उनकी आत्मा की मुक्ति के लिए राजा भगीरथ ने वर्षों तक कठिन तप कर भगवान ब्रह्मा से गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की। गंगा के वेग को संभालने हेतु भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर धीरे-धीरे प्रवाहित किया। गंगा की पावन धारा ने सगरपुत्रों को मोक्ष प्रदान किया।
शास्त्रीय आधार व तिथि निर्धारण
धर्मशास्त्र वाक्य के अनुसार:
"वैशाख शुक्लसप्तम्यां गंगोत्वति:। तस्यां मध्याह्न-व्यापिन्या गंगापूजनं कार्यम्।"
अर्थात —
यदि वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि मध्याह्न में व्यापिनी हो, तो गंगा पूजन उसी दिन करना चाहिए।
2025 की स्थिति (आचार्य अनुज के अनुसार):
वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि: 3 मई 2025, शनिवार
तिथि मध्याह्न व्यापिनी है — अर्थात दिन में विद्यमान है
अतः गंगा जयंती 3 मई को ही मनाई जाएगी
मध्याह्न काल (हरिद्वार पंचांगानुसार) —
10:55 AM से 1:34 PM तक
पूजन एवं संकल्प :
गंगा जयंती पर क्या करें?
आचार्य अनुज जी ने बताया:
स्नान एवं पूजन:
प्रातःकाल गंगा स्नान करें, या घर पर गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें
श्रीगंगा, भगवान शिव, राजा भगीरथ, एवं सगरपुत्रों का पूजन करें
गंगा लहरी, गंगा स्तोत्र, एवं गंगा आरती का पाठ करें
पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करें
दान-पुण्य:
सफेद वस्त्र, चावल, तांबे के पात्र, जल, शक्कर आदि का दान करें
"हर हर गंगे" और "गंगे च यमुने चैव..." मंत्रों का जाप करें
धार्मिक महत्त्व:
गंगा जयंती का धार्मिक महत्व केवल पौराणिक नहीं, आत्मिक भी है:
गंगा स्नान से पापों का क्षय और पुण्य की प्राप्ति होती है
पितृ दोष निवारण हेतु यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है
अन्न, वस्त्र, जलदान, और मंत्रजाप से मोक्ष फल प्राप्त होता है
प्रसिद्ध मंत्र:
"पापिनां पापनाशाय, दीनानां दीनतारणे।
गंगे गंगेति यो ब्रूयात्, पुनर्जन्म न विद्यते॥"
आध्यात्मिक संदेश
आचार्य अनुज के शब्दों में:
"गंगा केवल जल नहीं, चेतना हैं — जो मोक्षदायिनी हैं।
उनका अवतरण यह सिखाता है कि जब उद्देश्य पवित्र और संकल्प दृढ़ हो, तो शिव स्वयं मार्ग बनाते हैं।"
गंगा जयंती 2025, न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ी तिथि है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की संपूर्ण आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक भी है।