राज्यपाल ने एलन मस्क के वक्तव्य का हवाला देते हुए कहा कि “आज अमेरिका को भी भारतीय इंजीनियरों की जरूरत है,” जिससे भारत की शैक्षणिक प्रतिभा की वैश्विक स्वीकार्यता स्पष्ट होती है।
“शिक्षा का भारतीयकरण जरूरी था”
राज्यपाल ने विनोबा भावे के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि "स्वतंत्रता के बाद जिस दिन देश का झंडा बदला, उसी दिन शिक्षा नीति भी बदलनी चाहिए थी।" उन्होंने मैकाले की शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए कहा कि इससे ऐसे "काले अंग्रेज" तैयार हुए जो अपनी जड़ों और सांस्कृतिक विरासत से कट गए।
उन्होंने बताया कि भारत में जब गुरुकुल प्रणाली थी, तब इंग्लैंड में इतने विद्यालय भी नहीं थे। “गुरुकुलों में 16 भाषाएं सिखाई जाती थीं और विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता था। आज तो तीसरी भाषा पर भी आपत्ति हो रही है।”
“शिवकर बापूजी तलपड़े को नहीं मिला हक”
राज्यपाल श्री बागडे ने कहा कि “भारत ने ही दुनिया को ‘शून्य’ की खोज दी,” और यह ज्ञान के क्षेत्र में भारत की ऐतिहासिक भूमिका को दर्शाता है। उन्होंने दावा किया कि 1895 में शिवकर बापूजी तलपड़े ने भारत में पहला विमान उड़ाया था, लेकिन श्रेय राइट ब्रदर्स को दिया गया।
“प्राथमिक शिक्षा को मिले सम्मान”
उन्होंने जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां प्राथमिक शिक्षा को सर्वोच्च दर्जा और वेतन मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि नींव मजबूत हो तो पूरी इमारत सुदृढ़ होती है। उन्होंने कहा कि शिक्षाविदों को बच्चों की बौद्धिक क्षमता को प्रारंभिक अवस्था से ही निखारना चाहिए। “राजस्थान में तो बच्चों को पालने से ही सिखाने की परंपरा है,” उन्होंने कहा।
“IQ के पीछे EQ को न भूलें”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि योगी रमण नाथ महाराज ने कहा कि शिक्षा में इमोशनल इंटेलिजेंस (EQ) की उपेक्षा हो रही है, जिससे समाज में भावनात्मक संवेदनशीलता की कमी देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि “माइंडसेट बदलने से ही शिक्षा नीति सफल हो सकती है।”
मुख्य वक्ता शिवप्रसाद ने कहा कि विद्या भारती देशभर में “राष्ट्र प्रथम” की भावना के साथ संस्कार आधारित शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।
श्री जसवंत खत्री ने कहा कि “सफलता तभी सार्थक है जब वह समाज के हित में हो।” वहीं अपर पुलिस आयुक्त कुंवर राष्ट्रदीप ने युवाओं से लक्ष्य आधारित कार्यशैली अपनाने का आह्वान किया।
समारोह में राज्यपाल ने विद्या भारती के मेधावी छात्रों को सम्मानित किया और 'संस्कार राजस्थान' के स्मृति अंक “जयदेव पाठक” का लोकार्पण भी किया। विद्या भारती के अध्यक्ष परमेंद्र दशोरा ने अंत में सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का आभार जताया।