संपादकीय में कांग्रेस पर सवाल:
संपादकीय में कहा गया है कि अहमदाबाद अधिवेशन में कांग्रेस ने अपने संगठनात्मक ढांचे और आंतरिक नेतृत्व को प्राथमिकता दी, लेकिन देश की ज्वलंत समस्याओं और विपक्षी गठबंधन की रणनीति पर विचार-विमर्श की कमी साफ दिखाई दी। इसमें जोर देकर कहा गया कि इंडिया गठबंधन को मजबूत करने के लिए एक साझा नेतृत्व और समन्वयक की जरूरत है, लेकिन कांग्रेस इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखा रही। संपादकीय में चेतावनी दी गई कि यदि गठबंधन में संवाद और एकजुटता की कमी रही, तो यह विपक्ष के लिए नुकसानदायक साबित होगा।
इंडिया गठबंधन का भविष्य अनिश्चित:
संपादकीय में इंडिया गठबंधन की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताई गई है। इसमें कहा गया कि गठबंधन की आखिरी बैठक जून 2024 में हुई थी, और उसके बाद से कोई सार्थक संवाद नहीं हुआ। संपादकीय में सवाल उठाया गया कि क्या इंडिया गठबंधन केवल लोकसभा चुनावों के लिए बनाया गया था, या इसका उद्देश्य लंबे समय तक देश में सत्तारूढ़ दल की नीतियों का मुकाबला करना है। इसमें क्षेत्रीय दलों की भावनाओं का जिक्र करते हुए कहा गया कि कांग्रेस को अपने सहयोगियों की विचारधारा और क्षेत्रीय पहचान का सम्मान करना चाहिए।
क्षेत्रीय दलों की नाराजगी:
संपादकीय में यह भी उल्लेख किया गया कि कांग्रेस का रवैया क्षेत्रीय दलों के लिए कई बार अनदेखी भरा रहा है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) के साथ, केरल में वाम दलों के साथ, और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस की प्रतिस्पर्धा को गठबंधन की एकजुटता के लिए हानिकारक बताया गया। इसमें जोर दिया गया कि क्षेत्रीय दल अपनी पहचान और स्वायत्तता बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस उनकी मजबूरियों को समझने में नाकाम रही है।
नेतृत्व और समन्वय की मांग:
संपादकीय में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का उदाहरण देते हुए कहा गया कि एनडीए ने हमेशा अपने सहयोगी दलों के साथ संवाद बनाए रखा और एक मजबूत समन्वयक की भूमिका निभाई। इसके विपरीत, इंडिया गठबंधन में नेतृत्व और समन्वय की कमी साफ दिखाई देती है। इसमें सुझाव दिया गया कि गठबंधन को एक प्रभावी समन्वयक नियुक्त करना चाहिए, जो सभी सहयोगी दलों के बीच संवाद का सेतु बन सके।
कांग्रेस की ताकत पर सवाल:
संपादकीय में यह भी कहा गया कि कांग्रेस भले ही एक राष्ट्रीय पार्टी हो, लेकिन कई राज्यों में उसकी स्थिति कमजोर है। इसे महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए बताया गया कि कांग्रेस अकेले दम पर सत्तारूढ़ गठबंधन का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है। गठबंधन की ताकत का इस्तेमाल करने के बजाय, कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों के साथ टकराव विपक्ष की एकता को कमजोर कर रहा है। संपादकीय में अपील की गई कि कांग्रेस को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह गठबंधन के साथ मिलकर लड़ेगी या अकेले मैदान में उतरना चाहती है।
विपक्ष की भूमिका पर जोर:
संपादकीय में मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य का जिक्र करते हुए कहा गया कि देश में धार्मिक नफरत और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे में विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वह एकजुट होकर इन मुद्दों का सामना करे। इसमें राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और प्रियंका गांधी की सक्रियता की तारीफ की गई, लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि इन प्रयासों का लाभ तभी मिलेगा जब गठबंधन में एकजुटता और नेतृत्व हो।
महाराष्ट्र में एमवीए की स्थिति:
महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के संदर्भ में संपादकीय में कहा गया कि गठबंधन को मजबूत करने के लिए संवाद जरूरी है। इसमें कांग्रेस से अपील की गई कि वह अपने सहयोगियों के साथ खुलकर चर्चा करे और उनकी चिंताओं को दूर करे। संपादकीय में यह भी उल्लेख किया गया कि शिवसेना (यूबीटी) ने हमेशा गठबंधन धर्म निभाया है, लेकिन कांग्रेस का एकतरफा रवैया एमवीए की एकता को नुकसान पहुंचा सकता है।
निष्कर्ष:
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) का यह संपादकीय कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए एक चेतावनी की तरह है। इसमें साफ कहा गया है कि बिना संवाद, एकजुटता और नेतृत्व के विपक्ष अपनी ताकत खो देगा। यह संपादकीय न केवल कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी बताता है कि क्षेत्रीय दलों की भूमिका को नजरअंदाज करना गठबंधन के लिए घातक हो सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या कांग्रेस इस आलोचना का जवाब देती है और गठबंधन को मजबूत करने के लिए कदम उठाती है।