Tranding
Wednesday, July 30, 2025

Charu Aghi / Dehradun /June 9, 2025

भावना कुंवर मानावत द्वारा लिखित कहानी "तुम्हारी खुशी" आज के युवाओं और माता-पिता के बीच बढ़ते भावनात्मक अंतर को उजागर करती है। यह कहानी चेतन नामक एक युवा इंजीनियर की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बाहर से देखने में सफल और सुखी दिखता है, लेकिन भीतर से अकेलेपन, तनाव और अवसाद से जूझ रहा है। यह कहानी न केवल चेतन के दर्द को बयां करती है, बल्कि समाज में माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी और अपेक्षाओं के बोझ को भी रेखांकित करती है।

कला-साहित्य / "तुम्हारी खुशी" - एक कहानी जो समाज को आईना दिखाती है - भावना कुंवर मानावत

कहानी: तुम्हारी खुशी

रोज की तरह चेतन आज सुबह भी 8:00 बजे ऑफिस के लिए जा चुका था। हमेशा की तरह उसकी माँ चेतन के लिए मंदिर में पूजा करवाने चली गई। मंदिर में पुजारी जी चेतन की माँ से पूछते हैं, “भाभीजी, आप रोज मंदिर में चेतन के नाम की पूजा करवाती हो, लेकिन क्यों? मतलब कि चेतन इंजीनियर है, अच्छी जॉब करता है, कहीं बाहर आवारागर्दी नहीं करता और इतना शांत रहता है, तो समस्या क्या है?”

चेतन की माँ जवाब देती हैं, “हाँ, मेरा चेतन सभी भाई-बहनों में सबसे समझदार है, लेकिन पुजारी जी, वो बस अपने में ही खोया रहता है। सुबह उठता है, नाश्ता करता है, चुपचाप ऑफिस चला जाता है। ऑफिस से घर आता है, खाना खाकर अपने कमरे में चला जाता है। न परिवार के साथ बैठता है, न किसी से बात करता है, न रिश्तेदारों के यहाँ जाना पसंद करता है। यहाँ तक कि मुझसे और इसके बाबा से भी बात नहीं करता। मैं तो परेशान हो गई हूँ, पुजारी जी। रोज मंदिर आती हूँ, यह सोचकर कि कभी तो भगवान हम पर कृपा करेंगे।” पूजा के बाद चेतन की माँ घर लौट जाती है।

रात को चेतन ऑफिस से थककर घर आता है। हाथ-मुँह धोकर वह अपने कमरे में जाने ही वाला होता है कि पीछे से बाबा की आवाज उसे रोक लेती है। बाबा उसे दूसरे कमरे में ले जाते हैं, जहाँ पहले से ही उसकी माँ, भाई-बहन, भुआ, दादी और दादा बैठे हैं। यह देखकर चेतन समझ जाता है कि आज कुछ गड़बड़ होने वाली है। बाबा उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हैं और कहते हैं, “देखो चेतन, हम तुमसे कभी कुछ नहीं कहते, यहाँ तक कि तुम्हारी सैलरी को लेकर भी नहीं पूछते कि घर खर्च में पैसा देना है या नहीं। लेकिन तुम्हें अपने बूढ़े माँ-बाप पर थोड़ी दया तो आती होगी ना? 35 साल के हो गए हो और अब तक कुंआरे बैठे हो। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। इसलिए बहुत हो गया, हमने तुम्हारे लिए लड़की पसंद कर ली है। कल ऑफिस से छुट्टी ले लेना, हम लड़की देखने जाएँगे।”

चेतन कुछ देर चुप रहता है, फिर धीरे से कुर्सी से उठकर अपने कमरे की ओर जाने लगता है। बाबा गुस्से में कहते हैं, “तुमने सुना नहीं, हम क्या कह रहे हैं!” चेतन शांति से जवाब देता है, “जब लड़की आपने पसंद कर ली, तो हमारे सभी के वहाँ जाने की क्या जरूरत?” तभी माँ रोते हुए कहती हैं, “मुझे लगा ही था कि इसका बाहर कहीं चक्कर चल रहा है, तभी हर रिश्ते को मना कर देता है।” चेतन कहता है, “ऐसा कुछ नहीं है, और मुझे शादी ही नहीं करनी है।” यह कहकर वह अपने कमरे में चला जाता है।

