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Wednesday, July 30, 2025

Pawan Kumar / New Delhi /May 19, 2025

राजस्थान के उदयपुर जिले के फतहनगर, हीरावास की निवासी भावना कुंवर मानावत, जिनके पिता का नाम भंवर सिंह मानावत है, द्वारा लिखित कहानी ‘माँ’ एक ऐसी माँ की प्रेरणादायक गाथा है, जिसने सामाजिक बंधनों, पारिवारिक उपेक्षा और जीवन की कठिनाइयों को पार कर अपने बच्चों के लिए एक नया भविष्य गढ़ा। यह कहानी न केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी अटूट शक्ति को उजागर करती है।

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कला-साहित्य / भावना कुंवर मानावत द्वारा लिखित कहानी ‘माँ’ - सपना की प्रेरणादायक यात्रा, दुखों से जीत तक का सफर

सपना का अतीत: सादगी से भरा बचपन


कहानी की शुरुआत बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठी सपना से होती है, जो अपने अतीत की यादों में खोई हुई है। तीस वर्ष पहले, जब सपना मात्र 16 वर्ष की थी, उसका जीवन पूरी तरह बदलने वाला था। सपना एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से थी, जिसमें उसके पिता बनवारी लाल एक छोटी किराने की दुकान चलाते थे। परिवार में माँ, दो छोटे भाई-बहन आनंद और सुनीता थे। सपना की समझदारी और सादगी के कारण वह मोहल्ले में सभी की प्रशंसा का पात्र थी, जिससे उसके माता-पिता को गर्व होता था। हालाँकि, उसकी छोटी बहन सुनीता उससे ईर्ष्या करती थी। छोटे कस्बे की परंपराओं के अनुसार, सपना को कम उम्र में ही गृहकार्यों में निपुण कर दिया गया था।

जल्दबाजी में तय हुई शादी


एक पारिवारिक समारोह में सपना की सादगी एक रिश्तेदार को पसंद आ गई, जिन्होंने अपने बेटे के लिए सपना का रिश्ता पक्का करने की बात उसके माता-पिता से की। बिना सपना की राय लिए, उसके माता-पिता ने शादी के लिए हाँ कह दी। सब कुछ इतनी जल्दबाजी में हुआ कि सपना को कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। वह शादी नहीं करना चाहती थी और आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन सामाजिक दबाव और परिवार की अपेक्षाओं के आगे उसने हार मान ली। सुनीता, जो अपनी बहन से जलती थी, इस शादी से और अधिक नाराज हो गई, क्योंकि सपना की शादी एक अमीर परिवार में हो रही थी। शादी का दिन तय हुआ, और सपना का भविष्य अनिश्चितता के भँवर में फँस गया।

ससुराल में कष्टमय जीवन


शादी के बाद सपना का ससुराल शुरू में अच्छा लगा, लेकिन जल्द ही हालात बदल गए। उसे ससुराल में नौकरानी की तरह काम करना पड़ता था। उसका पति शराबी था और अक्सर उसके साथ मारपीट करता था। सपना की जिंदगी नरक बन गई थी। उसने अपने माता-पिता को अपनी व्यथा बताई, लेकिन उन्होंने लोक-लाज का हवाला देकर उसे ससुराल वापस भेज दिया, यह कहकर कि ब्याही हुई लड़की ससुराल में ही अच्छी लगती है। सपना को एक बेटा और तीन साल बाद एक बेटी हुई, लेकिन ससुराल में उनके बच्चों को भी उपेक्षा और कष्ट सहना पड़ा। जेठानी के बच्चे ऐशो-आराम में रहते, जबकि सपना और उसके बच्चे नौकरों जैसा जीवन जीते। एक बार, सपना ने अपने पति की शराबखोरी और कामचोरी की शिकायत सास से की, लेकिन सास ने उल्टा उसे गरीबी और दहेज न लाने के ताने दिए।

पति की हिंसा और तलाक


एक रात, सपना के पति ने शराब के नशे में उसे इतना मारा कि उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। होश आने पर उसे पता चला कि ससुराल वाले उसे सरकारी अस्पताल में मरने के लिए छोड़कर चले गए थे। जब सपना अपने मायके लौटी, तो उसके पिता ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया और उल्टा उसे दोषी ठहराया। बाद में पता चला कि उसके पति ने उसे तलाक दे दिया और दूसरी शादी कर ली। जब सपना ने अपने बच्चों के बारे में पूछा, तो पिता ने कहा कि अमीर परिवार के बच्चे उसके पास क्यों आएंगे। सपना का दिल टूट गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।

दूसरी शादी का दबाव और बच्चों की खोज


सपना की बहन सुनीता ने अपने फायदे के लिए उसकी दूसरी शादी की बात छेड़ी और अपने फूफा ससुर से शादी तय करने का सुझाव दिया। सपना के भाई आनंद ने इसका विरोध किया, लेकिन पिता के सामने उसकी नहीं चली। इस बीच, सपना को गाँव की औरतों की बातों से पता चला कि उसके बच्चे ससुराल में कष्टमय जीवन जी रहे हैं। यह सुनकर सपना बिना देर किए अपने पुराने ससुराल पहुँची, जहाँ उसने अपने बच्चों को फटे-पुराने कपड़ों में भूख से रोते देखा। सपना ने अपने बच्चों को वापस लेने का फैसला किया। ससुराल वालों ने बताया कि सपना के पिता ने ही बच्चों को लेने से मना किया था।

