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Wednesday, July 30, 2025

24JT News Desk / Udaipur /June 6, 2025

भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका में हाल ही में सामने आए गंभीर घटनाक्रमों पर खुलकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि सरकार आज एक न्यायिक आदेश के कारण FIR दर्ज करने में असमर्थ है, जो तीन दशकों से अधिक पुराना है और न्यायपालिका को लगभग अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है।

उपराष्ट्रपति का बड़ा बयान:
देश / उपराष्ट्रपति का बड़ा बयान:

"अगर अपराध हुआ है तो सज़ा क्यों नहीं?"


पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से पूछा, “अगर कोई आपराधिक कृत्य हुआ है, जो लोकतंत्र की नींव को हिलाता है, तो दोषियों को अब तक दंड क्यों नहीं मिला?” उन्होंने कहा कि तीन महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक जांच की शुरुआत तक नहीं हुई।

“पहले दिन ही अनुमति मिल सकती थी”


धनखड़ ने जोर देते हुए कहा कि FIR दर्ज करने की अनुमति पहले दिन ही दी जा सकती थी। “रिपोर्ट के बाद तो यह कदम निश्चित रूप से उठाया जाना चाहिए था। अगर न्यायपालिका में मौजूद कोई अधिकारी स्वयं अनुमति नहीं देता, तो क्या न्याय की प्रक्रिया रुकी रहेगी?” उन्होंने सवाल उठाया।

"न्यायाधीशों की समिति, FIR का विकल्प नहीं"


उपराष्ट्रपति ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी न्यायाधीश की जांच के लिए गठित समिति संवैधानिक या वैधानिक रूप से FIR या संसदीय प्रक्रिया का विकल्प नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार, केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान अभियोजन से छूट प्राप्त है, न कि अन्य किसी को।

"क्या न्यायिक कार्य में पैसे का प्रभाव पड़ा?"


मार्च मध्य में दिल्ली स्थित एक न्यायाधीश के निवास से मिली बेहिसाब नकदी का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने सवाल किया, “क्या इस पैसे ने न्यायिक कार्य को प्रभावित किया?” उन्होंने कहा कि जब तक हम मनी ट्रेल नहीं जानेंगे, तब तक सच्चाई नहीं सामने आएगी।

"जनता का विश्वास गहन और निष्पक्ष जांच से ही बहाल हो सकता है"


धनखड़ ने कहा कि बार एसोसिएशन की भूमिका इस मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने भरोसा जताया कि अधिवक्ता समुदाय इस मुद्दे पर आवाज़ उठाएगा। “जनता का विश्वास केवल वैज्ञानिक, निष्पक्ष और गहन जांच से ही बहाल हो सकता है,” उन्होंने कहा।

"न्यायपालिका की गरिमा खतरे में"


उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की साख पर पड़ते असर को लेकर गहरी चिंता जताई। “अगर न्याय के मंदिर को ही अपवित्र कर दिया गया है, तो फिर जनता न्याय के लिए कहाँ जाएगी?” उन्होंने कहा कि यह स्थिति केवल अधिवक्ताओं की नहीं, बल्कि पूरे देश की चिंता है।

"मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा, पर जांच आवश्यक"


उपराष्ट्रपति ने यह स्पष्ट किया कि वह किसी को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं, लेकिन यह तय है कि एक गंभीर अपराध हुआ है। उन्होंने प्रसिद्ध सरवान सिंह बनाम पंजाब राज्य (1957) मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि “सच्चाई और अनुमानित सच्चाई के बीच का अंतर केवल विश्वसनीय साक्ष्य से तय हो सकता है।”

"लोकतंत्र में अधिवक्ताओं की भूमिका सर्वोपरि"


कार्यक्रम के अंत में उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के रक्षक अधिवक्ता हैं, और जब न्याय व्यवस्था संकट में हो, तो बार की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि यह बार — पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को प्रतिनिधित्व देने वाली — देश में एक अनूठा स्थान रखती है।

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