राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने संबोधन में अधिकारियों से कहा कि वे विदेशों में भारत के प्रतिनिधि मात्र नहीं, बल्कि देश की आत्मा के दूत भी हैं। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को शांति, बहुलवाद, अहिंसा और संवाद जैसे भारत के सभ्यतागत मूल्यों को अपने कार्यों और व्यवहार में आत्मसात करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने वैश्विक परिदृश्य में तेजी से हो रहे भू-राजनीतिक बदलावों, डिजिटल क्रांति, जलवायु परिवर्तन और बहुपक्षीय संबंधों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि इन सभी परिवर्तनों के बीच युवा राजनयिकों की चपलता और अनुकूलन क्षमता भारत की विदेश नीति की सफलता की कुंजी होगी।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत आज न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति भी है और वैश्विक चुनौतियों – जैसे उत्तर और दक्षिण के बीच असमानता, सीमा पार आतंकवाद तथा जलवायु संकट – के समाधान में अहम भूमिका निभा रहा है।
इस दौरान राष्ट्रपति मुर्मु ने सांस्कृतिक कूटनीति के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “हृदय और आत्मा से बने रिश्ते अधिक टिकाऊ होते हैं। योग, आयुर्वेद, श्रीअन्न, संगीत, कला, भाषा और आध्यात्मिक परंपराएं भारत की सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिन्हें विश्व मंच पर रचनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।”
अपने संदेश के अंत में राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के कूटनीतिक प्रयास देश की घरेलू आवश्यकताओं और 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य से जुड़े होने चाहिए। उन्होंने प्रशिक्षु अधिकारियों से आग्रह किया कि वे भारतीय हितों के रक्षक होने के साथ-साथ भारतीय आत्मा के सच्चे प्रतिनिधि बनें।