अमित शाह ने अपने बयान में कहा, "हुर्रियत से जुड़े दो और समूहों ने अलगाववाद को त्यागकर नए भारत में विश्वास जताया है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्रालय की प्रभावी नीतियों का परिणाम है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास का नया युग शुरू हुआ है।" उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम कश्मीर घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ "जीरो टॉलरेंस" की नीति को मजबूत करता है।
सूत्रों के मुताबिक, इन संगठनों ने हाल के दिनों में केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन के साथ कई दौर की बातचीत की थी। इसके बाद यह फैसला लिया गया कि वे हिंसा और अलगाव के रास्ते को छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होंगे। इन संगठनों के नेताओं ने कहा कि वे जम्मू-कश्मीर के विकास और देश की एकता में योगदान देना चाहते हैं। एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमने देखा कि पिछले कुछ सालों में कश्मीर में सकारात्मक बदलाव आए हैं। अब हम भी इस नए भारत का हिस्सा बनना चाहते हैं।"
यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से केंद्र सरकार लगातार शांति और विकास के लिए प्रयास कर रही है। बीजेपी नेता सुनील शर्मा ने इस कदम को "मोदी सरकार की आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ जीत" करार दिया। उन्होंने कहा, "यह फैसला दिखाता है कि कश्मीर के लोग अब हिंसा नहीं, बल्कि शांति और तरक्की चाहते हैं।"
सोशल मीडिया पर भी इस खबर को लेकर खूब चर्चा हुई। कई लोगों ने इसे कश्मीर में बदलते हालात का सबूत बताया, वहीं कुछ ने इसे केंद्र की कूटनीति और रणनीति की सफलता माना। एक यूजर ने लिखा, "यह नया भारत है, जहां अलगाव की जगह एकता को बढ़ावा मिल रहा है।" हालांकि, कुछ विपक्षी नेताओं ने इस कदम पर सवाल उठाए और इसे "दिखावटी" करार दिया। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, "हमें देखना होगा कि यह फैसला कितना प्रभावी है और जमीन पर इसका क्या असर पड़ता है।"
जम्मू-कश्मीर पुलिस और प्रशासन ने इस घटना पर नजर रखी हुई है। अधिकारियों का कहना है कि यह कदम घाटी में शांति स्थापित करने की दिशा में एक और मील का पत्थर साबित हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में कई अलगाववादी नेताओं और संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया है, जिसे सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है।