राज्यपाल श्री बागडे सुभाष नगर स्थित जैन स्थानक में आयोजित "चातुर्मासिक मंगल प्रवेश समारोह" को संबोधित कर रहे थे। यह आयोजन आध्यात्मिक चातुर्मास महोत्सव समिति, भीलवाड़ा के तत्वावधान में संपन्न हुआ।
राज्यपाल ने कहा, “जैन धर्म अहिंसा, जीवदया और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। चातुर्मास के माध्यम से इन मूल्यों को समाज में गहराई से स्थापित किया जाता है।” उन्होंने यह भी कहा कि सच्चे संत वही हैं, जो समाज कल्याण के लिए कार्य करते हैं और दूसरों के हित में किया गया प्रत्येक कार्य ही उनकी सच्ची सिद्धि होती है। उन्होंने चातुर्मास की परंपरा को भगवान महावीर के युग से जुड़ा बताते हुए इसे नैतिक जागरूकता और आध्यात्मिक चेतना का सेतु कहा।
अपने संबोधन में राज्यपाल ने भारतीय संस्कृति की मजबूती को रेखांकित करते हुए कहा कि “इतिहास में कई बार इसे मिटाने के प्रयास हुए, लेकिन इसकी गहराई, मूल्य और व्यापकता के कारण यह आज भी दृढ़ता से खड़ी है।”
नवीन शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह नीति विद्यार्थियों के समग्र विकास पर केंद्रित है – जिसमें बौद्धिक, शारीरिक, नैतिक और सांस्कृतिक पक्षों को समाहित किया गया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह नीति ऐसे शिक्षकों और शिक्षाविदों को जन्म देगी, जो आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को भी आत्मसात करेंगे।
समारोह के अंत में राज्यपाल श्री बागडे ने मंच पर विराजित जैन साध्वियों से आशीर्वाद लिया और समाज को उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए सराहना प्रकट की।