पूर्व मुख्य नेत्र अधिकारी दिनेश शर्मा ने शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से इस सेमिनार का आयोजन किया। उन्होंने छात्रों को नेत्रदान के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया। श्री शर्मा ने स्पष्ट किया कि नेत्रदान केवल मृत्यु के बाद ही संभव है, जीवित अवस्था में नहीं। उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद 6 घंटे के भीतर नेत्रों को संरक्षित किया जा सकता है, इसलिए समय पर सूचना देना और नेत्रों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कि नेत्रदान और नेत्र प्रत्यारोपण को लेकर समाज में कई भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। इस जागरूकता अभियान में सभी का सहयोग आवश्यक है। श्री शर्मा ने छात्रों से आग्रह किया कि वे नेत्रदान का संदेश घर-घर तक पहुंचाएं, ताकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अधिक से अधिक लोग नेत्रदान के लिए प्रेरित हों।
इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र शर्मा ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि परिवार को सांत्वना देने के बाद उनसे नेत्रदान के लिए अनुरोध करना चाहिए। सामाजिक संगठनों को परिवार और मेडिकल टीम के बीच सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
हिंदू कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनिल तनेजा ने आयोजकों का धन्यवाद किया और आश्वासन दिया कि कॉलेज के सभी छात्र इस अभियान में पूरा सहयोग देंगे। एनएसएस समन्वयक राजेश गहलोत, आईआरसी समन्वयक शालिनी और सैकड़ों स्वयंसेवकों ने सेमिनार में हिस्सा लिया। इस दौरान 65 स्वयंसेवकों ने नेत्रदान की प्रतिज्ञा फॉर्म भरे।
केवीएम नर्सिंग कॉलेज में आयोजित सेमिनार में पूर्व मुख्य नेत्र अधिकारी दिनेश शर्मा ने नेत्रदान के बारे में विस्तार से जानकारी दी। मुख्य अतिथि और संस्थान के निदेशक कर्मवीर मायना ने अपने संबोधन में नेत्रदान को सबसे पुण्य कार्य बताया। उन्होंने छात्रों से अपील की कि मेडिकल प्रोफेशनल्स होने के नाते वे इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें, ताकि कॉर्निया से होने वाली अंधता को कम किया जा सके।
प्राचार्य ज्योति शर्मा, किरण आत्री, सुमित्रा, अंजलि, किरण, मुस्कान और समस्त स्टाफ ने इस आयोजन में विशेष सहयोग दिया। सेमिनार के अंत में 68 नर्सिंग छात्रों और शिक्षकों ने नेत्रदान की प्रतिज्ञा ली और फॉर्म भरे। उन्हें विशेष बैज देकर सम्मानित किया गया। साथ ही, सभी को नेत्रदान की शपथ दिलाई गई।
पूर्व मुख्य नेत्र अधिकारी दिनेश शर्मा ने सभी का धन्यवाद किया और अपील की कि यह संदेश हर बच्चे के माध्यम से गांव-गांव और शहर-शहर तक पहुंचे, ताकि जरूरतमंद लोगों को नेत्र ज्योति मिल सके।