भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार — जो भारत सरकार के अधीन लोक अभिलेख अधिनियम, 1993 के तहत कार्य करता है — ने यह संग्रह अपने पास सुरक्षित रखते हुए शोधकर्ताओं, इतिहासकारों और कानूनी विद्वानों के लिए एक दुर्लभ संसाधन उपलब्ध कराया है।
जेपी गोयल वह नाम हैं, जिन्होंने भारत की राजनीति और न्यायपालिका को नई दिशा देने वाले कई ऐतिहासिक मुकदमों में अहम भूमिका निभाई। विशेष तौर पर 1975 के आपातकाल से ठीक पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ राज नारायण की चुनाव याचिका में वे मुख्य अधिवक्ता रहे, जिसकी परिणति देश में आपातकाल लागू होने के रूप में हुई।
आपातकाल के दौरान श्री गोयल न केवल विपक्षी नेताओं के कानूनी सलाहकार बने, बल्कि जेल में बंद नेताओं और भूमिगत कार्यकर्ताओं के परिवारों से संपर्क बनाए रखने वाले एक प्रमुख सूत्रधार के रूप में भी कार्य किया। कहा जाता है कि चंडीगढ़ के पीजीआई में भर्ती जयप्रकाश नारायण की उपस्थिति की पुष्टि करने वाले वे पहले व्यक्ति थे।
जेपी गोयल का कानूनी योगदान सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा। 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती है, जहां भारत के संविधान के मूल ढांचे को बनाए रखने वाला निर्णय आया था।
इन सभी घटनाओं का उल्लेख उनके संस्मरण "Saving India from Indira: Untold Story of the Emergency: Memoirs of JP Goyal" में विस्तार से किया गया है।
जेपी गोयल का जीवन परिचय:
21 दिसंबर 1926 को उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले के नाला गांव में जन्मे श्री गोयल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए (अर्थशास्त्र) और लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने 1952 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से वकालत की शुरुआत की और बाद में 1959 में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। 1979 में वे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित हुए और 11 सितंबर 2013 को अपने निधन तक सक्रिय रूप से वकालत करते रहे।
सिर्फ कानून नहीं, राजनीति में भी उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। 1982 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य चुने गए और लोकदल, जनता पार्टी तथा संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने 1984 में भारत की ओर से राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में भी भाग लिया।
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित यह संग्रह आपातकाल, संवैधानिक लड़ाइयों, लोकतांत्रिक संघर्षों और कानूनी घटनाक्रमों की एक अमूल्य थाती है, जो आने वाली पीढ़ियों को भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रेरित करता रहेगा।