परिवार से नाता तोड़कर नई शुरुआत


सपना अपने बच्चों को लेकर मायके लौटी, लेकिन वहाँ पिता ने बच्चों को घर में जगह देने से इनकार कर दिया। जब सपना ने अपने बच्चों के कष्ट की बात उठाई, तो पिता ने कहा कि सुनीता के फूफा ससुर बच्चों को पालने को तैयार नहीं हैं। गुस्से में सपना ने ऐलान किया, “ये मेरे बच्चे हैं, और इनकी माँ अभी जिंदा है। कोई और क्यों पालेगा इन्हें? मैं पालूँगी!” उसने दूसरी शादी से इनकार कर दिया। इसके बाद, पिता ने सपना और उसके बच्चों को घर से निकाल दिया और सभी रिश्ते तोड़ दिए। आनंद ने जैसे-तैसे सपना और बच्चों के लिए रहने की व्यवस्था की।

संघर्ष और मेहनत की शुरुआत


सबसे बड़ी चुनौती थी काम ढूँढना। बारहवीं तक पढ़ी सपना को ससुराल वालों ने आगे पढ़ने नहीं दिया था, और बच्चों के साथ काम ढूँढना मुश्किल था। एक दिन, सपना की पुरानी सहपाठी पिंकी ने उसे अपने घर में काम करने का प्रस्ताव दिया। पिंकी ने कहा कि सपना अपने बच्चों को साथ ला सकती है और उसे वेतन दिया जाएगा। सपना ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और नौकरानी का काम शुरू किया। शुरू में उसे सामाजिक तानों का डर था, लेकिन बच्चों के भविष्य के लिए उसने हर मुश्किल को गले लगाया।

सुनीता की नफरत और आनंद का समर्थन


सपना के नौकरानी बनने पर सुनीता ने माता-पिता को भड़काया और कहा कि सपना ने उनकी इज्जत मिट्टी में मिला दी। लेकिन आनंद ने सुनीता को करारा जवाब दिया, “हमारी इज्जत की धज्जियाँ कैसे उड़ सकती हैं? बाबा ने तो पहले ही दीदी से सारे रिश्ते तोड़ दिए।” उसने सुनीता की नीयत पर सवाल उठाए और परिवार को उनकी गलतियों का अहसास कराया। आनंद ने सुनीता के ससुराल की साजिशों को उजागर किया, जिससे परिवार में शर्मिंदगी छा गई।

सपना की जीत: बच्चों का उज्ज्वल भविष्य


समय के साथ, सपना ने दिन-रात मेहनत की। वह बच्चों को स्कूल भेजती, पिंकी के घर काम करती और अतिरिक्त काम करके पैसे कमाती। उसकी मेहनत रंग लाई, और आज उसके दोनों बच्चे पढ़-लिखकर सरकारी अफसर बन गए। सपना ने अपनी कमाई से घर खरीदा और एक सम्मानजनक जिंदगी बनाई। कहानी के अंत में, सपना अपने अतीत को याद करते हुए बरामदे में बैठी होती है, तभी उसकी बेटी उसे आनंद और उसकी पत्नी के आने की खबर देती है। आनंद अपनी दीदी की मेहनत की तारीफ करता है और कहता है, “दीदी की तपस्या सफल हुई।” सपना विनम्रता से कहती है, “यह मेरे बच्चों की मेहनत का नतीजा है।” आनंद अपनी पत्नी के साथ विदा लेता है और सोचता है कि सपना ने नौकरानी से मालकिन तक का सफर तय किया।

एक माँ की शक्ति और सामाजिक सवाल


भावना कुंवर मानावत द्वारा लिखित कहानी ‘माँ’ केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष की गाथा नहीं, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति, पारिवारिक दबावों और सामाजिक रूढ़ियों पर एक गहरा सवाल उठाती है। सपना का चरित्र एक ऐसी माँ का प्रतीक है, जो अपने बच्चों के लिए किसी भी चुनौती से लड़ सकती है। उसकी हिम्मत और आत्मनिर्भरता समाज के लिए एक प्रेरणा है, विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए जो सामाजिक बंधनों में बंधी हैं। सुनीता का चरित्र उन लोगों का प्रतीक है जो ईर्ष्या और स्वार्थ के कारण अपनों का नुकसान करते हैं, जबकि आनंद जैसे पात्र आशा की किरण हैं।

कहानी भारतीय समाज में दहेज, घरेलू हिंसा, और तलाक जैसे मुद्दों को उजागर करती है। सपना की शिक्षा अधूरी रहने की बात शिक्षा तक महिलाओं की पहुँच की कमी को दर्शाती है। साथ ही, यह कहानी आत्मनिर्भरता और मेहनत की शक्ति को रेखांकित करती है। सपना ने नौकरानी का काम शुरू कर सामाजिक तानों को नजरअंदाज किया और अपने बच्चों को अफसर बनाया, जो यह साबित करता है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। यह कहानी समाज को यह संदेश देती है कि महिलाओं को अवसर और समर्थन मिले, तो वे असंभव को भी संभव कर सकती हैं। भावना कुंवर मानावत की लेखन शैली सरल लेकिन प्रभावशाली है, जो पाठकों को सपना के दर्द और जीत दोनों को महसूस कराती है। कहानी का शीर्षक ‘माँ’ मातृत्व की उस अटूट शक्ति को रेखांकित करता है, जो हर मुश्किल में अपने बच्चों की ढाल बनती है।

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