कमरे में जाकर चेतन बिस्तर पर लेट जाता है, लेकिन उसे नींद नहीं आती। वह सोचता है कि इतना सब करने के बाद भी वह एक अच्छा बेटा नहीं बन पाया। चेतन हमेशा से ऐसा नहीं था। वह घर में सबसे ज्यादा बोलने वाला और खिलखिलाने वाला लड़का था। उसे फुटबॉल बहुत पसंद था, और वह अक्सर दोस्तों के साथ खेलने जाता था। लेकिन उसके बाबा को उसका खेलना पसंद नहीं था। चेतन पढ़ाई में बहुत होशियार था, हमेशा क्लास में पहला आता था, लेकिन बाबा को लगता था कि खेल के चक्कर में वह अपना भविष्य बर्बाद कर देगा। धीरे-धीरे चेतन का दोस्तों के साथ खेलना कम हो गया।

10वीं बोर्ड में चेतन को 95% अंक मिले। परिवार वाले और चेतन, सभी खुश थे। दोस्तों ने उससे पार्टी माँगी, तो चेतन ने बाबा से कुछ पैसे माँगे ताकि समोसा पार्टी दे सके। लेकिन बाबा ने पूछा, “तुम्हारे दोस्त कौन सा विषय ले रहे हैं?” चेतन ने बताया कि तीन दोस्त कॉमर्स और बाकी आर्ट्स ले रहे हैं। बाबा ने मना कर दिया, “नहीं-नहीं, कोई पार्टी की जरूरत नहीं। ऐसे लड़कों से दूर रहो। तुम साइंस लोगे, फिर इन आवारा दोस्तों की क्या जरूरत?” चेतन ने कहा, “नहीं बाबा, मैं कॉमर्स लेना चाहता हूँ, साइंस नहीं।” बाबा गुस्से में चिल्लाने लगे। सारा परिवार इकट्ठा हो गया। बाबा ने माँ को डाँटा और चेतन को जबरन साइंस पढ़वाया। चेतन दिन-रात मेहनत करता रहा, यह सोचकर कि शायद माँ-बाबा उसे बाहर जाने की इजाजत देंगे।
12वीं में चेतन को 96% अंक मिले। वह खुश था, यह सोचकर कि अब कॉलेज में अपने दोस्तों से मिल पाएगा। लेकिन घर पहुँचते ही बाबा ने उसे सरप्राइज दिया। गिफ्ट बॉक्स में IIT कोचिंग सेंटर का आईडी था। बाबा ने बिना पूछे उसका दाखिला करवा दिया था। वे गर्व से बोले, “पता है, कितना महँगा है? सारे स्मार्ट बच्चे वहाँ जाते हैं। मिश्रा जी का बेटा भी जा रहा है। तुम भी उसके साथ हॉस्टल में रहोगे, साथ पढ़ोगे और सिलेक्ट हो जाओगे।” चेतन ने गुस्से में कहा, “पापा, गौरव मेरा दोस्त नहीं है, और मुझे IIT नहीं, बीएससी करना है।” लेकिन बाबा ने चिल्लाकर कहा कि कोचिंग और हॉस्टल की फीस जमा हो चुकी है, जाना पड़ेगा। परिवार के दबाव में चेतन को दूसरे शहर जाना पड़ा।

कोचिंग के तनाव ने चेतन की दोस्तों से बातचीत कम कर दी। रात-रात भर पढ़ाई के कारण उसे नींद नहीं आती थी। एक दिन उसने माँ से कहा, “मुझसे अब नहीं होगा, मुझे इंजीनियर नहीं बनना।” लेकिन माँ ने जवाब दिया, “अभी जितना पढ़ोगे, बाद में सुखी रहोगे। यह सब तुम्हारे भविष्य के लिए है।” पहले साल चेतन का सिलेक्शन नहीं हुआ। दूसरे साल उसका दाखिला IIT कानपुर में हो गया। परिवार खुश था, लेकिन चेतन नहीं। उसे लगता था कि वह अपने दोस्तों से हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। धीरे-धीरे दोस्तों से बात कम हो गई, और उनकी जिंदगी में सिर्फ काम रह गया।

