अपने उद्घाटन संबोधन में न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम ने भारत की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधता की शक्ति को रेखांकित करते हुए प्रशिक्षुओं को न्याय, करुणा और समानता जैसे मूलभूत मानवाधिकार मूल्यों के प्रति सजग रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा, “एक छात्र का समग्र विकास मां की ममता, पिता के मार्गदर्शन, भाई-बहनों की सलाह और साथियों के अनुभवों से होता है।” उन्होंने छात्रों को ज्ञान के माध्यम से जीवन में उद्देश्य स्थापित करने की अपील की और सभी के लिए समान अधिकारों और अवसरों से युक्त समाज के निर्माण में भागीदारी निभाने की बात कही।
इस अवसर पर आयोग के महासचिव श्री भरत लाल ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने युवाओं से समाज की जटिल चुनौतियों का समाधान मानवीय संवेदनशीलता, उत्तरदायित्व और करुणा के साथ करने की अपील की। उन्होंने कहा कि “भारत के सभ्यतागत मूल्यों की रोशनी में, अधिकारों के साथ कर्तव्यों का संतुलन आवश्यक है।”
इस वर्ष इंटर्नशिप के लिए कुल 1,468 आवेदनों में से चयनित 80 छात्र देश के 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 42 विभिन्न संस्थानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इन छात्रों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि में कानून, सामाजिक विज्ञान, सामाजिक कार्य, मनोविज्ञान, पत्रकारिता, जेंडर स्टडीज़, डिजिटल मानविकी और अंतरराष्ट्रीय संबंध जैसे विविध विषय शामिल हैं।
कार्यक्रम की रूपरेखा साझा करते हुए आयोग के संयुक्त सचिव श्री समीर कुमार ने बताया कि इंटर्नशिप के दौरान प्रशिक्षुओं को इंटरएक्टिव सत्रों, समूह शोध परियोजनाओं, पुस्तक समीक्षाओं, भाषण प्रतियोगिताओं और फील्ड विज़िट जैसे आयोजनों में भाग लेने का अवसर मिलेगा। ये गतिविधियाँ छात्रों को मानवाधिकारों की व्यवहारिक समझ प्रदान करेंगी और उन्हें व्यावहारिक समाधान सुझाने के लिए प्रेरित करेंगी।
कार्यक्रम के अंत में आयोग के निदेशक, लेफ्टिनेंट कर्नल वीरेंद्र सिंह ने सभी आगंतुकों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।