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Tuesday, August 26, 2025

24JT News Desk / New Delhi /August 22, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision - SIR) के तहत मतदाता सूची में शामिल होने के लिए आधार कार्ड को वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया है। यह फैसला न केवल लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि चुनाव आयोग (ECI) की ओर से कथित तौर पर मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाता है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों की सूची और उनके नाम हटाने के कारणों को सार्वजनिक किया जाए, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो। यह निर्णय विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा इसे "वोट चोरी" की साजिश बताए जाने के बाद आया है।

देश / सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की बड़ी हार | 65 लाख मतदाताओं के लिए खोला न्याय का रास्ता

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की खंडपीठ ने शुक्रवार, 22 अगस्त 2025 को अपने फैसले में कहा कि आधार कार्ड, इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC), और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को बिहार SIR प्रक्रिया में स्वीकार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची से हटाए गए लोगों को ऑनलाइन दावा फॉर्म जमा करने की सुविधा दी जाए, जिसमें आधार कार्ड या अन्य 11 स्वीकृत दस्तावेजों का उपयोग हो सकता है।

कोर्ट ने कहा, "हम ऑनलाइन दावा फॉर्म की अनुमति देंगे, जिसमें आधार कार्ड या अन्य स्वीकार्य दस्तावेज शामिल हों।" इसके अलावा, कोर्ट ने बिहार की 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि वे अपने बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) के माध्यम से हटाए गए मतदाताओं की मदद करें और उनके दावा फॉर्म जमा करने में सहायता करें।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह भी निर्देश दिया कि वह 19 अगस्त तक मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों की सूची और उनके नाम हटाने के कारणों को जिला स्तर पर सार्वजनिक करे। कोर्ट ने कहा, "पारदर्शिता के लिए 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की जानकारी सार्वजनिक करना आवश्यक है ताकि लोग स्पष्टीकरण या सुधार के लिए आवेदन कर सकें।" यह सूची पंचायत और ब्लॉक विकास कार्यालयों में प्रदर्शित की जाएगी, और जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर सॉफ्ट कॉपी के रूप में उपलब्ध होगी, जिसमें खोज की सुविधा होगी।

बिहार में SIR प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, और अन्य विपक्षी दलों ने इसे "वोट चोरी" और "लोकतंत्र पर हमला" करार दिया। उनका आरोप था कि चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को जारी आदेश के तहत SIR प्रक्रिया शुरू की, जिसमें आधार, वोटर आईडी, और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को शामिल नहीं किया गया। इसके बजाय, 11 विशिष्ट दस्तावेजों की मांग की गई, जैसे पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र, और स्थायी निवास प्रमाणपत्र, जो गरीब, दलित, और प्रवासी मजदूरों के पास आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।

विपक्षी नेताओं, जैसे RJD के तेजस्वी यादव और तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, ने दावा किया कि इससे लगभग 4.74 करोड़ मतदाताओं पर अपनी नागरिकता साबित करने का अनुचित बोझ डाला गया। उन्होंने इसे विशेष रूप से मुस्लिम, दलित, और गरीब प्रवासियों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश बताया।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, "लाखों जागरूक नागरिकों, कांग्रेस, और राहुल गांधी की मुहिम ने सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से पहली सफलता हासिल की है। यह लोकतंत्र की जीत है।"

चुनाव आयोग ने अपनी दलील में कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, क्योंकि इसे गैर-नागरिकों को भी जारी किया जा सकता है। आयोग ने यह भी दावा किया कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखना और गैर-नागरिकों को मतदान से रोकना है। आयोग के अनुसार, 2003 की मतदाता सूची में शामिल 4.96 करोड़ मतदाताओं को केवल प्री-फिल्ड एन्यूमरेशन फॉर्म जमा करना था, जबकि 2003 के बाद शामिल हुए मतदाताओं को 11 दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना था।

आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि SIR के तहत किसी की नागरिकता समाप्त नहीं होगी, बल्कि यह केवल मतदाता सूची में पात्रता की जाँच के लिए है। आयोग ने दावा किया कि बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने प्रक्रिया में भाग लिया, जो 92% की भागीदारी दर्शाता है। हालांकि, कई याचिकाओं और फील्ड रिपोर्ट्स ने इस आँकड़े पर सवाल उठाए, यह दावा करते हुए कि बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) ने बिना मतदाता की सहमति के सामूहिक रूप से फॉर्म अपलोड किए।

सुप्रीम कोर्ट ने SIR की समयसीमा पर सवाल उठाए, क्योंकि बिहार में नवंबर 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं। कोर्ट ने कहा, "आपकी प्रक्रिया में कोई गलती नहीं है, लेकिन इसका समय संदिग्ध है। इसे चुनाव से जोड़ने की बजाय पहले करना चाहिए था।" कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि आधार कार्ड को बाहर रखना तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि यह पहचान का एक प्राथमिक दस्तावेज है।

जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा, "नागरिकता का मामला गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है, न कि चुनाव आयोग का। SIR का उद्देश्य केवल पहचान की जाँच करना है।" कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि मतदाता सूची से हटाए गए लोगों को अपील का उचित अवसर मिलना चाहिए।

कांग्रेस, RJD, और अन्य विपक्षी दलों ने इस फैसले को लोकतंत्र की जीत बताया। तेजस्वी यादव ने कहा, "चुनाव आयोग की वोट चोरी की साजिश नाकाम हो गई। जनता को न्याय मिलेगा।"
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दावा किया कि विपक्ष ने SIR को रोकने के लिए हर तरह की चाल चली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उन्हें निराशा हाथ लगी। BJP अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा, "कांग्रेस ने गैर-मुद्दों को उठाकर इसे नैतिक जीत के रूप में पेश करने की कोशिश की, लेकिन उनकी हर दलील खारिज हो रही है।"

24 जून 2025 को चुनाव आयोग ने बिहार में SIR शुरू किया।
25 जून से 26 जुलाई तक एन्यूमरेशन फॉर्म जमा करने की अवधि थी। ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित हुई, और दावे व आपत्तियाँ 1 अगस्त से 1 सितंबर तक स्वीकार की जाएँगी। अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी।
लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटाए गए, जिसे विपक्ष ने "मनमाना" और "भेदभावपूर्ण" बताया।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है। आधार कार्ड को स्वीकार करने का निर्णय विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए राहतकारी है, जिनके पास अन्य दस्तावेजों की उपलब्धता कम है।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि SIR प्रक्रिया का समय और तरीका अभी भी विवादास्पद है। यह प्रक्रिया, यदि ठीक से लागू न की गई, तो लाखों पात्र मतदाताओं को मतदान से वंचित कर सकती है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी दस्तावेज में जालसाजी के मामले को व्यक्तिगत आधार पर निपटाया जाए, न कि सामूहिक बहिष्कार के रूप में।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लोकतंत्र के मूल सिद्धांत—मतदान के अधिकार—को मजबूत करता है। आधार कार्ड की स्वीकार्यता और हटाए गए मतदाताओं की सूची को सार्वजनिक करने का आदेश न केवल चुनाव आयोग की जवाबदेही बढ़ाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई भी पात्र मतदाता अपने अधिकार से वंचित न रहे। यह फैसला उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो कथित तौर पर मतदाता सूची को हेरफेर करने की कोशिश करते हैं। बिहार के मतदाताओं के लिए यह एक नई उम्मीद की किरण है, और अब यह देखना बाकी है कि चुनाव आयोग इस आदेश को कितनी प्रभावी ढंग से लागू करता है।

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