पढ़ाई पूरी होने के बाद चेतन को एक बड़ी कंपनी में अच्छी नौकरी मिली। लेकिन उसकी दिनचर्या बन गई—ऑफिस जाना, काम करना, घर आकर सो जाना। उसे एंग्जाइटी, डिप्रेशन और अनिद्रा ने घेर लिया। रोज दवाइयाँ खानी पड़ती थीं। कभी- बिना विचार आते थे, लेकिन वह खुद को संभाल लेता। वह परिवार में रहता था, लेकिन अकेला था।

एक सु सुबह, कल रात की लड़ाई के बाद, बाबा ने फिर कहा, “जल्दी तैयार हो, लड़की देखने जाना है।” चेतन ने मना कर दिया, और बोला, “मैं कहीं नहीं जाऊँगा।” बाबा गुस्से में बोले, “हर बार तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी। हम तुम्हारा भविष्य के लिए कर रहे हैं।” चेतन हँसने लगा और बोला, “मेरी मनमानी? बचपन से अब तक सब आपने तय किया—क्या खाऊँ, क्या पढ़ूँ, किससे दोस्ती करूँ। फुटबॉल छुड़वाया, दोस्तों से मिलना बंद करवाया, कॉलेज नहीं जाने दिया। मेरी मर्जी कहाँ है?”

बाबा ने कहा, “सभी बच्चों के फैसले माँ-बाप लेते हैं। तुम्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं था। आज तुम बड़ी कंपनी में हो, तुम्हारे दोस्त 30-40 हजार कमाते हैं, और तुम लाखों में।” चेतन ने जवाब दिया, “सच बताएँ, मैं कहाँ खड़ा हूँ? उनके बीच नहीं, लेकिन किसी के साथ नहीं। कोचिंग से लेकर अब तक, मेरे दिमाग में सुसाइड के ख्याल आते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं है। मैं जीवित हूँ, लेकिन जीने का अहसास नहीं। मेरे दोस्त कम कमाते हैं, लेकिन खुश हैं। मुझे साइकियाट्रिस्ट के पास जाना पड़ता है, रोज़ दवाएँ खानी पड़ती हैं। आपने मेरे लिए नहीं, अपने रुतबे, दिखावे के लिए किया। मुझे बस अकेला छोड़ दें, मुझे जीने दें।”

यह सुनकर चेतन की आँखों से आँसू बहने लगे। तभी उसका बचपन का दोस्त, जो दरवाज़े पर खड़ा था, दौड़कर उसे गले लगा लिया। वह रोते हुए बोला, “यार, माफ कर दे। हमें लगा तू बड़ा आदमी बन गया, इसलिए हमसे बात नहीं करता। हमें नहीं पता था तू कितने दर्द में है।” दोस्त ने चेतन को अपने पुराने अड्डे पर ले गया, जहाँ बाकी दोस्त इकट्ठे थे। चेतन के चेहरे पर लंबे समय बाद मुस्कान लौटी।

यह कहानी केवल चेतन की नहीं, उन लाखों युवाओं की है, जो माता-पिता की अपेक्षाओं के बोझ तल जूझ रहे हैं। माता-पिता बच्चों का भला चाहते हैं, लेकिन कई बार वे अपनी इच्छाएँ थोप देते हैं। बच्चों पर माता-पिता का अधिकार है, लेकिन उनकी अपनी इच्छाएँ और सपने भी हैं। संवाद, समझ और प्यार से ही खुशहाल परिवार बनता है। जैसा कि कहानी कहती है, “एक पक्षी शाम को अपने घर लौटता है, लेकिन अगर घर ही न रहे, तो वह कहाँ जाएगा?”

भावना कुंवर मानावत की यह कहानी समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि असली खुशी धन या रुतबे में नहीं, अपनों के साथ और सपनों को जीने में है। यह हर माता-पिता और युवा के लिए एक सबक है कि बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य और खुशी को सबसे ऊपर रखा जाए।
यह समाचार हमारे संवाददाता द्वारा तैयार किया गया है। अधिक जानकारी के लिए लेखिका भावना कुंवर मानावत की कहानी “तुम्हारी खुशी” पढ़ें।


Subscribe

Tranding

24 JobraaTimes

भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को बनाये रखने व लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए सवंत्रता, समानता, बन्धुत्व व न्याय की निष्पक्ष पत्रकारिता l

Subscribe to Stay Connected

2025 © 24 JOBRAA - TIMES MEDIA & COMMUNICATION PVT. LTD. All Rights Reserved.