मंत्रालय के अनुसार, नए दिशानिर्देश खासतौर पर संयंत्रों के निरीक्षण, सीएफए (केंद्रीय वित्तीय सहायता) वितरण और संचालन प्रक्रिया को सरल बनाने पर केंद्रित हैं। इससे न सिर्फ एमएसएमई (MSME) क्षेत्र को मदद मिलेगी, बल्कि पराली और अन्य जैविक अपशिष्ट के प्रभावी निपटान में भी मजबूती मिलेगी।
प्रदर्शन के आधार पर मिलेगा सीएफए
अब तक की व्यवस्था के अनुसार, कंपनियों को कुल 80% उत्पादन प्राप्त होने तक सहायता की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। लेकिन अब मंत्रालय ने दो चरणों में सीएफए जारी करने की नई व्यवस्था लागू की है। संयंत्र के प्रदर्शन और संचालन स्वीकृति प्रमाण पत्र मिलने के बाद कुल सीएफए का 50% जारी किया जाएगा, जबकि शेष राशि तब दी जाएगी जब संयंत्र 80% क्षमता या पात्रता के न्यूनतम स्तर तक पहुंच जाएगा—जो भी पहले हो।
विशेष बात यह है कि अगर किसी संयंत्र का प्रदर्शन निरीक्षण में तय सीमा तक नहीं पहुंचता, तब भी उसे आनुपातिक रूप में सीएफए मिलेगा। लेकिन अगर पीएलएफ (PLF) 50% से कम है, तो सहायता नहीं दी जाएगी।
निरीक्षण प्रणाली में लाया गया सुधार
नई व्यवस्था में निरीक्षण प्रक्रिया को भी अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाया गया है। अब निरीक्षण SSS-NIBE (राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा संस्थान), राज्य नोडल एजेंसियों और तकनीकी विशेषज्ञों के संयुक्त दल द्वारा किया जाएगा। यदि कोई डेवलपर अग्रिम सीएफए का दावा नहीं करता, तो उसे केवल एक ही प्रदर्शन निरीक्षण करवाना होगा।
सीएफए दावा करने के लिए समय सीमा में भी लचीलापन
संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार, अब परियोजना डेवलपर्स को कमीशनिंग की तारीख से 18 महीने या सीएफए के सैद्धांतिक स्वीकृति की तारीख से—जो भी बाद में हो—के भीतर सहायता राशि का दावा करने की सुविधा दी गई है।
सरकार का बड़ा कदम, उद्योगों को मिलेगा लाभ
यह संशोधन भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम माना जा रहा है। इससे न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को मजबूती मिलेगी, बल्कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में निवेशकों के लिए भी अनुकूल वातावरण तैयार होगा। मंत्रालय का उद्देश्य स्पष्ट है—स्वच्छ ऊर्जा, सरल प्रक्रिया और पारदर्शी सहायता प्रणाली के ज़रिए सतत विकास की ओर अग्रसर भारत।