ध्वजारोहण के बाद उपस्थित अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके परिजनों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देते हुए न्यायमूर्ति खानविलकर ने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
"स्वतंत्रता दिवस केवल उत्सव नहीं, यह स्मरण और संकल्प का दिवस है", उन्होंने कहा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमें न केवल उन महान नेताओं को याद रखना चाहिए जिनके नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं — गांधीजी, भगत सिंह, नेताजी सुभाष, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और सरदार पटेल — बल्कि उन अनगिनत गुमनाम नायकों को भी, जिन्होंने अपने साहस और बलिदान से स्वतंत्रता संग्राम को जन-आंदोलन बनाया।
अपने संबोधन में उन्होंने भारत माता की उन संतानों को भी नमन किया जो सीमाओं की रक्षा में, आपदाओं से निपटने में और वैश्विक चुनौतियों के मुकाबले में सदैव अग्रिम पंक्ति में रहे। उन्होंने कहा कि "हर संकट के क्षण में, भारतीयों की तत्परता और संघर्षशीलता ने विश्व को यह दिखा दिया है कि भारत झुकता नहीं, केवल आगे बढ़ता है।"
न्यायमूर्ति खानविलकर ने स्वतंत्र भारत के निर्माण में योगदान देने वाले प्रत्येक वर्ग — वैज्ञानिक, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, अधिवक्ता, कलाकार और श्रमिक वर्ग — के योगदान को सराहा और उन्हें राष्ट्र निर्माण का असली शिल्पकार बताया। उन्होंने कहा, "हम उनके श्रम, ईमानदारी और दूरदर्शिता के ऋणी हैं।"
अपने भाषण के अंत में उन्होंने आंतरिक खतरों जैसे आतंकवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद, दुष्प्रचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ सतर्क और एकजुट रहने का आह्वान किया। उन्होंने बल देते हुए कहा कि यह समय है जब हम 'विकसित भारत @2047' की दिशा में न केवल सपने देखें, बल्कि अपने दैनिक आचरण और सामूहिक प्रयासों से इसे साकार करने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभाएं।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान और भारत माता की जय के जयघोष के साथ हुआ। लोकपाल कार्यालय में यह दिवस केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक संकल्प बनकर उभरा — एक सशक्त, समावेशी और भ्रष्टाचारमुक्त भारत के निर्माण का संकल्प।