह रेलवे स्टेशन।
साहित्यिक महत्व:
साहित्य समीक्षकों के अनुसार, यह कहानी हिंदी साहित्य की उस परंपरा को जीवंत करती है, जो सामाजिक विसंगतियों को भावनात्मक और रहस्यमयी ढंग से प्रस्तुत करती है। कहानी में धन के प्रति लालच, पाप और प्रायश्चित, और ग्रामीण भारत में जमींदारी व्यवस्था के शोषण को प्रभावी ढंग से चित्रित किया गया है। डॉ. दिनकर की सरल और बोलचाल की भाषा कहानी को पाठकों के लिए जीवंत बनाती है। फटा बैग पाप का प्रतीक है, और सुनसान गांव सामाजिक पतन को दर्शाता है।
प्रमुख संदेश:
कहानी यह संदेश देती है कि अनैतिक रूप से कमाया गया धन अभिशाप बन जाता है। रोहित का चरित्र एक त्रासद नायक के रूप में उभरता है, जो अपने पिता के पापों का बोझ ढोता है। स्वप्न के रूप में कहानी का अंत पाठकों को अपने कर्मों और नैतिकता पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।
पाठकों की प्रतिक्रिया:
विजय नाम के एक पाठक इसे एक ऐसी रचना बता रहे हैं, जो मनोरंजन के साथ-साथ आत्ममंथन का अवसर प्रदान करती है। एक पाठक ने लिखा, "यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि धन से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारी नैतिकता और कर्म हैं।"
लेखक के बारे में:
डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर हिंदी साहित्य में अपने संवेदनशील और सामाजिक विषयों पर आधारित लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ ग्रामीण भारत की समस्याओं और मानवीय भावनाओं को गहराई से उजागर करती हैं।
"मौत खरीदता युवक" एक ऐसी कहानी है, जो साहित्य प्रेमियों के लिए एक उपहार है। यह समाज को नैतिकता और मानवता के पथ पर चलने की प्रेरणा देती है। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि सच्चा सुख और शांति धन में नहीं, बल्कि सही कर्मों और दूसरों के प्रति करुणा में निहित है।