नोटिफिकेशन का विवरण
नए आपराधिक कानून—
भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)—1 जुलाई 2024 से लागू हुए हैं। इन कानूनों में डिजिटल तकनीक और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग कर न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज करने का प्रावधान है। उपराज्यपाल द्वारा जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, पुलिस अधिकारी अब कोर्ट में उपस्थित होने के बजाय अपने थाने में बैठकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बयान दर्ज कर सकेंगे। इसका उद्देश्य समय और संसाधनों की बचत बताया गया है, लेकिन वकील समुदाय इसे न्याय प्रणाली के लिए खतरनाक मान रहा है।
वकीलों की आपत्तियां ;
आम आदमी पार्टी के लीगल विंग के अध्यक्ष और तीस हजारी बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट संजीव नसियार ने इस नोटिफिकेशन को
"न्याय प्रणाली पर हमला" बताया। उन्होंने और अन्य वकीलों ने निम्नलिखित आपत्तियां उठाई हैं:
1. क्रॉस-एग्जामिनेशन पर असर :
- कोर्ट में पुलिस अधिकारियों की शारीरिक उपस्थिति के बिना वकीलों के लिए उनके बयानों की सत्यता की जांच करना मुश्किल होगा। क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान वकील पुलिस के बयानों में खामियां निकालकर सच सामने लाते हैं, जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में संभव नहीं होगा।
- अगर पुलिस अधिकारी कोई कठिन सवाल पूछे जाने पर तकनीकी खराबी (जैसे इंटरनेट कटना या कैमरा बंद होना) का बहाना बनाएंगे, तो यह न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।
2. शपथ की प्रक्रिया पर सवाल :
- कोर्ट में शपथ लेना एक औपचारिक और कानूनी प्रक्रिया है, जो बयान की विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में यह स्पष्ट नहीं है कि शपथ की प्रक्रिया कैसे पूरी होगी।
3. पुलिस की जवाबदेही में कमी :
- वकीलों का कहना है कि पुलिस पर पहले से ही झूठे मुकदमे दर्ज करने और सरकारी दबाव में काम करने के आरोप लगते हैं। अगर पुलिस को थाने से बयान देने की छूट मिलेगी, तो उनकी जवाबदेही और कम हो जाएगी, जिससे आम नागरिकों के साथ अन्याय की आशंका बढ़ेगी।
4. केंद्र सरकार के आश्वासन का उल्लंघन :
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एडवोकेट संजीव नसियार ने बताया कि जब भारतीय न्याय संहिता लागू की गई थी, तब वकीलों ने इस तरह के प्रावधानों का विरोध किया था। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने लिखित आश्वासन दिया था कि साक्ष्य कोर्ट में ही लिए जाएंगे, न कि पुलिस थाने से। यह नोटिफिकेशन उस आश्वासन का सीधा उल्लंघन है।
वकीलों का विरोध और हड़ताल :
इस नोटिफिकेशन के खिलाफ दिल्ली की जिला अदालतों (तीस हजारी, साकेत, पटियाला हाउस, आदि) ने **तीन दिन की हड़ताल** (22, 23, और 25 अगस्त 2025) का ऐलान किया है। इस हड़ताल को
दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी समर्थन दिया है। दोनों संगठनों ने उपराज्यपाल से इस नोटिफिकेशन को तत्काल वापस लेने की मांग की है।
एडवोकेट संजीव नसियार ने कहा, "यह नोटिफिकेशन न केवल पुलिस की शक्तियों को अनुचित रूप से बढ़ाता है, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों को भी कमजोर करता है। हम इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
आम आदमी पार्टी का रुख :
AAP के लीगल विंग और अन्य नेताओं ने इस नोटिफिकेशन को केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के खिलाफ एक बड़े हमले के रूप में प्रस्तुत किया है।
आप (AAP) नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, "यह नोटिफिकेशन न्याय प्रणाली को कमजोर करने की साजिश है। अगर पुलिस थाने से बयान देगी, तो सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां भी यही करेंगी। इससे पूरा सिस्टम मैनिपुलेट हो जाएगा।"
उन्होंने केंद्र सरकार पर अन्य वर्गों, जैसे मध्यम वर्ग, डॉक्टर, और शिक्षकों पर हमला करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, *"स्कूलों की फीस बढ़ा दी गई, बिजली कटौती हो रही है, और मोहल्ला क्लीनिकों में दवाइयां नहीं मिल रही हैं। अब वकीलों के साथ यह अन्याय हो रहा है।"
मीडिया कवरेज पर सवाल :
वकीलों और AAP ने अंग्रेजी अखबारों पर इस मुद्दे को प्रमुखता से न छापने का आरोप लगाया है। सौरभ भारद्वाज ने कहा, "जब दिल्ली की अदालतें हड़ताल पर हैं, तब भी अंग्रेजी अखबार इस खबर को बड़ी खबर की तरह नहीं छाप रहे। यह साबित करता है कि कुछ अखबार सरकार के मुखपत्र बन गए हैं।" उन्होंने वकीलों, जजों, और अन्य पेशेवरों से अपील की कि वे उन अखबारों पर पुनर्विचार करें जो इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दों को नजरअंदाज करते हैं।
नए कानूनों का संदर्भ :
नए आपराधिक कानूनों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और डिजिटल तकनीक को बढ़ावा देने के कई प्रावधान हैं, जैसे:
- BNSS में समन और वारंट को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजने की सुविधा।
- साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग, तलाशी, और जब्ती में वीडियोग्राफी अनिवार्य।
- न्यायश्रुति नामक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ग्रिड, जो कोर्ट, जेल, और पुलिस के बीच संवाद को आसान बनाता है।
हालांकि, इन प्रावधानों का उद्देश्य पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाना है, लेकिन वकीलों का कहना है कि पुलिस को थाने से बयान देने की छूट देना इन उद्देश्यों को विफल करता है।
क्या हो सकता है प्रभाव?
- न्याय प्रणाली पर असर: अगर पुलिस अधिकारी कोर्ट में उपस्थित नहीं होंगे, तो उनके बयानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा। इससे दोषियों को बचाने और निर्दोषों को फंसाने की आशंका बढ़ सकती है।
- आम नागरिकों के अधिकार: यह नोटिफिकेशन आम लोगों के लिए न्याय तक पहुंच को और मुश्किल बना सकता है, क्योंकि पुलिस की जवाबदेही कम होगी।
- पुलिस की शक्ति में वृद्धि: पुलिस को थाने से बयान देने की छूट मिलने से उनकी शक्तियां अनुचित रूप से बढ़ेंगी, जिससे दुरुपयोग की आशंका है।
यह नोटिफिकेशन न केवल वकील समुदाय, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गंभीर मुद्दा है। अगर पुलिस को कोर्ट में उपस्थित होने से छूट दी जाती है, तो यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को प्रभावित करेगा, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों को भी कमजोर करेगा। वकीलों की हड़ताल और AAP का विरोध इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि न्याय प्रणाली की गरिमा और विश्वसनीयता बनी रहे। - AAP