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Tuesday, August 26, 2025

Charu Aghi / Dehradun /July 31, 2025

भड़लिया नवमी से देवउठनी ग्यारस तक का समय केवल वह नहीं जब "देव सोते हैं," बल्कि यह वह पवित्र काल है जब प्रकृति और आत्मा साधना में लीन हो जाते हैं। सनातन धर्म में चातुर्मास को "आत्मनिरीक्षण और संयम" का अनमोल समय माना जाता है। यह जानकारी साध्वी शालिनीनंद महाराज द्वारा दी गई है, जिनके अनुसार यह वह काल है जब "धर्म मौन हो जाता है, तंत्र जागता है, और जीवन की गति बाहर से रुककर भीतर तेज हो जाती है।"

धर्म / चातुर्मास: आत्मा की साधना का पवित्र समय - साध्वी शालिनीनंद महाराज

चातुर्मास का महत्व क्या है?


चातुर्मास चार महीनों का वह समय है जब व्रत, तपस्या, मौन, और संयम के माध्यम से आत्मा को शुद्ध किया जाता है। इस दौरान प्रकृति भी "गर्भवती" होकर बीज को भीतर खींचती है। वर्षा और नमी इसके संकेत हैं कि ब्रह्मांड नई सृष्टि की तैयारी में है। इस समय मन शांत रहना चाहता है, शरीर विश्राम मांगता है, और आत्मा जप-साधना की ओर बढ़ती है।

तांत्रिक दृष्टि में चातुर्मास


यह काल "यम की अवधि" कहलाता है। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, तब कर्मों का प्रभाव गहरा होता है। इस समय किए गए पुण्य या पाप का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। इसलिए इस दौरान विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ, और नए निर्माण जैसे कार्य टाल दिए जाते हैं। यह समय निर्माण का नहीं, बल्कि "निर्विकार" बनने का है।

आत्मिक स्तर पर क्या होता है?


चातुर्मास संयम और आत्मनिरीक्षण का प्रशिक्षण काल है। जो व्यक्ति इस समय मौन, व्रत, ध्यान, और ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह अपने कर्मों को शुद्ध कर अगले चक्र के लिए तैयार होता है। यह वह समय है जब पुराने कर्मों का हिसाब होता है, छिपी भावनाएँ उभरती हैं, और सहनशक्ति का फल मिलता है।

गुप्त साधकों के लिए विशेष समय


तांत्रिक और गुप्त साधक चातुर्मास को सबसे शक्तिशाली मानते हैं। जब बाहरी संसार मौन होता है, तब भीतर की शक्तियाँ जाग उठती हैं। इस समय की साधनाएँ मन को शुद्ध करती हैं, कुंडलिनी को जागृत करती हैं, और जीवन की दिशा बदल सकती हैं।

देवउठनी ग्यारस: नए कर्मों का आरंभ


देवउठनी ग्यारस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि वह क्षण है जब भीतर का सन्नाटा बाहरी मंगल कार्यों में बदलता है। तुलसी विवाह इसका प्रतीक है, जो दर्शाता है कि अब "भीतर की भूमि" तैयार है और नए कार्य शुरू हो सकते हैं।

संदेश


चातुर्मास को केवल "देव शयन" का समय मानना इसका आंशिक उपयोग है। साध्वी शालिनीनंद महाराज कहती हैं कि जो इसे आत्मनिरीक्षण, संयम, और साधना का काल मानते हैं, वे जीवन को नई दिशा दे सकते हैं। यह तप, त्याग, और तंत्र का समय है, जहाँ सृष्टि, आत्मा, और ब्रह्म एक-दूसरे से मौन संवाद करते हैं।

इस चातुर्मास, अपने भीतर की यात्रा शुरू करें और आत्मा को शुद्ध करें।

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