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Friday, June 20, 2025

Charu Aghi / Dehradun /June 5, 2025

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के गाडरियावास, आकोला की युवा कवयित्री मेघना वीरवाल की नवीनतम कविता ‘जीवन की डोर’ ने साहित्य प्रेमियों के बीच एक नई बहस छेड़ दी है। यह कविता जीवन की नाजुकता, मानव की अतृप्त इच्छाओं और सपनों के अनंत चक्र को बड़े ही संवेदनशील ढंग से उकेरती है। मेघना की यह मौलिक रचना, जो गहन दार्शनिकता और भावनात्मक गहराई से भरी है, पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है।

कला-साहित्य / मेघना वीरवाल की कविता ‘जीवन की डोर’ में जीवन की गहराई का चित्रण

कविता | जीवन की डोर

कच्ची लगती जीवन की डोर
मजबूत धागा कहां से लाए
जो जोड़े रखे
हमारी क्षमता अनुसार
समय की चाह तक
इस जीवन को
जिसमें हमारे अनगिनत सपनों के
कई महल हो
जो किसी भी छोर से
अधूरा ना लगे

मगर मनुष्य के संतुष्टि की
कोई सीमा नहीं
जहां जहां ख्वाबों का
एक बीज गिरता है
वहां से नया ख़्वाब
और निकल आता है
अंततः ये प्रक्रिया अनंत काल तक की
रफ्तार पकड़ लेती है
और हमें हमारे सपनों
में ही जकड़ लेती है

जीवन का ये दौर
भूत भविष्य वर्तमान काल की पगडंडी
के सहारे ही चल पड़ता है
सच्चे रिश्ते सच्ची भावनाएं
बेखबर बेकद्र ही
लड़ती जाती है
अपने अहम को बचाने में

पर ज़िंदगी का शान सा
फलसफा कोई समझ ना पाया
प्रत्येक मनुष्य हर क्षण
भयभीत होकर जी रहा है
कि जीवन की ये डोर
कब हाथ से छूट जाए
और सारे सपने
अपनी चाहत को लेके
आइने सा टूट जाए

कविता की शुरुआत में मेघना जीवन को एक कच्ची डोर के रूप में चित्रित करती हैं, जो मजबूत होने की चाहत रखती है, लेकिन समय और परिस्थितियों के सामने कमजोर पड़ जाती है। वे लिखती हैं, “कच्ची लगती जीवन की डोर, मजबूत धागा कहां से लाए”—यह पंक्ति जीवन की अनिश्चितता और उसकी नाजुकता को दर्शाती है। कवयित्री ने सपनों को अनगिनत महलों के रूप में प्रस्तुत किया है, जो कभी पूर्ण नहीं होते। यह भावना हर उस व्यक्ति को छूती है, जो अपने सपनों को साकार करने की जद्दोजहद में लगा है।

कविता का दूसरा हिस्सा मानव मन की अतृप्त प्रकृति पर प्रकाश डालता है। मेघना लिखती हैं, “जहां जहां ख्वाबों का एक बीज गिरता है, वहां से नया ख़्वाब और निकल आता है”। यह पंक्तियां मानव की अंतहीन इच्छाओं और सपनों के अनंत चक्र को रेखांकित करती हैं, जो कभी थमता नहीं। यह विचार आज के दौर में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां लोग भौतिक सुखों और महत्वाकांक्षाओं के पीछे भाग रहे हैं, लेकिन संतुष्टि की तलाश अधूरी ही रहती है।

कविता का अंतिम भाग जीवन की अनिश्चितता और मानव के भय को उजागर करता है। मेघना लिखती हैं, “प्रत्येक मनुष्य हर क्षण भयभीत होकर जी रहा है, कि जीवन की ये डोर कब हाथ से छूट जाए”। यह पंक्ति जीवन की क्षणभंगुरता और सपनों के टूटने के डर को गहरे भावनात्मक स्तर पर व्यक्त करती है। कविता में सच्चे रिश्तों और भावनाओं के बीच अहं की लड़ाई का भी जिक्र है, जो आज के समाज में रिश्तों की जटिलता को दर्शाता है।

यह कविता न केवल भावनात्मक रूप से गहरी है, बल्कि यह आधुनिक समाज की मनोदशा को भी दर्शाती है। उनकी लेखनी में सादगी और गहराई का अनोखा संगम है।” वहीं, युवा पाठकों का कहना है कि यह कविता उनके जीवन के संघर्षों और सपनों को शब्दों में पिरोती है।

मेघना वीरवाल ने अपनी इस रचना के बारे में बात करते हुए कहा, “यह कविता मेरे मन के उन विचारों का प्रतिबिंब है, जो जीवन की अनिश्चितता और सपनों की चाहत को देखकर उभरे। मैं चाहती थी कि मेरे शब्द हर उस इंसान तक पहुंचें, जो अपने सपनों और डर के बीच संतुलन तलाश रहा है।”

यह कविता न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज को आत्मचिंतन का एक अवसर भी प्रदान करती है।

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